श्री बगलामुखी स्तोत्र का नित्य पाठ माँ बगलामुखी की कृपा पाने का एक सरल माध्यम है। श्रद्धा और आस्थापूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करने से मां बगुलामुखी की कृपा शीघ्र हीं प्राप्त हो जाती है।
ऐसा उल्लेख मिलता है कि, इस कलिकाल में समस्त ग्रहों के शांति के लिए, शत्रुओं के नाश तथा कष्ट हरण के लिए बगुलामुखी स्तोत्र से बढ़कर कोई दूसरा साधन नहीं है।
मारन, मोहन, उच्चाटन तथा वशीकरण के लिए तो, ये बगुलामुखी स्तोत्र एक अमोध अस्त्र की तरह है।
बगलामुखी स्तोत्र | Baglamukhi Stotra
विनियोग
अस्य श्री बगलामुखी स्तोत्रस्य नारद ऋषिः बगलामुखीदेवता मम सन्निहितानां दुष्टानां विरोधीनां वाङ्गमुख-पद-जिह्वाबुद्धिनाम स्तंभनार्थे श्री बगलामुखी वर प्रसाद सिध्यर्थे जपे विनियोगः।
अङ्गन्यास
ॐ हीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ बगलामुखी तर्जनीभ्यां स्वाहा।
ॐ सर्व्दुष्टनां मध्यमाभ्यां वषट्।
ॐ वाचं मुखं पदं स्तम्भय अनामिकाभ्यां हुम्।
ॐ जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्।
ॐ बुद्धि विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा करतल कर प्रिष्टाभ्यां फट्।
ध्यान
सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांषुकोल्लासिनीं,
हेमाभांगरुचिं शषंकमुकुटां स्रक चम्पकस्त्रग्युताम्,
हस्तैमुद्गर, पाषबद्धरसनां संविभृतीं भूषणैव्यप्तिांगी
बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तये।
जप मंत्र
ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व्दुष्टनां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं स्वाहा।
माँ बगलामुखी स्तोत्र आसान भाषा में
किसी भी मंत्र या स्तोत्र का पाठ बिना सही उच्चारण के सिद्ध नहीं होते हैं। हममे से कई लोग बगलामुखी स्तोत्र में प्रयोग किये गए संस्कृत के कठिन शब्दों का सही से उच्चारण नहीं कर पाते हैं।
तो उन लोगों के लिए कुबेरेश्वर धाम की टीम ने बगलामुखी स्तोत्र के थीं संस्कृत के शब्दों को लघु रूप में लिखा है जिसे पढ़ना आपके लिए आसान हो जायेगा।
तो चलिए अब हम बगलामुखी स्तोत्र को संस्कृत के आसान और लघु शब्दों के साथ।
।। बगलामुखी स्तोत्र ।।
ऊँ मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्नविद्यां,
सिंहासनो-परिगतां परिपीतवर्णाम्।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं
देवीं भजामि धृत-मुद्गर वैरिजिव्हाम् ।।१।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवी
वामेन शत्रून परिपीडयन्तीम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन
पीताम्बराढयां द्विभुजां भजामि ।।२।।
चलत्कनक-कुण्डलोल्लसित चारु गण्डस्थलां
लसत्कनक-चम्पक-द्युति-मदिन्दु-बिम्बाननाम्।
गदाहत-विपक्षकां-कलित-लोल-जिह्वाचंलाम्।
स्मरामि बगलामुखीं विमुख-वाङ्ग-मनः -स्तम्भिनीम् ।।३।।
पीयूषोदधि-मध्य-चारु-वीलसद-रत्लोज्जवले मण्डपे
तत्सिंगहासन-मूल-पतित-रिपुं प्रेतसनाध्यासिनीम।
स्वर्णाभां-कर पीडितारि-रसनां भ्रामयद गदां विभ्रमाम
यस्तवां-ध्यायति यान्ति तस्य विलयं सद्योऽथ सर्वापदः ।।४।।
देवि त्वच्चरणाम्बुजार्चन-कृते यः पीतपुष्पान्जलीन्।
भक्तया वामकरे निधाय च मनुं मंत्री मनोज्ञाक्षरम्।
पीठध्यानपरोऽथ कुम्भक-वषाद्वीजं स्मरेत् पार्थिवः।
तस्यामित्र-मुखस्य वाचि हृदये जाडयं भवेत् तत्क्षणात् ।।५।।
वादी मूकति राङ्गति क्षितिपतिवैष्वानरः शीतति।
क्रोधी शाम्यति दुर्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खञ्जति।
गर्वी खर्वति सर्वविच्च जड्ति त्वद्यन्त्रणा-यंत्रितः।
श्रीनित्ये बगलामुखी प्रतिदिनं कल्याणि तुभ्यं नमः ।।६।।
मन्त्रस्तावदलं विपक्षदलनं स्तोत्रं पवित्रं च ते
यन्त्रं वादिनियन्त्रणं त्रिजगतां जैत्रं च चित्रं च ते।
मातः श्रीबगलेतिनामललितं यस्यास्ति जन्तोर्मुखे
त्वन्नाम-ग्रहणेन संसदि मुखस्तंभों भवेद् वादिनाम ।।७।।
दुष्ट-स्तम्भन मुग्र-विघ्न-शमनं दारिद्रय-विद्रावणम
भुभ्रित्संनमनं च यन्मृगद्रिषां चेतः समाकर्षणम्।
सौभाग्यैक-निकेतनं समदृषां कारुण्य-पुर्णेक्षणे
मृत्योर्मारणमाविरस्तु पुरतो मातस्त्वदीयं वपुः ।।८।।
मातर्भन्जय मद-विपक्ष-वदनं जिव्हां च संकीलय
ब्राह्मीं मुद्रय दैत्य-देव-धिषणामुग्रां-गतिं स्तम्भय।
शत्रूंश्रूचर्णय देवि तीक्ष्ण-गदया गौरागिं पीताम्बरे
विघ्नौघं बगले हर प्रणमतां कारूण्य-पूर्णेक्षणे ।।९।।
मात्भैरवी भद्रकालि विजये वाराहि विष्वाश्रये
श्रीविद्ये समये महेशि बगले कामेशि वामे रमे।
मातंगि त्रिपुरे परात्पर-तरे स्वर्गापवर्ग-प्रदे
दासोऽहं शरणागतः करुणया विश्वेश्वरि त्राहिमाम् ।।१०।।
संरम्भे चैरसंघे प्रहरणसमये बन्धने व्याधि-मध्ये
विद्यावादे विवादे प्रकुपितनृपतौ दिव्यकाले निशायाम् ।
वश्ये वा स्तम्भने वा रिपुवध-समये निर्जने वा वने वा
गच्छस्तिष्ठं-स्त्रिकालं यदि पठति शिवं प्राप्नुयादाषु-धीरः ।।११।।
नित्यं स्तोत्र-मिदं पवित्र-महि यो देव्याः पठत्यादराद्
धृत्वा यन्त्रमिदं तथैव समरे बाहौ करे वा गले।
राजानोऽप्यरयो मदान्ध-करिणः सर्पाः मृगेन्द्रदिकः
ते वै यान्ति विमो-हिता रिपु-गणाः लक्ष्मीः स्थिरा-सिद्धयः ।।१२।।
त्वं विद्या परमा त्रिलोक-जननी विघ्नौघसिंच्छेदिनी
योषाकर्षण-कारिणी त्रिजगतामा-नन्द सम्वर्धनि
दुष्टोच्चाटन-कारिणी जनमनः सम्मोह-संदायिनी
जिव्हा-कीलन भैरवि विजयते ब्रह्मादिमन्त्रो यथा ।।१३।।
विद्याः लक्ष्मीः सर्व-सौभाग्यमायुः
पुत्रैः पौत्रैः सर्व साम्राज्य-सिद्धिः।
मानं भोगो वष्यमारोग्य-सौख्यं
प्राप्तं-तत्तद्भूतलेऽस्मिन्नरेण ।।१४।।
यत्कृतं जपसन्नाहं गदितं परमेश्वरी।
दुष्टानां निग्रहार्थाय तद्गृहाण नमोऽस्तुते ।।१५।।
ब्रह्मास्त्रमिति विख्यातं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्।
गुरुभक्ताय दातव्यं न देयं यस्य कस्यचित् ।।१६।।
पितंबरां च द्वि-भुजां, त्रि-नेत्रां गात्र-कोमलाम्।
शिला-मुद्गर-हस्तां च स्मरेत्तां बगलामुखीम् ।।१७।।
।। बगलामुखी स्तोत्र सम्पूर्ण ।।
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श्री बगलामुखी स्तोत्र हिंदी में
किसी भी मन्त्रों या फिर स्तोत्रों को उसके अर्थ के साथ पढ़ने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। अतः पाठकों के लिए हमने यहाँ बगलामुखी स्तोत्र का सटीक हिंदी रूपांतरण ले के आये हैं।
माँ बगलामुखी देवी, दस महाविद्या में आठवीं महाविद्या है जिन्हें माँ पीताम्बरा नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में माँ बगलामुखी को स्तम्भन की देवी माना गया है।
अगर आप बगलामुखी स्तोत्र को संस्कृत में नहीं पढ़ पा रहे हों तो उसे हिंदी में भी पढ़ा जा सकता है। तो चलिए अब हम पढ़ते हैं बगलामुखी स्तोत्र हिंदी में।
।। माँ बगलामुखी स्तोत्र हिंदी में ।।
अमृत सागर के मध्य में मणि मंडप के रत्नों से बनी वेदी पर विराजमान सिंहासन पर बैठी हुई गौरवर्ण वाली, पीले वस्त्र और अनेक प्रकार के आभूषण तथा मालाओं से सुसज्जित शरीर वाली, हाथों में शत्रु की जिह्वा तथा मुद्गर धारण करने वाली श्री बगुलामुखी देवी को मैं भजता हूँ। ।।1।।
अपने बाएं हाथ से शत्रु की जिह्वा के अग्रभाग को तथा दाएं हाथ के मुद्गर से शत्रु को पीड़ा देने वाली, पीताम्बर से सुशोभित, दो भुजाओं वाली माँ पीताम्बरा देवी को मैं भजता हूं। ।।2।।
चमकते हुए स्वर्णकुण्डलों से विभूषित कपोलों वाली, स्वर्ण तथा चंपा पुष्प के समान चमकते हुए मुखचंद्र वाली, गदा के प्रहार से शत्रुदल को नष्ट करने वाली, सुन्दर चंचल जिह्वा वाली तथा शत्रुओं की मन और वाणी का स्तंभन करने वाली माता बगलामुखी का मैं स्मरण करता हूं। ।।3।।
अमृत सागर के मध्य, रक्तकमल दल से सुशोभित सिंहासन पर शत्रुओं को पटककर उन्हीं के मृतशरीर पर बैठी हुई स्वर्ण-कांति वाली , शत्रु जिह्वा को पीड़ित करने वाली, गदा को घुमाती हुई भगवती बगलामुखी का जो भी ध्यान करता है, उनकी सभी विपत्तियों का क्षणमात्र में नाश हो जाता है। ।।4।।
इसलिए हे देवी, जो भी श्रद्धा से आपके चरण कमलों के पूजन हेतु पीले पुष्पों की पुष्पांजलि अपने बाएं हाथ में लेकर, आपके सुन्दर मंत्र का स्पष्ट उच्चारण करता है तथा भगवती के आसन का ध्यान करके कुम्भक प्राणायाम द्वारा आपके बीजमंत्र का स्मरण करता है। उसके शत्रुओं के ह्रदय, मन और वाणी में तत्काल हीं जड़ता आ जाती है। ।।5।।
हे देवी, आपके यंत्र से यन्त्रित होने पर वक्ता भी गूंगा बन जाता है, राजा भी रंक हो जाता है, अग्नि भी शीतल हो जाती है, क्रोधी शत्रु भी शांत हो जाता है, दुष्ट सज्जन बन जाता है, शीघ्र चलने वाला लंगड़ा हो जाता है, अभिमानी पुरुष का अभिमान चूर हो जाता है और सर्वज्ञ व्यक्ति भी मुर्ख बन जाता है। इसलिए हे, कल्याण करने वाली लक्ष्मीरूपा माता बगुलामुखी, तुम्हें बार बार नमस्कार है। ।।6।।
हे माता, एक मात्र तुम्हारा मंत्र हीं शत्रुओं का दलन करने में समर्थ है, तुम्हार ये स्तोत्र अत्यंत पवित्र है और आपका यंत्र शत्रुओं को नियंत्रित करने वाला, तीनों लोको में श्रेष्ठ एवं विजय देने में विचित्र है। हे देवी, जो भी तुम्हारे नाम और मंत्र का स्मरण करता है उसके शत्रुओं के मुख का अवश्य हीं स्तंभन हो जाता है। ।।7।।
हे माते! दुष्टों का दमन करने वाला, कठिन से कठिन विघ्नों को शांत करने वाला, दरिद्रता को दूर करने वाला, राजाओं के भय का नाश करने वाला, चंचल नेत्रों वाली सुंदरियों के चित को खींचने वाला, सौभाग्यदायक आश्रय देने वाला और मृत्यु से रक्षा करने वाला यह आपका दिव्य शरीर मेरे सामने प्रकट होवे, यही मेरी प्रार्थना है। ।।8।।
हे गौर वर्ण तथा पीताम्बर धारण करने वाली माता बगुलामुखी, मेरे शत्रुओं का मुख तोड़ डालो, उनकी जिह्वा स्तंभित कर दो, उनकी वाणी बंद कर दो तथा बुद्धि नष्ट कर दो। उनके चलने की गति रोक दो तथा अपनी तीक्ष्ण गदा से शत्रुओं को कचल कर चूर चूर कर दो। हे करुणापूर्ण नेत्रवाली माता, अपने शरण में आये भक्तों की विघ्न बाधाएं एवं विपत्तियों को हर लो। ।।9।।
हे माता, भैरवी, भद्रकालि, विजया, वाराहि, विष्वाश्रये, लक्ष्मी, समाया, महेशी, बगला, कामेशि, रामा, रमा, मातंगी, परात्परा, त्रिपुरादेवी आदि नामोंवाली, भक्तों को भुक्ति-मुक्ति देने वाली हे जगजननी, मैं आपका सेवक आपकी शरण आया हूँ, मेरी रक्षा करें। ।।10।।
हे माता, युद्ध में, चोरों के समूह में, प्रहार के समय में, बंधन में, जल के मध्य में, शास्त्रार्थ करने में, विवाद में, राजा के क्रोध करने पर, रात्रि में, शुभ अवसर पर, वशीकरण और स्तंभन के समय में, निर्जन स्थान में अथवा वन में, उठते बैठते तीनों कालो में जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है, वो धीर पुरुष शीघ्र हीं कल्याण को प्राप्त होता है। ।।11।।
जो मनुष्य देवी के इस पवित्र स्तोत्र का प्रतिदिन प्रेमपूर्वक पाठ करता है तथा जो आपके यन्त्र को अपने हाथ, कलाई या गले में धारण करता है, उसके सामने राजा, शत्रु, मतवाला हाथी, सर्प एवं सिंह आदि सभी मोहित हो जाते हैं। साथ हीं साथ उसके पास लक्ष्मी तथा आठों सिद्धियां भी स्थिर हो जाती हैं। ।।12।।
हे माते, आप परम विद्या हैं, तीनों लोको की माता हैं, भक्तों के विघ्नों को हरने वाली हैं। आप स्त्रियों का आकर्षण बढ़ाने वाली हैं, त्रिलोक में व्याप्त सर्वत्र आनंद को बढ़ाने वाली हैं, दुष्टों का उच्चाटन करने वाली हैं, सभी प्राणियों के मन को वश में करने वाली हैं, शत्रु की जीभ को कीलित करने वाली हैं। हे भैरवि! जिस प्रकार ब्रह्मा आदि देवताओं के मंत्र सदा विजयप्रद होते हैं उसी प्रकार आपका मंत्र भी सर्वदा विजय कराता है। ।।13।।
इस संसार में जिसने भी आपके स्तोत्र का श्रवण तथा पाठ किया है, उसने विद्या, लक्ष्मी, सौभाग्य, आयु, पुत्र, पौत्र, मान, ऐष्वर्य, वशीकरण शक्ति, आरोग्य सुख आदि को प्राप्त कर लिया। ।।14।।
हे देवि, हे पामेश्वरी, आपके जप करने वाले तथा मुझसे जो उच्चारित किया गया मंत्र है, उससे दुष्टों का नाश होता है। आपको मेरा बार बार नमस्कार है। हे भगवति, इसे ग्रहण करें। ।।15।।
आपका यह स्तोत्र ब्रह्मास्त्र की भांति तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। यह स्तोत्र गुरु भक्त एवं श्रद्धालुओं को ही देना चाहिए। ।।16।।
पिले वस्त्र को धारण करने वाली, दो भुजाओं, तीन नेत्रों, उज्ज्वल शरीर वाली, शिला मुद्गर धारण करने वाली मां बगलामुखी का सर्वदा स्मरण करना चाहिए। ।।17।।
।। माँ बगलामुखी स्तोत्र हिंदी में समाप्त ।।
बगलामुखी स्तोत्र के लाभ
बगुलामुखी स्तोत्र माँ बगुलामुखी को समर्पित एक ऐसा स्तोत्र है जिसे नियमित पाठ से साधक के जीवन से सभी प्रकार के शत्रुओं का भय समाप्त हो जाता है। इस स्तोत्र का पाठ बुरी नजर, काला जादू, क़ानूनी मामलों, दुर्घटनाओं और हर संकट से सुरक्षा प्रदान करता है।
माँ बगुलामुखी स्तोत्र से सम्बंधित अन्य प्रश्न | FAQ
बगलामुखी कौन हैं?
बगलामुखी देवी सनातन धर्म की दस महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या मानी जाती हैं। इन्हे ‘पीताम्बरा’ और ‘विजया’ के नाम से भी जाना जाता है।
मां बगलामुखी का बीज मंत्र क्या है?
माता बगलामुखी मूल मंत्र इस प्रकार है :
ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टानाम वाचं मुखम पदम् स्तम्भय। जिव्हां कीलय बुद्धिम विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा ।।
बगलामुखी स्तोत्र क्या है?
बगलामुखी स्तोत्र माँ बगलामुखी की गुणों और शक्तियों की स्तुति करने का एक दिव्य माध्यम है। इस स्तोत्र के पाठ से माँ बगुलामुखी अति शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं।
क्या बगलामुखी स्तोत्र का पाठ कोई भी कर सकता है?
हाँ, बगलामुखी स्तोत्र का पाठ कोई भी चाहे वह महिला हो या पुरुष हो, वो कर सकता है। इसके लिए विशेष ज्ञान या किसी गुरु से दीक्षा लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।
बगलामुखी का पाठ कब करना चाहिए?
अगर आपके भीतर किसी भी व्यक्ति, वस्तु, परिस्थिति के कारण भय उत्पन्न हो रहा हो और सदैव अज्ञात का डर हावी रहता हो तब माँ बगुलामुखी के इस भयनाशक मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए।
निष्कर्ष
तो कैसी लगी श्री बगलामुखी स्तोत्र से जुडी ये जानकारी। हमने यहाँ आपको श्री बगलामुखी स्तोत्र अर्थ सहित समझाने की भी कोशिश की है।
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