शिवाष्टक स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित किया गया पाठ भगवान शिव की भक्ति का एक सरल और प्रभावशाली माध्यम है, जो भक्त को शिव की शक्ति से जुड़ने का अनुभव कराता है।
इस लेख में हम शिवाष्टक स्तोत्र के लाभ और इसके आध्यात्मिक प्रभाव को भी विस्तार से जानेंगे। साथ ही, जो भक्त इस स्तोत्र को अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहते हैं, उनके लिए हम शिवाष्टक स्तोत्र PDF का लिंक भी साझा करेंगे, ताकि आप इसे सुविधापूर्वक पढ़ या संरक्षित कर सकें।
शिवाष्टक स्तोत्र संस्कृत में
भगवान् शिव को समर्पित यह दिव्य स्तोत्र आठ श्लोकों का एक संग्रह है, जिसमें शिव के विभिन्न रूपों, गुणों और उनके प्रति समर्पित भावों का सुंदर वर्णन किया गया है।
मान्यता है कि इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने वाले भक्त के मन में शिव का प्रकाश सदैव विराजमान रहता है, और उसके जीवन से संकटों के बादल स्वतः हीं हट जाते हैं।
तो चलिए सबसे पहले हम शिवाष्टक स्तोत्र जो की मूल रूप से संस्कृत में लिखा है, उसका पाठ करते हैं।
शिवाष्टक स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
हालाँकि, शंकराचार्य रचित इस शिवाष्टक स्तोत्र में संस्कृत के कठिन शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है, फिर भी कई भक्त को इसके पाठ में कठिनाई का अनुभव हो सकता है। अतः आप इस स्तोत्र को हिंदी में भी पढ़ सकते हैं।
वैसे भी, किसी भी भी स्तोत्र को उसके अर्थ के साथ पाठ करने से उसकी शक्ति और भी बढ़ जाती है। तो अब हम शिवाष्टक स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित पढ़ते हैं।
॥ अथ श्री शिवाष्टकम् स्तोत्र ॥
प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं
जगन्नाथ नाथं सदानन्द भाजाम्।
भवद्भव्य भूतेश्वरं भूतनाथं
शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥१॥
अर्थ: मैं उन भगवान् शिव की वंदना करता हूँ, जो समस्त प्राणियों के स्वामी हैं, सर्वव्यापी हैं, विश्व के नाथ हैं, और जगत् के पालनहार हैं। आप सदा आनंद प्रदान करने वाले हैं, अतीत, वर्तमान और भविष्य के स्वामी हैं, आप समस्त प्राणियों के ईश्वर, और उनके रक्षक हैं। हे भगवान् शिव, हे शंकर, हे शम्भु, हे ईशान, मैं आपसे मुझे अपनी शरण में लेने की प्रार्थना करता हूं।
गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं
महाकाल कालं गणेशादि पालम्।
जटाजूट गङ्गोत्तरङ्गै र्विशालं
शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे॥२॥
अर्थ: मैं उन शिव की वंदना करता हूँ जिनके गले में मुंडों की माला है, जिनके शरीर पर सर्पों का आभूषण है, और जो महाकाल अर्थात समय और मृत्यु के स्वामी हैं। जो समस्त गणों के रक्षक हैं, जिनकी जटाओं में माँ गंगा की उत्ताल लहरें विराजमान हैं। ऐसे भव्य स्वरूप वाले शिव, शंकर, शंभु और ईशान से मुझे अपनी शरण में लेने की प्रार्थना करता हूं।
मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं
महा मण्डलं भस्म भूषाधरं तम्।
अनादिं ह्यपारं महा मोहमारं
शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे॥३॥
अर्थ: मैं उन शिव की वंदना करता हूँ जो आनंद के स्रोत हैं, जो संपूर्ण ब्रह्मांड रूपी मण्डल के स्वामी हैं तथा अपने विशाल तेज से समस्त सृष्टि को सजाते हैं। जो भस्म को आभूषण की तरह धारण करते हैं, जो अनादि, अनंत, और संसार की माया को नष्ट करने वाले हैं। मैं ऐसे शिव, शंकर, शंभु और ईशान से मुझे अपनी शरण में लेने की प्रार्थना करता हूं।
वटाधो निवासं महाट्टाट्टहासं
महापाप नाशं सदा सुप्रकाशम्।
गिरीशं गणेशं सुरेशं महेशं
शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे॥४॥
अर्थ: मैं उन शिव की वंदना करता हूँ जो वट वृक्ष के नीचे निवास करते हैं, जिनकी गर्जनापूर्ण हँसी सम्पूर्ण ब्रह्मांड को कम्पित कर देता है। जो महान पापों का नाश करने वाले हैं, जो सदैव प्रकाशमान हैं , जो पर्वतराज के स्वामी हैं, जो सभी गणों तथा देवताओं के अधिपति तथा महेश हैं। मैं ऐसे शिव, शंकर, शंभु और ईशान को नमन करता हूँ
गिरीन्द्रात्मजा सङ्गृहीतार्धदेहं
गिरौ संस्थितं सर्वदापन्न गेहम्।
परब्रह्म ब्रह्मादिभिर्-वन्द्यमानं
शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥५॥
अर्थ: मैं उन शिव की वंदना करता हूँ, जो अर्धनारीश्वर रूप में माँ पार्वती (हिमालयपुत्री) के साथ एकाकार हैं, जो कैलाश पर निवास करते हैं ,जो सदा संकट में पड़े भक्तों के लिए शरणस्थली हैं। ब्रह्मा, विष्णु आदि देवता भी जिस परमब्रह्म स्वरूप शिव की पूजा करते हैं। मैं ऐसे शिव, शंकर, शंभु और ईशान का स्तवन करता हूँ।
कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं
पदाम्भोज नम्राय कामं ददानम्।
बली वर्धमानं सुराणां प्रधानं
शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥६॥
अर्थ: मैं उन शिव की वंदना करता हूँ जो हाथों में कपाल और त्रिशूल धारण करते हैं, जो अपने चरण-कमलों पर नतमस्तक भक्तों को इच्छित वरदान प्रदान करते हैं। जो अजेय शक्ति के स्वामी हैं, जो सदैव प्रबल रहने वाले हैं और देवताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं। मैं ऐसे शिव, शंकर, शंभु और ईशान को नमन करता हूँ।
शरच्चन्द्र गात्रं गणानन्दपात्रं
त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम्।
अपर्णा कलत्रं सदा सच्चरित्रं
शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥७॥
अर्थ: मैं उन शिव की वंदना करता हूँ, जिनका शरीर शरद ऋतु के चंद्रमा की तरह शुभ्र और मनोहर हैं, जो गणों को आनंद देने वाले हैं, जो तीन नेत्रों से युक्त, पवित्र, और धन के देवता कुबेर के मित्र हैं। जो अपर्णा अर्थात माँ पार्वती के पति, सदाचारी, और सद्गुणों से युक्त हैं। मैं ऐसे शिव, शंकर, शंभु और ईशान को नमन करता हूँ।
हरं सर्पहारं चिता भूविहारं
भवं वेदसारं सदा निर्विकारं।
श्मशाने वसन्तं मनोजं दहन्तं
शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥८॥
अर्थ: मैं उन शिव की वंदना करता हूँ, जो दुखों को हरने वाले हैं, जो सर्पों को आभूषण की तरह पहनते हैं, जो श्मशान में विचरण करते हैं। जो संसार के स्वामी, वेदों के सारतत्त्व, और सदैव निर्विकार हैं। श्मशान में निवास करते हुए, वे मन के विकारों को भस्म कर देते हैं। मैं ऐसे शिव, शंकर, शंभु और ईशान को नमन करता हूँ।
स्तवं यः प्रभाते नरः शूलपाणे
पठेत् सर्वदा भर्गभावानुरक्तः ।
स पुत्रं धनं धान्यमित्रं कलत्रं
विचित्रं समासाद्य मोक्षं प्रयाति ॥ ९॥
अर्थ: जो मनुष्य प्रभातकाल में, त्रिशूलधारी शिवजी के प्रति भक्तिभाव से प्रेरित होकर इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह पुत्र, धन, अन्न, मित्र, सुयोग्य पत्नी, और अद्भुत सांसारिक सुखों को प्राप्त करता है। और अंत में वह मोक्ष (जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति) को प्राप्त करता है।
॥ इति श्री शिवाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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शिवाष्टक स्तोत्र PDF
शिवाष्टक स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का एक दिव्य स्तोत्र है जो संस्कृत में रचा गया है। शिवरात्रि, श्रावण मास, अथवा किसी सोमवार के दिन इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत फलदायक माना गया है। यदि यह स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित PDF में उपलब्ध हो, तो पाठकों को इसे कहीं भी पढ़ना या साझा करना और भी सरल हो जाता है।
शिवाष्टक स्तोत्र PDF को आप यहाँ से मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं। ऑफलाइन पढ़ने के लिए इसे डाउनलोड करके मोबाइल या कंप्यूटर पर सुरक्षित रखें, ताकि सुबह-शाम इस शिवाष्टक स्तोत्र का नियमित पाठ किया जा सके।
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शिवाष्टक स्तोत्र PDF Free Download
शिवाष्टक स्तोत्र के लाभ
शिवाष्टक स्तोत्र भगवान शिव की महिमा में रचित एक अत्यंत प्रभावशाली संस्कृत स्तोत्र है। इसमें शिव के विभिन्न रूपों, गुणों और शक्तियों का गान किया गया है। यह स्तोत्र जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, दिव्यता और ईश्वर की कृपा लाने वाला अमोघ साधन है।
अब हम जानेंगे कि शिवाष्टक स्तोत्र के क्या-क्या लाभ हैं, और इसे पढ़ने से जीवन में क्या सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।
मानसिक शांति और तनाव से मुक्ति
शिवाष्टक स्तोत्र के नियमित पाठ से साधक का मन शांत रहता है तथा तनाव, चिंता व अशांति दूर रहती है।
नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा
शिवाष्टक स्तोत्र के उच्चारण मात्र से मन से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है, तथा सभी प्रकार की अदृश्य बाधाएं जैसे बुरी नज़र व भूत-प्रेत आदि दूर हो जाती है।
जीवन में सौभाग्य और समृद्धि का आगमन
जो भक्त श्रद्धा भाव से इस शिवाष्टक स्तोत्र का पाठ करता है, उसके जीवन में धन, संतान, मित्र और यश की सदा वृद्धि होती है। इस स्तोत्र का परिवार के साथ मिलकर पाठ करने से रिश्तों में प्रेम और सद्भाव बढ़ता है तथा धन-धान्य की कमी दूर हो जाती है।
रोगों का होता है नाश
भगवान् शिव को “वैद्यनाथ” भी कहा जाता है अर्थात भगवान शिव औषधियों के भी देवता माने गए हैं। अतः इस स्तोत्र के नियमित पाठ से मनुष्य के समस्त शारीरिक और मानसिक रोगों का नाश हो जाता है।
मृत्यु के भय से मुक्ति
भगवान् शिव को समर्पित इस स्तोत्र के पाठ से अकाल मृत्यु का भय मिटता है और वे कभी भी मृत्यु के भय से ग्रसित नहीं होते। जो मनुष्य भक्ति पूर्वक इस शिव स्तोत्र का नित्य पाठ करते हैं वे दीर्घायु जीवन को प्राप्त करते हैं।
आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति
निष्काम भाव से शिवाष्टक स्तोत्र का पाठ करने वाले भक्त साधक को शिवतत्त्व की ओर ले जाता है जिससे वो जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त करता है।
श्री शिवाष्टकम् स्तोत्र पाठ करने की विधि
शिवाष्टक स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित पढ़ने या उसका पाठ करने से पूर्व कुछ नियमों और विधियों का पालन करना शुभ और फलदायी माना जाता है। नीचे दी गई विधि से आप इसका पाठ कर सकते हैं।
- प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर इसका पाठ करना श्रेष्ठ माना गया है।
- पाठ करने के लिए किसी शांत व पवित्र स्थान चुनें।
- कुशा या ऊन का आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएँ।
- शिवलिंग, शिव-पार्वती की मूर्ति, या शिवजी के चित्र को अपने सामने रखें।
- अब शिवजी के समक्ष दीपक प्रज्वलित करें।
- शिवजी को जल, बिल्वपत्र, धूप, दीप, सफेद फूल और भस्म अर्पित करें।
- इसके उपरांत शिवजी के पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का स्मरण करते हुए ध्यान लगाएँ।
- फिर शिवाष्टक स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित या मूल संस्कृत में श्रद्धापूर्वक पाठ करें।
- पाठ के अंत में शिवजी की आरती (जैसे “ॐ जय शिव ओमकारा”) गाएँ तथा शिवजी से क्षमा प्रार्थना और आशीर्वाद की कामना करें।
- सोमवार, महाशिवरात्रि, या श्रावण मास के किसी भी दिन इसका पाठ विशेष फलदायक होता है।
श्री शिवाष्टकम् स्तोत्र पाठ FAQ
शिवाष्टक स्तोत्र क्या है?
शिवाष्टक स्तोत्र भगवान शिव की स्तुति में रचा गया एक पवित्र संस्कृत स्तोत्र है, जिसमें आठ श्लोकों के माध्यम से उनके स्वरूप, गुण और कृपा का वर्णन किया गया है।
शिवाष्टक स्तोत्र का पाठ किस समय करना चाहिए?
ब्रह्ममुहूर्त प्रातःकाल या संध्या प्रदोष काल में इसका पाठ करना श्रेष्ठ होता है। विशेषकर सोमवार, शिवरात्रि या श्रावण मास में इसका पाठ विशेष पुण्यदायक माना गया है।
शिवाष्टक स्तोत्र के लाभ क्या हैं?
शिवाष्टक स्तोत्र के नियमित पाठ से मन को शांति, आत्मविश्वास में वृद्धि, और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिलती है।
क्या महिलाएं शिवाष्टक स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं?
हाँ, भगवान शिव सभी भक्तों पर समान रूप से कृपालु हैं। कोई भी व्यक्ति, स्त्री-पुरुष, इस पाठ को कर सकता है।
क्या शिवाष्टक स्तोत्र बिना दीक्षा के पढ़ सकते हैं?
हाँ, कोई भी श्रद्धालु इसे भावपूर्वक पढ़ सकता है। इस स्तोत्र के पाठ के लिए किसी दीक्षा की जरुरत नहीं है।
निष्कर्ष
शिवाष्टक स्तोत्र एक ऐसा दिव्य स्तोत्र है जो भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का अचूक साधन माना गया है। चाहे आप इसे शिवाष्टक स्तोत्र संस्कृत में पढ़ें या शिवाष्टक स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित पड़ें, इसका प्रभाव समान रूप से आपके मन, जीवन और आत्मा पर पड़ता है। इस लेख में हमने न केवल स्तोत्र का शुद्ध पाठ प्रस्तुत किया है, बल्कि शिवाष्टक स्तोत्र PDF संस्करण भी उपलब्ध कराया है ताकि आप इसे आसानी से डाउनलोड कर सकें।
नियमित पाठ से मिलने वाले शिवाष्टक स्तोत्र के लाभ जैसे मानसिक शांति, बाधाओं से मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नत्ति इत्यादि को कोई भी श्रद्धालु अनुभव कर सकता है। यदि आप शिव भक्ति के मार्ग पर अग्रसर हैं, तो यह स्तोत्र आपके लिए अत्यंत उपयोगी और कल्याणकारी सिद्ध होगा।