श्री ललिता सहस्रनाम के लाभ | ललिता सहस्रनाम फलश्रुति

आज के इस पोस्ट में हम ललिता सहस्रनाम के लाभ अर्थात ललिता सहस्रनाम फलश्रुति के बारे में जानेगें।

सनातन धर्म में मां ललिता त्रिपुर सुंदरी को 10 महाविद्याओं में से एक माना है। ललिता सहस्रनाम भगवान् हयग्रीव और अगस्त्य मुनि के बीच का संवाद है जो की माता ललिता त्रिपुर सुंदरी को समर्पित स्तोत्र है।

ललिता सहस्रनाम का उल्लेख ब्रह्माण्ड पुराण के ललितोपाख्यान में मिलता है।

पूरे ललिता सहस्त्रनाम को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम भाग में ललिता सहस्रनाम के उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। द्वितीय भाग में माता के 1000 नाम बताये गए हैं तथा अंतिम भाग में ललिता सहस्रनाम पाठ के लाभ अर्थात फलश्रुति बताये गए हैं।

ललिता सहस्रनाम के लाभ

माँ ललिता धन, ऐश्वर्य अर्थात भोग के साथ साथ मोक्ष की भी अधिस्ठात्री देवी हैं। इनकी साधना श्रीविद्या के नाम से जानी जाती है तथा पूजन यन्त्र श्री-चक्र या श्री-यन्त्र के नाम से प्रसिद्द है।

ललितोपाख्यान, ललिता सहस्रनाम, ललिता त्रिशति तथा ललिता अष्टोत्तरशतनामावली के पाठ के माध्यम से माता ललिता की आराधना की जाती है, जिनमे ललिता सहस्रनाम का विशेष महत्व है।

तो चलिए अब हम ललिता सहस्रनाम के लाभ के बारे में जानते है।

ललिता सहस्रनाम के लाभ

  • पूर्ण श्रद्धा और आस्था से किया गया ललिता सहस्रनाम का पाठ मनुष्य की चेतना को शुद्ध करता है। तथा मन को व्यर्थ चिंताओं और नकारात्मक विचारों से मुक्त कर सकारात्मकता और आत्मविश्वास प्रदान करता है।
  • ललिता सहस्त्रनाम का पाठ से जातक के ग्रह सम्बन्धी दोष दूर हो जाते हैं। श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करते समय अपने सामने एक पात्र में जल भरकर रखें। ऐसा करने से वो जल अभिमंत्रित जो जाता है। इस अभिमंत्रित जल को अपने मस्तिष्क पर लगाने से प्रतिकूल से प्रतिकूल ग्रह भी अनुकूल काम करने लगते हैं।
  • प्रत्येक पूर्णिमा को चंद्र देव को देखते हुए माता ललिता का ध्यान करें। फिर पंचोपचार पूजा के बाद ललिता सहस्त्रनाम का पाठ करने से मनुष्य के समस्त रोग मिट जाते हैं तथा आयु में वृद्धि होती है।
  • अगर ललिता सहस्त्रनाम का पाठ ज्वर से पीड़ित व्यक्ति के मष्तक पर हाथ रखकर किया जाये तो उस मनुष्य का किसी भी प्रकार का ज्वर समाप्त हो जाता है।
  • ललिता सहस्रनाम पाठ से अभिमंत्रित किया हुआ भस्म शरीर पे लगाने से सभी प्रकार के रोगों में लाभ मिलता है।
  • माँ ललिता का ध्यान कर उनका पंचोपचार पूजन करके श्री ललिता सहस्रनाम पाठ के श्रवण मात्र से आन्तरिक रोगों में लाभ तथा सर्प आदि विषैले जंतु की विष भी उतर जाता है।
  • श्री ललिता सहस्रनाम के पाठ से अकाल मृत्यु और किसी प्रकार की दुर्घटना का भय नहीं रहता है।
  • अगर आप अपने भीतर किसी को भी सम्मोहित करने की शक्ति लाना चाहते हैं तो श्री ललिता सहस्रनाम का नित्य पाठ नित्य करें।
  • श्री ललिता सहस्रनाम का नित्य पाठ करने वाले साधक को क्रूर दृष्टि से देखने वाले शत्रु को श्री मार्तंड अर्थात भैरव आखों से अँधा बना देते हैं।
  • जो ललिता सहस्रनाम का पाठ करने वाले मनुष्य के वस्तुओं की चोरी करता है उसे दिशयों के देव अर्थात क्षेत्रपाल देवता अवश्य सजा देते हैं।
  • यदि कोई ज्ञानी अपनी विद्वता के अहंकार में आकर श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करने वाले साधक से शास्त्रार्थ करता है तो माँ नकुलीश्वरी देवी उस व्यक्ति का वाकस्तम्भन कर देती हैं।
ललिता सहस्रनाम के लाभ
  • अगर श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ छह माह तक लगातार कर लिया जाये तो घर में स्थिर लक्ष्मी स्थिर का आगमन होता है और दरिद्रता दूर हो जाती है।
  • लगातार एक महीने तक तीन बार श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करने से माता सरस्वती साधक की जिह्वा पर विराजमान हो जाती हैं तथा वाकसिद्धि की प्राप्ति होती है।
  • अगर आस्था और विधि पूर्वक पूरे एक पक्ष लगातार श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ किया जाये तो साधक में वशीकरण शक्ति का प्रादुर्भाव होता है।
  • श्री ललिता सहस्रनाम का नियमित पाठ से मनुष्य यश एवं प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है।
  • अगर आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है तो प्रत्येक शुक्रवार श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करना शुरू करें, आर्थिक परेशानियां शीघ्र दूर हो जायेगीं।
  • श्री ललिता सहस्रनाम से अभिमंत्रित किया हुआ माखन खिलाने से बाँझ स्त्री का भी गर्भ ठहर जाता है।
  • श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करने से धन की इच्छा रखने वाले मनुष्य को धन की, विद्या पाने की इच्छा रखने वाले विद्यार्थी को विद्या की तथा यश की कामना करने वाले व्यक्ति को यश की प्राप्ति होती है।
  • श्री ललिता सहस्रनाम का निष्काम और विधि पूर्वक पाठ करने से साधक को भोग और मोक्ष दोनों की हीं प्राप्ति होती है।
  • जो मनुष्य माता के इस सहस्रनाम का जाप करता है उसका दुर्भाग्य सदा के लिए दूर हो जाता है।
  • जिस घर में श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ प्रतिदिन होता है उस घर का वंश सदा चलता रहता है। उस घर में पुत्र-पौत्र की कभी कमी नहीं होती है।
  • ललिता सप्तमी के दिन माता ललिता के सहस्रनाम का पाठ करने से जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
  • समुन्द्र के बीच बैठी माता ललिता का धयान कर उनके सहस्त्रनाम का पाठ से आर्थिक तानी के साथ साथ गंभीर रोज भी दूर हो जाते हैं।
  • पूर्ण विश्वास से श्री ललिता सहस्त्रनाम का पाठ करने से सदाचारी और उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।

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ललिता सहस्रनाम फलश्रुति

ललिता सहस्रनाम में वर्णित फलश्रुति जो कि मार्कण्डेय पुराण से ली गयी है, सहस्रनाम का हिस्सा नहीं है अतः माता ललिता के सहस्रनाम को पढ़ते समय इस फलश्रुति को पढ़ना जरुरी नहीं होता है। फलश्रुति के इन 85 श्लोकों में माँ ललिता सहस्रनाम के लाभ के बारे में बात की गयी है।

तो जो भी साधक ललिता सहस्रनाम के लाभ को जानना चाहते है वो नीचे दिए गए ललिता सहस्रनाम फलश्रुति अवश्य पढ़ें।

ललिता सहस्रनाम के लाभ

ललिता सहस्रनाम फलश्रुति

इत्येव॑ नामसाहस्त्र॑ कथितं ते घटोदभव।
रहस्यानां रहस्यं च ललिताप्रीतिदायकम्‌॥ १॥

अनेन सदूृशं स्तोत्र न भूतं न भविष्यति।
सर्वरोगप्रशमनं सर्वसम्पत्प्रवर्धनम्‌॥ २॥

सर्वापमृत्युशमनं कालमृत्युनिवारणम्‌।
सर्वज्वरार्तिशमनं दीर्घायुष्यप्रदायकम्‌॥ ३॥

पुत्रप्रदमपुत्राणां पुरुषार्थप्रदायकम् ।
इदं विशेषाच्छ्रीदेव्याः स्तोत्रं प्रीतिविधायकम् ॥ ४ ॥

जपेन्नित्यं प्रयत्नेन ललितोपास्तितत्परः ।
प्रातः स्नात्वा विधानेन सन्ध्याकर्म समाप्य च ॥ ५ ॥

पूजागृहं ततो गत्वा चक्रराजं समर्चयेत् ।
विद्यां जपेत् सहस्रं वा त्रिशतं शतमेव वा ॥ ६ ॥

रहस्यनामसाहस्त्रमिदं पश्चात् पठेन्नरः ।
जन्ममध्ये सकृच्चापि य एवं पठते सुधीः ॥ ७ ॥

तस्य पुण्यफलं वक्ष्ये शृणु त्वं कुम्भसम्भव ।
गङ्गादिसर्वतीर्थेषु यः स्त्रायात् कोटिजन्मसु ॥ ८ ॥

कोटिलिङ्गप्रतिष्ठां तु यः कुर्यादविमुक्तके ।
कुरुक्षेत्रे तु यो दद्यात्कोटिवारं रविग्रहे ॥ ९ ॥

कोटिं सौवर्णभाराणां श्रोत्रियेषु द्विजन्मसु ।
यः कोटिहयमेधानामाहरेद् गाङ्गरोधसि ॥ १० ॥

आचरेत् कूपकोटीर्यो निर्जले मरुभूतले ।
दुर्भिक्षे यः प्रतिदिनं कोटिब्राह्मणभोजनम् ॥ ११ ॥

श्रद्धया परया कुर्यात् सहस्रपरिवत्सरान् ।
तत्पुण्यं कोटिगुणितं लभेत् पुण्यमनुत्तमम् ॥ १२ ॥

रहस्यनामसाहस्त्रे नाम्नोऽप्येकस्य कीर्तनात् ।
रहस्यनामसाहस्त्रे नामैकमपि यः पठेत् ॥ १३ ॥

तस्य पापानि नश्यन्ति महान्त्यपि न संशयः ।
नित्यकर्माननुष्ठानान्निषिद्धकरणादपि ॥ १४ ॥

यत्पापं जायते पुंसां तत्सर्वं नश्यति ध्रुवम् ।
बहुनाऽत्र किमुक्तेन शृणु त्वं कुम्भसम्भव ॥ १५ ॥

अत्रैकनाम्रो या शक्तिः पातकानां निवर्तने ।
तन्निवर्त्यमघं कर्तुं नालं लोकाश्चतुर्दश ॥ १६ ॥

यस्त्यक्त्वा नामसाहस्त्रं पापहानिमभीप्सति ।
स हि शीतनिवृत्त्यर्थं हिमशैलं निषेवते ॥ १७ ॥

भक्तो यः कीर्तयेन् नित्यमिदं नामसहस्रकम् ।
तस्मै श्रीललितादेवी प्रीताभीष्टं प्रयच्छति ॥ १८ ॥

अकीर्तयन्निदं स्तोत्रं कथं भक्तो भविष्यति ।
नित्यसङ्कीर्तनाशक्तः कीर्तयेत् पुण्यवासरे ॥ १९ ॥

संक्रान्तौ विषुवे चैव स्वजन्मत्रितयेऽयने ।
नवम्यां वा चतुर्दश्यां सितायां शुक्रवासरे ॥ २० ॥

कीर्तयेन्नामसाहस्रं पौर्णमास्यां विशेषतः ।
पौर्णमास्यां चन्द्रबिम्बे ध्यात्वा श्रीललिताम्बिकाम् ॥ २१ ॥

पञ्चोपचारैः सम्पूज्य पठेन्नामसहस्त्रकम् ।
सर्वे रोगाः प्रणश्यन्ति दीर्घायुष्यं च विन्दति ॥ २२ ॥

अयमायुष्करो नाम प्रयोगः कल्पनोदितः ।
ज्वरार्तं शिरसि स्पृष्ट्वा पठेन्नामसहस्रकम् ॥ २३ ॥

तत्क्षणात् प्रशमं याति शिरस्तोदो ज्वरोऽपि च ।
सर्वव्याधिनिवृत्त्यर्थे स्पृष्ट्वा भस्म जपेदिदम् ॥ २४ ॥

तद्भस्मधारणादेव नश्यन्ति व्याधयः क्षणात् ।
जलं सम्मन्त्र्य कुम्भस्थं नामसाहस्रतो मुने ॥ २५ ॥

अभिषिञ्चेद् ग्रहग्रस्तान् ग्रहा नश्यन्ति तत्क्षणात् ।
सुधासागरमध्यस्थां ध्यात्वा श्रीललिताम्बिकाम् ॥ २६ ॥

यः पठेन्नामसाहस्त्रं विषं तस्य विनश्यति ।
वन्ध्यानां पुत्रलाभाय नामसाहस्त्रमन्त्रितम् ॥ २७ ॥

नवनीतं प्रदद्यात्तु पुत्रलाभो भवेद् ध्रुवम् ।
देव्याः पाशेन सम्बद्धामाकृष्टामङ्कशेन च ॥ २८ ॥

ध्यात्वाऽभीष्टां स्त्रियं रात्रौ पठेन्नामसहस्त्रकम् ।
आयाति स्वसमीपं सा यद्यप्यन्तःपुरं गता ॥ २९ ॥

राजाकर्षणकामश्चेद्राजावसथदिङ्मुखः
त्रिरात्रं यः पठेदेतच्छ्रीदेवीध्यानतत्परः ॥ ३० ॥

स राजा पारवश्येन मातङ्कं वा तुरङ्गमम् ।
आरुह्यायाति निकटं दासवत् प्रणिपत्य च ॥ ३१ ॥

तस्मै राज्यं च कोशं च दद्यादेव वशङ्गतः ।
रहस्यनामसाहस्त्रं यः कीर्तयति नित्यशः ॥ ३२ ॥

तन्मुखालोकमात्रेण मुह्येल्लोकत्रयं मुने ।
यस्त्विदं नामसाहस्त्रं सकृत् पठति भक्तिमान् ॥ ३३ ॥

तस्य ये शत्रवस्तेषां निहन्ता शरभेश्वरः ।
यो वाऽभिचारं कुरुते नामसाहस्त्रपाठके ॥ ३४ ॥

निवर्त्य तत्क्रियां हन्यात् तं वै प्रत्यङ्गिरा स्वयम् ।
ये क्रूरदृष्ट्या वीक्षन्ते नामसाहस्रपाठकम् ॥ ३५ ॥

तानन्धान् कुरुते क्षिप्रं स्वयं मार्ताण्डभैरवः ।
धनं यो हरते चौरो नामसाहस्त्रजापिनः ॥ ३६ ॥

यत्र कुत्र स्थितं वापि क्षेत्रपालो निहन्ति तम् ।
विद्यासु कुरुते वादं यो विद्वान् नामजापिना ॥ ३७ ॥

तस्य वाक्स्तम्भनं सद्यः करोति नकुलेश्वरी ।
यो राजा कुरुते वैरं नामसाहस्त्रजापिनः ॥ ३८ ॥

चतुरङ्गबलं तस्य दण्डिनी संहरेत् स्वयम् ।
यः पठेन्नामसाहस्त्रं षण्मासं भक्तिसंयुतः ॥ ३९ ॥

लक्ष्मीश्चाञ्चल्यरहिता सदा तिष्ठति तद्गृहे ।
मासमेकं प्रतिदिनं त्रिवारं यः पठेन्नरः ॥ ४० ॥

भारती तस्य जिह्वाग्रे रङ्गे नृत्यति नित्यशः ।
यस्त्वेकवारं पठति पठति पक्षमेकमतन्द्रितः ॥ ४१ ॥

मुह्यन्ति कामवशगा मृगाक्ष्यस्तस्य वीक्षणात् ।
यः पठेन्नामसाहस्रं जन्ममध्ये सकृन्नरः ॥ ४२ ॥

तद्दृष्टिगोचराः सर्वे मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः ।
यो वेत्ति नामसाहस्त्रं तस्मै देयं द्विजन्मने ॥ ४३ ॥

अन्नं वस्त्रं धनं धान्यं नान्येभ्यस्तु कदाचन ।
श्रीमन्त्रराजं यो वेत्ति श्रीचक्रं यः समर्चति ॥ ४४ ॥

यः कीर्तयति नामानि तं सत्पात्रं विदुर्बुधाः ।
तस्मै देयं प्रयत्नेन श्रीदेवीप्रीतिमिच्छता ॥ ४५ ॥

न कीर्तयति नामानि मन्त्रराजं न वेत्ति यः ।
पशुतुल्यः स विज्ञेयस्तस्मै दत्तं निरर्थकम् ॥ ४६ ॥

परीक्ष्य विद्याविदुषस्तेभ्यो दद्याद्विचक्षणः ।
श्रीमन्त्रराजसदृशो यथा मन्त्रो न विद्यते ॥ ४७ ॥

देवता ललितातुल्या यथा नास्ति घटोद्भव |
रहस्यनामसाहस्त्रतुल्या नास्ति तथा स्तुतिः ॥ ४८ ॥

लिखित्वा पुस्तके यस्तु नामसाहस्त्रमुत्तमम् ।
समर्चयेत् सदा भक्त्या तस्य तुष्यति सुन्दरी ॥ ४९ ॥

बहुनाऽत्र किमुक्तेन शृणु त्वं कुम्भसम्भव |
नानेन सदृशं स्तोत्रं सर्वतन्त्रेषु विद्यते ॥ ५० ॥

तस्मादुपासको नित्यं कीर्तयेदिदमादरात् ।
एभिर्नामसहस्त्रैस्तु श्रीचक्रं योऽर्चयेत् सकृत् ॥ ५१ ॥

पद्यैर्वा तुलसीपुष्पैः कह्लारैर्वा कदम्बकैः ।
चम्पकैर्जातिकुसुमैर्मल्लिकाकरवीरकैः ॥५२ ॥

उत्पलैर्बिल्वपत्रैर्वा कुन्दकेसरपाटलैः ।
अन्यैः सुगन्धिकुसुमैः केतकीमाधवीमुखैः ॥ ५३ ॥

तस्य पुण्यफलं वक्तुं न शक्नोति महेश्वरः ।
सा वेत्ति ललितादेवी स्वचक्रार्चनजं फलम् ॥ ५४ ॥

अन्ये कथं विजानीयुर्ब्रह्माद्याः स्वल्पमेधसः ।
प्रतिमासं पौर्णमास्यामेभिर्नामसहस्रकैः ॥ ५५ ॥

रात्रौ यश्चक्रराजस्थामर्चयेत् परदेवताम् ।
स एव ललितारूपस्तद्रूपा ललिता स्वयम् ॥ ५६ ॥

न तयोर्विद्यते भेदो भेदकृत् पापकृद् भवेत् ।
महानवम्यां यो भक्तः श्रीदेवीं चक्रमध्यगाम् ॥ ५७ ॥

अर्चयेन्नामसाहस्त्रैस्तस्य मुक्तिः करे स्थिता ।
यस्तु नामसहस्त्रेण शुक्रवारे समर्चयेत् ॥ ५८ ॥

चक्रराजे महादेवीं तस्य पुण्यफलं शृणु ।
सर्वान् कामानवाप्येह सर्वसौभाग्यसंयुतः ॥ ५९ ॥

पुत्रपौत्रादिसंयुक्तो भुक्त्वा भोगान् यथेप्सितान् ।
अन्ते श्रीललितादेव्याः सायुज्यमतिदुर्लभम् ॥ ६० ॥

प्रार्थनीयं शिवाद्यैश्च प्राप्नोत्येव न संशयः ।
यः सहस्त्रं ब्राह्मणानामेभिर्नामसहस्रकैः ॥ ६१ ॥

समर्च्य भोजयेद् भक्त्या पायसापूपषड्रसैः ।
तस्मै प्रीणाति ललिता स्वसाम्राज्यं प्रयच्छति ॥ ६२ ॥

न तस्य दुर्लभं वस्तु त्रिषु लोकेषु विद्यते ।
निष्कामः कीर्तयेद्यस्तु नामसाहस्त्रमुत्तमम् ॥ ६३ ॥

ब्रह्मज्ञानमवाप्नोति येन मुच्येत बन्धनात् ।
धनार्थी धनमाप्नोति यशोऽर्थी चाप्नुयाद्यशः ॥ ६४ ॥

विद्यार्थी चानुयाद्विद्यां नामसाहस्त्रकीर्तनात् ।
नानेन सदृशं स्तोत्रं भोगमोक्षप्रदं मुने ॥ ६५ ॥

कीर्तनीयमिदं तस्माद् भोगमोक्षार्थिभिर्नरैः ।
चतुराश्रमनिष्ठैश्च कीर्तनीयमिदं सदा ॥ ६६ ॥

स्वधर्मसमनुष्ठानवैकल्यपरिपूर्तये ।
कलौ पापैकबहुले धर्मानुष्ठानवर्जिते ॥ ६७ ॥

नामानुकीर्तनं मुक्त्वा नृणां नान्यत् परायणम् ।
लौकिकाद्वचनान्मुख्यं विष्णुनामानुकीर्तनम् ॥ ६८ ॥

विष्णुनामसहस्राच्च शिवनामैकमुत्तमम् ।
शिवनामसहस्त्राच्च देव्या नामैकमुत्तमम् ॥ ६९ ॥

देवीनामसहस्त्राणि कोटिशः सन्ति कुम्भज ।
तेषु मुख्यं दशविधं नामसाहस्त्रमुच्यते ॥ ७० ॥

रहस्यनामसाहस्त्रमिदं शस्तं दशस्वपि ।
तस्मात् संकीर्तयेन्नित्यं कलिदोषनिवृत्तये ॥ ७१ ॥

मुख्यं श्रीमातृनामेति न जानन्ति विमोहिताः ।
विष्णुनामपराः केचिच्छिवनामपराः परे ॥ ७२ ॥

न कश्चिदपि लोकेषु ललितानामतत्परः ।
येनान्यदेवतानाम कीर्तितं जन्मकोटिषु ॥ ७३ ॥

तस्यैव भवति श्रद्धा श्रीदेवीनामकीर्तने ।
चरमे जन्मनि यथा श्रीविद्योपासको भवेत् ॥ ७४ ॥

नामसाहस्त्रपाठश्च तथा चरमजन्मनि ।
यथैव विरला लोके श्रीविद्याराजवेदिनः ॥ ७५ ॥

तथैव विरला गुह्यनामसाहस्त्रपाठकाः ।
मन्त्रराजजपश्चैव चक्रराजार्चनं तथा ॥ ७६ ॥

रहस्यनामपाठश्च नाल्पस्य तपसः फलम् ।
अपठन् नामसाहस्त्रं प्रीणयेद्यो महेश्वरीम् ॥ ७७ ॥

स चक्षुषा विना रूपं पश्येदेव विमूढधीः ।
रहस्यनामसाहस्रं त्यक्त्वा यः सिद्धिकामुकः ॥७८ ॥

स भोजनं विना नूनं क्षुन्निवृत्तिमभीप्सति ।
यो भक्तो ललितादेव्याः स नित्यं कीर्तयेदिदम् ॥ ७९ ॥

नान्यथा प्रीयते देवी कल्पकोटिशतैरपि ।
तस्माद्रहस्यनामानि श्रीमातुः प्रयतः पठेत् ॥ ८० ॥

इति ते कथितं स्तोत्रं रहस्यं कुम्भसम्भव ।
नाविद्यावेदिने ब्रूयान्नाभक्ताय कदाचन ॥ ८१ ॥

यथैव गोप्या श्रीविद्या तथा गोप्यमिदं मुने ।
पशुतुल्येषु न ब्रूयाज्जनेषु स्तोत्रमुत्तमम् ॥ ८२ ॥

यो ददाति विमूढात्मा श्रीविद्यारहिताय तु ।
तस्मै कुप्यन्ति योगिन्यः सोऽनर्थः सुमहान् स्मृतः ॥ ८३ ॥

रहस्यनामसाहस्त्रं तस्मात् संगोपयेदिदम् ।
स्वातन्त्र्येण मया नोक्तं तवापि कलशोद्भव ॥ ८४ ॥

ललिताप्रेरणादेव मयोक्तं स्तोत्रमुत्तमम् ।
कीर्तनीयमिदं भक्त्या कुम्भयोने निरन्तरम् ॥ ८५ ॥

तेन तुष्टा महादेवी तवाभीष्टं प्रदास्यति ।

सूत उवाच

इत्युक्त्वा श्रीहयग्रीवोध्यात्वा श्रीललिताम्बिकाम् ।
आनन्दमग्नहृदयः सद्यः पुलकितोऽभवत् ॥ ८६ ॥

इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे ललितोपाख्याने हयग्रीवागस्त्यसंवादे
श्रीललितासहस्रनामस्तोत्रे फलनिरूपणं नाम तृतीयोऽध्यायः

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निष्कर्ष

तो कैसी लगी श्री ललिता सहस्रनाम के लाभ से जुडी ये जानकारी। साथ ही साथ हमने यहाँ आपको श्री ललिता सहस्रनाम फलश्रुति भी बताई है।

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