श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र माता विन्ध्येश्वरी को समर्पित एक स्तोत्र है। आज के ब्लॉग पोस्ट में हम विन्ध्येश्वरी स्तोत्र अर्थ सहित जानेगें।
भगवती विन्ध्येश्वरी आद्यशक्ति माँ जगदम्बा का हीं भक्त वत्सल रूप है। विंध्याचल पर्वत पर निवास करने की वजह से माता के इस रूप का नाम विन्ध्येश्वरी अथवा विन्ध्यवासिनी पड़ा।
ऐसी मान्यता है कि माता यहाँ नित्य पूर्ण रूप से उपस्थित रहती हैं अतः यह पावन स्थल माता का एक जाग्रत शक्तिपीठ कहा जाता है।
माता विन्ध्येश्वरी की भक्ति अत्यंत हीं सरल है। भगवती विन्ध्येश्वरी थोड़ी सी भक्ति से शीघ्र हीं अपने भक्तों के कष्टों को हर लेती हैं।
श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र
जो भी मनुस्य श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र या चालीसा का नियमित पाठ करता है उनकी मनोकामना पूर्ण होते देर नहीं लगती।
तो चलिए अब हम श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र का पाठ करते हैं।
विंध्यवासिनी स्तोत्र PDF
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श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र सरल भाषा में
यहाँ हम श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र को संस्कृत के ऐसे लघु शब्दों के माध्यम से लिखा है जिससे आप इस स्तोत्र के जटिल संस्कृत शब्दों को सही उच्चारण के साथ आसानी से पढ़ सकेगें।
।। श्रीविन्ध्येश्वरीस्तोत्रं ।।
निशुम्भ-शुम्भ-मर्दिनीं, प्रचण्ड-मुण्ड-खण्डिनीम्।
वने-रणे प्रकाशिनीं, भजामि विन्ध्य-वासिनीम्।।1।
त्रिशूल-मुण्ड-धारिणीं, धरा-विघात-हारिणीम्।
गृहे गृहे निवासिनीं, भजामि विन्ध्य-वासिनीम।।2।।
दरिद्र-दु:ख-हारिणीं, सतां विभूति-कारिणीम्।
वियोग-शोक-हारिणीं, भजामि विन्ध्य-वासिनीम्।।3।।
लसत-सुलोल-लोचनां, लतां सदा-वर-प्रदाम्।
कपाल-शूल-धारिणीं, भजामि विन्ध्य-वासिनीम्।।4।।
करे मुदा गदा-धरां, शिवां शिव-प्रदायिनीम्।
वरा-वरा-ननां शुभां, भजामि विन्ध्य-वासिनीम्।।5।
ऋषीन्द्र-जामिन-प्रदां, त्रिधास्य-रूप-धारिणिम्।
जले स्थले निवासिनीं, भजामि विन्ध्य-वासिनीम्।।6।।
विशिष्ट-सृष्टि-कारिणीं, विशाल-रूप-धारिणीम्।
महोदरां विशालिनीं, भजामि विन्ध्य-वासिनीम्।।7।।
प्रन्दरादि-सेवितां, मुरादि-वंश-खण्डिनीम्।
विशुद्ध-बुद्धि-कारिणीं, भजामि विन्ध्य-वासिनीम्।।8।।
।।इति श्रीविन्ध्येश्वरीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र अर्थ सहित
हममे से कई लोगों को संस्कृत में पाठ करने में कठिनाई होती है तो वो श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र का पाठ हिंदी में कर सकते हैं। तो चलिए अब हम जानते हैं श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र अर्थ सहित।
।। श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र ।।
शुम्भ और निशुम्भ का मर्दन करने वाली, चण्ड तथा मुण्ड का संहार करने वाली, वन तथा युद्ध भूमि में अपना पराक्रम देखने वाली माता विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ ।।१।।
त्रिशूल और मुण्ड को धारण करने वाली, धरती के संकट को हरने वाली तथा घर-घर में निवास करने वाली माता विन्धवासिनी की मैं आराधना करता हूँ ।।२।।
दरिद्रों का दु:ख हरने वाली, सत्कर्म करने वालों का कल्याण करने वाली तथा वियोग का शोक दूर करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी को मैं भजता हूँ ।।३।।
आकर्षक और चंचल नेत्रों से शोभायमान होने वाली, कोमल नारी विग्रह से शोभा पाने वाली, सदैव वर को प्रदान करने वाली तथा कपाल तथा शूल को धारण करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ ।।४।।
प्रसन्नतापूर्वक अपने हाथ में गदा को धारण करने वाली, कल्याणमयी, सर्वविध मंगल प्रदान करने वाली तथा सभी सुरुप-कुरुप में व्याप्त परम शुभ स्वरुपा माता विन्ध्यवासिनी को मैं भजता हूँ ।।५।।
ऋषि श्रेष्ठ के यहाँ पुत्री रुप में प्रकट होकर ज्ञान प्रदान करने वाली, महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती रूप में तीनों स्वरुपों को धारण करने वाली और जल तथा स्थल में निवास करने वाली माता विन्ध्यवासिनी को मैं भजता हूँ ।।६।।
विशिष्टता को सृजन करने वाली, वृहत रूप धारण करने वाली, महान उदर से युक्त और व्यापक विग्रह वाली माता विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ ।।७।।
इन्द्र आदि देवताओं के द्वारा पूजित, मुर आदि राक्षसों के वंश का नाश करने वाली तथा अत्यन्त पवित्र बुद्धि को प्रदान करने वाली माता विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ ।।८।।
।। श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र समाप्त ।।
निष्कर्ष
माँ आदिशक्ति के सभी 51 शक्तिपीठों में यही एक शक्तिपीठ ऐसा है जहाँ माँ की सर्वांगीण रूप में पूजा होती है। बाकि के सभी शक्तिपीठों में देवी के किसी एक विशेष अंग की पूजा होती है।
मान्यता है कि जो भी मनुष्य माता के इस निवास स्थान पे आकर तप करता है उसे शीघ्र हीं सिद्धि कि प्राप्ति हो जाती है।
तो कैसी लगी श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र से जुडी ये जानकारी। हमने यहाँ आपको श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र अर्थ सहित समझाने की भी कोशिश की है।
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