ऋषियों द्वारा बताया गया 5 चमत्कारी भोजन मंत्र अर्थ सहित

आज के इस पोस्ट में हम कुछ ऐसे भोजन मंत्र अर्थ सहित जानेगें जिससे आपका भोजन अमृत तुल्य हो जायेगा।

भोजन मंत्र (Bhojan Mantra) एक ऐसा चमत्कारिक मंत्र होता है जिसे भोजन करने से पहले तथा बाद में पढ़ा जाता है, जिसके जाप मात्र से हीं भोजन के सम्पूर्ण दोष मिट जाते हैं और वो हमारे लिए बल और पुष्टि वर्धक बन जाता है।

शास्त्रों में ये कहा गया है की “जैसा खावै अन्न वैसा हो जाये मन, जैसा पीवै पानी वैसी जो जाये वाणी” अर्थात हम जिस प्रकार का अन्न खाते हैं, हमारा मन वैसा ही हो जाता है तथा हम जैसा पानी पीते है वैसी ही हमारी वाणी हो जाती है।

अगर इस बात को गहरे से समझा जाये तो ये सूत्र हमें ये बताने की कोशिश कर रहा है कि भोजन और पानी का हमारे शरीर, मन और व्यवहार पे बहुत गहरा असर होता है। अतः अत्यंत सजगता पूर्वक भोजन और पानी चुनना और उसे ग्रहण करना चाहिए।

आयुर्वेद में भी ऐसा कहा गया है कि आपका आहार ही औषधि है। यदि हमारा भोजन ठीक हो और हम उसे मन्त्रों से अभिमंत्रित करके ग्रहण करें तो वो भोजन अमृत के सामान हो जाता है जो हमारी बड़ी से बड़ी बीमारी भी ठीक करने की शक्ति रखता है।

भोजन मंत्र जाप का तरीका

सबसे पहले हम ये जानते हैं की इन मंत्र का प्रयोग हम कैसे करेगें। सर्वप्रथम भोजन के समक्ष बैठ जाएँ। अब हाथ में जल लेकर या जल का पात्र लेकर भोजन के चरों ओर घूमते हुए इस मंत्र का जाप करें। तत्पश्चात, उस जल को थोड़ा सा पी लें।

हमारा शरीर पांच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है। ऐसे हीं हमारे शरीर में 5 तरह के प्राण भी होते है। तो मंत्र पढ़ने के बाद अपने पांचों प्राण को आहुति देना होता है।

इसके लिए आप अपने हाथ में भोजन का टुकड़ा लें और उसे खाने के पहले ॐ प्रणय स्वाहा बोलें। अब दूसरे भोजन का दूसरा निवाला हाथ में लेकर बोलें ॐ अपानाय स्वाहा। अब तीसरे निवाले को लेकर बोलें ॐ समानाय स्वाहा। अब चौथे निवाले को हाथ में ले बोलें ॐ उदानाय स्वाहा। ऐसे हीं जब पांचवां निवाला हाथ में उठायें तो बोले ॐ व्यानाय स्वाहा। अब आप इस्वर को स्मरण करते हुए भोजन शुरू कर दें।

भोजन मंत्र अर्थ सहित

भोजन मंत्र संख्या – 1

अन्नब्रह्मा रसोविष्णुः भोक्ता देवो महेश्वरः ।
एवम् ज्ञक्त्व तु यो भुन्क्ते अन्न दोषो न लिप्यते॥

अन्नब्रह्मा – भोजन में जो रचनात्मक ऊर्जा समाहित है वो ब्रह्मा है।
रसं विष्णुं – शरीर में पोषण देने वाली ऊर्जा अर्थात अन्न रस, वो विष्णु है।
भोक्ता देवो महेश्वरः – अन्न के पाचन के बाद उसका शुद्ध चेतना में परिवर्तन ही शिव है।
एवम् ज्ञक्त्व तु यो भुन्क्ते – यदि आप यह जानते हुए भोजन को ग्रहण करते हैं तो
अन्न दोषो न लिप्यते – भोजन के दोषों से अर्थात भोजन की अशुद्धियों से मुक्त हो जायेगें।

अर्थ : भोजन में जो रचनात्मक ऊर्जा समाहित है वो ब्रह्मा है। शरीर में पोषण देने वाली ऊर्जा अर्थात अन्न रस, वो विष्णु है। अन्न के पाचन के बाद उसका शुद्ध चेतना में परिवर्तन ही शिव है। यदि आप यह जानते हुए भोजन को ग्रहण करते हैं तो भोजन के दोषों से अर्थात भोजन की अशुद्धियों से मुक्त हो जायेगें।

भोजन मंत्र अर्थ सहित

भोजन मंत्र संख्या – 2

ओ3म् अन्नपतेSन्नस्य नो देह्यनमीवस्य शुष्मिणः/
प्र प्रदातारं तारिष ऊर्ज्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे //
ओ3म् शान्तिः शान्तिः शान्तिः !

यजुर्वेद ११.८३

अर्थ : हे अन्न प्रदान करने वाले परमपिता परमात्मा, हमें कीट आदि से रहित स्वास्थ्य वर्धक, बल वर्धक और तेजवर्धक अन्न के भंडार को प्रदान करें। हे अन्नपते, अन्न का दान देने वाले और किसान आदि दुखों से परे हो जावें। तथा बाकि सभी दोपायों और चौपायों जीवों को भी अन्न रूप में ऊर्जा प्रदान करें।

भोजन मंत्र संख्या – 3

अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे!।
ज्ञान वैराग्य-शिद्ध्‌यर्थं भिक्षां देहिं च पार्वति॥

अन्नपूर्णा स्तोत्रम

अर्थ : हे माँ अन्नपूर्णा, आप अन्न और करुणा से सदा पूर्ण हैं, आप भगवान शंकर की प्रिय है। हे माँ पार्वती (अन्नपूर्णा), आप हमें भिक्षा दें, जिससे हमारे ज्ञान-वैराग्य की शुद्धि हो जाए।

भोजन मंत्र संख्या – 4

ब्रहमार्पणं ब्रहमहविर्‌ब्रहमाग्नौ ब्रहमणा हुतम्।
ब्रहमैव तेन गन्तव्यं ब्रहमकर्मसमाधिना ॥

भगवत गीता

अर्थ : जिस यज्ञमें अर्पण भी ब्रह्म है, हवी भी ब्रह्म है और ब्रह्म रूप कर्ता के द्वारा ब्रह्म रूप अग्नि में आहुति देना रूप क्रिया भी ब्रह्म है, जिस मनुष्य की ब्रह्म में ही कर्म-समाधि हो गयी है, उसके द्वारा प्राप्त करने योग्य फल भी ब्रह्म ही है।

मनुष्य की भूख भी यज्ञ की तरह हीं होती है। जिसमे हमारा उदार यज्ञ की वेदी होती है, जठराग्नि यज्ञ की अग्नि के सामान होती है तथा हमारे द्वारा किया जाने वाला भोजन आहुति के सामान होती है। तो चलिए अब इस मंत्र का अर्थ भोजन के सम्बन्ध में समझते हैं।

अर्थ : इस Bhojan Mantra का अर्थ है कि जिन वस्तुओं को हम अपने लिए उपयोग करते हैं वे परम ब्रह्म है, हमारे द्वारा ग्रहण किया जाने वाला अन्न ही ब्रह्म है, हमे जब भूख लगती है तब उस भूख की अग्नि भी ब्रह्म हीं है, भोजन के खाने की प्रक्रिया और उसके पाचन की प्रक्रिया भी ब्रह्म की हीं क्रिया है और अंत में हमें जिस परिणाम की प्राप्ति होती है वो भी ब्रह्मा हीं है।

भोजन मंत्र संख्या – 5

कठोपनिषद में भी एक भोजन मंत्र का उल्लेख मिलता है जिसे वैदिक परंपरा में भोजन करने के पहले बोला जाता था। और आज भी गुरुकुल जैसे कई शिक्षण संस्थानों में इस मंत्र का प्रयोग भोजन मंत्र के रूप में होता आ रहा है। वो मंत्र इस प्रकार है –

ॐ सह नाववतु।
सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु।
मा विद्‌विषावहै॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

कठोपनिषद

अर्थ : हे ईश्वर, हम शिष्य और गुरु दोनों की ही आप साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों को हीं साथ-साथ विद्या-फल का भोग कराए। हम दोनों एक साथ अदम्भ्य ऊर्जा के साथ कार्यों को सम्पादित करें। हम दोनों का विद्याध्यन तेज से भरा हो तथा हम दोनों परस्पर कभी द्वेष न करें। उक्त तरह की भावना रखने वाले का मन निर्मल रहता है।

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भोजन समाप्त करने के बाद का मंत्र

जिस प्रकार भोजन शुरू करने के पहले भोजन को मन्त्र से अभिमंत्रित किया जाता है ठीक वैसे हीं भोजन समाप्ति के बाद भी एक मंत्र के जाप का विधान है। भोजन समाप्ति के बाद के इस मंत्र के पाठ से हमारी पाचन क्षमता बढ़ती है जिससे भोजन का सम्पूर्ण लाभ हमे मिल जाता है। वो मंत्र इस प्रकार है –

मंत्र संख्या – 1

अन्नदाता सुखी भव, सदा मङ्गलमूर्तिः।
धन्यवादः प्रदाता त्वं, नान्यथेति विचारय॥

अर्थ : हमे अन्न को प्रदान करने वाले हमेशा सुखी रहें तथा उनके जीवन में सदा शुभ और मंगल होता रहे। इस धन्यवाद और कृतज्ञता के अलावा कोई भी विचार नहीं होना चाहिए।

इस भोजन का समाप्ति मंत्र के माध्यम से धन्यवाद और कृतज्ञता की भावना को व्यक्त किया गया है। जो भी हमारे लिए भोजन को उपलभ्ध कराता है चाहे वो प्रकृति हो या किसान या फिर भोजन पकने वाली हमारी माताएं, इस श्लोक के माध्यम से इन सभी के प्रति एक गहरी कृतज्ञता व्यक्त की गयी है।

भोजन मंत्र अर्थ सहित

मंत्र संख्या – 2

अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः।
यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः।।

भगवत गीता

अर्थ : सभी लोग अन्न पर निर्भर हैं और अन्न वर्षा से उत्पन्न होता हैं, वर्षा यज्ञ का अनुष्ठान करने से होती है और यज्ञ निर्धारित कर्मों का पालन करने से सम्पन्न होता है।

भोजन ग्रहण कैसे करें

चलिए अब हम जानते हैं भोजन सम्बंधित कुछ मुख्य बातें, जो इस प्रकार हैं।

  • ज्यादा से ज्यादा कोशिश करें की आपका भोजन सात्विक हो।
  • मांसाहार या बाजारू और गरिष्ठ भोजन से बचें।
  • भोजन करने के पहले अपने हाथों, पैरों तथा मुँह को जरूर धोएं।
  • संभव हो तो आप जमीन पर पालथी मार कर ही भोजन ग्रहण करें।
  • कभी भी क्रोध में ना भोजन को बनावें और ना ही भोजन ग्रहण करें।
  • भोजन शुरू करने के पहले मन्त्रों द्वारा परमात्मा को धन्यवाद दें।
  • भोजन करते समय सजग रहें, आपका पूरा ध्यान भोजन पर ही हो।
  • मोबाइल फोन्स और टेलीविज़न को भोजन करते समय बंद कर दें।
  • भोजन समाप्त करने के पश्चात पुनः ईश्वर को धन्यवाद दें।

निष्कर्ष

तो कैसी लगी भोजन मंत्र अर्थ सहित से जुड़ी ये रोचक जानकारी। कुबरेश्वर धाम की पूरी टीम आप सभी से उम्मीद करेगी कि भोजन करने के पूर्व और भोजन करने के पश्चात इन मंत्रों का जाप जरूर करेगें। इन मंत्रों से अभिमंत्रित भोजन आपको जीवन के हर पहलु में ऊर्जा से भरी रखेगी तथा आप हेर प्रकार की नकारात्मकता, दुःख, रोग या बिमारियों से बचे रहेगें।

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