पढ़ें रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में

शिव तांडव स्तोत्र मूलतः कठिन संस्कृत में लिखा है जिसे पढ़ना कई भक्तो के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है अतः इस ब्लॉग पोस्ट में हमने शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में भी लिखा है ताकि आप सभी इस स्तोत्र का सही उच्चारण कर सकें।

साथ ही, आपके लिए “शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में PDF” भी उपलब्ध किया है, जिसे डाउनलोड कर आप कभी भी, कहीं भी इस पावन स्तोत्र का अभ्यास कर सकते हैं।

शिव तांडव स्तोत्र | Shiv Tandav Stotram Lyrics

शिव तांडव स्तोत्र की रचना भगवान् शिव के परम भक्त लंकापति रावण ने की थी अतः इसे रावण तांडव स्तोत्र के नाम से भी जाना जाता है। 17 श्लोको का ये स्त्रोत भगवान् शिव को अतिप्रिय है। इस स्त्रोत के नित्य पाठ से भगवान् शिव अतिशीघ्र प्रसन्न हो जातें हैं।

चाहे आप स्वस्थ्य सम्बन्धी समस्यायों से जूझ रहें हों या फिर किसी भी प्रकार के तंत्र, मंत्र या शत्रु से परेशान हों, उस स्तिथि में रावण कृत शिव तांडव स्त्रोत (Shiv Tandav Stotram) का पाठ अत्यंत लाभदायक है।

शिव तांडव स्त्रोत
शिव तांडव स्त्रोत

शिव तांडव स्तोत्र कैसे याद करें

क्या आप ये सोच रहे हैं कि “शिव तांडव स्तोत्र कैसे याद करें”? ये स्तोत्र मूलरूप से संस्कृत में लिखा गया है जिसमे अत्यंत कठिन शब्दों का प्रयोग किया गया है।

कई भक्तों के लिए इसके जटिल श्लोकों को याद करना चुनौतीपूर्ण लग सकता है, लेकिन हमने यहाँ प्रत्येक श्लोकों को लघु रूप में प्रस्तुत किया है जिनसे आप इसे बिना कठिनाई के कंठस्थ कर पाएंगे।

पढ़ें शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥1॥

लघु रूप :
जटा-अटवी-गलत्-जल-प्रवाह-पावित-स्थले
गले-अवलम्ब्य लम्बितां भुजंग-तुङ्ग-मालिकाम्
डमड्-डमड्-डमड्-डमत्-निनाद-वड्डमर्वयं
चकार चण्ड-ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥1॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्जलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

लघु रूप :
जटा-कटाह-सम्भ्रम-भ्रमत्-निलिम्प-निर्झरी
विलोल-वीचि-वल्लरी-विराजमान-मूर्धनि
धगत्-धगत्-धगज्ज्वलत्-ललाट-पट्ट-पावके
किशोर-चन्द्र-शेखरे रतिः प्रति-क्षणं मम ॥२॥

धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

लघु रूप :
धरा-धर-इन्द्र-नन्दिनी-विलास-बन्धु-बन्धुर
स्फुरत्-दिग्-अन्त-सन्तति-प्रमोद-मान-मानसे
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धर-आपदि
क्वचित्-दिगम्बरे मनो विनोदम्-एतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्‍भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥

लघु रूप :
जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्-फणा-मणि-प्रभा
कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव-प्रलिप्त-दिक्-वधू-मुखे
मद-अन्ध-सिन्धुर-स्फुरत्-त्वक्-उत्तरीय-मेदुरे
मनो विनोदम्-अद्भुतं बिभर्तु भूत-भर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥

लघु रूप :
सहस्र-लोचन-प्रभृति-अशेष-लेख-शेखरः
प्रसून-धूलि-धोरणी विधूसर-अङ्घ्रि-पीठ-भूः
भुजंग-राज-मालया निबद्ध-जाट-जूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥

लघु रूप :
ललाट-चत्वर-ज्वलत्-धनञ्जय-स्फुलिङ्ग-भा
निपीत-पञ्च-सायकं नमत्-निलिम्प-नायकम्
सुधा-मयूख-लेखया विराजमान-शेखरं
महा-कपालि-सम्पद्-शिरो-जटालम्-अस्तु नः ॥६॥

करालभालपट्टिकाधगद्‍धगद्‍धगज्ज्वलद्
धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥

लघु रूप :
कराल-भाल-पट्टिका-धगत्-धगत्-धगज्ज्वलत्
धनञ्जय-आहुति-कृत-प्रचण्ड-पञ्च-सायके
धरा-धर-इन्द्र-नन्दिनी-कुच-अग्र-चित्र-पत्रक
प्रकल्पन-एक-शिल्पिनि त्रि-लोचने रतिः-मम ॥७॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्‍धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

लघु रूप :
नवीन-मेघ-मण्डली निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
कुहू-निशीथिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः
निलिम्प-निर्झरी-धरः-तनोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगत्-धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥

लघु रूप :
प्रफुल्ल-नील-पङ्कज-प्रपञ्च-कालिम-प्रभा
वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचि-प्रबद्ध-कन्धरम्
स्मर-च्छिदं पुर-च्छिदं भव-च्छिदं मख-च्छिदं
गज-च्छिदम्-अन्धक-च्छिदं तम्-अन्तक-च्छिदं भजे ॥९॥

अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥

लघु रूप :
अखर्व-सर्व-मङ्गला-कला-कदम्ब-मञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी-विजृम्भणा-मधुव्रतम्
स्मर-अन्तकं पुर-अन्तकं भव-अन्तकं मख-अन्तकं
गज-अन्तक-अन्धक-अन्तकं तम्-अन्तक-अन्तकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्‍भुजङ्गमश्वसद्
विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥

लघु रूप :
जयत्-त्वत्-अभ्र-विभ्रम-भ्रमत्-भुजङ्ग-मश्वसद्
विनिर्गमत्-क्रम-स्फुरत्-कराल-भाल-हव्यवाट्
धिमि-द्धिमि-ध्वनन्-मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल-ध्वनि-क्रम
प्रवर्तित-प्रचण्ड-ताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥१२॥

लघु रूप :
दृषद्-विचित्र-तल्पयोः-भुजङ्ग-मौक्तिक-स्रजोः
गरिष्ठ-रत्न-लोष्ठयोः सुहृत्-विपक्ष-पक्षयोः
तृण-अरविन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
सम-प्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजामि-अहम्

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन् ।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

लघु रूप :
कदा निलिम्प-निर्झरी-निकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरः-स्थ-मञ्जलिं वहन्
विलोल-लोल-लोचनो ललाम-भाल-लग्नकः
शिव-इति मन्त्रम्-उच्चरन् कदा सुखी भवामि-अहम् ॥१३॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥१४॥

लघु रूप :
इमं हि नित्यम्-एव-मुक्तम्-उत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्-स्मरन्-ब्रुवन्-नरः विशुद्धिम्-एति-संततम्
हरे गुरौ सु-भक्तिम्-आशु याति न-अन्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सु-शङ्करस्य चिन्तनम् ॥१४॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यःशम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१५॥

लघु रूप :
पूजा-अवसान-समये दश-वक्त्र-गीतं
यः-शम्भु-पूजन-परं पठति प्रदोषे
तस्य स्थिरां रथ-गज-इन्द्र-तुरङ्ग-युक्तां
लक्ष्मीं सदैव सु-मुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१५॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥

लघु रूप :
इमम्-हि-नित्यम्-एव-मुक्त-उत्तमोत्तमम्-स्तवम्
पठन्-स्मरन्-ब्रुवन्-नरः-विशुद्धिम्-एति-संततम्
हरे-गुरौ-सुभक्तिम्-आशु-याति-न-अन्यथा-गतिम्
विमोहनम्-हि-देहिनाम्-सुशङ्करस्य-चिन्तनम् ॥१६॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

लघु रूप :
पूजा-अवसान-समये-दशवक्त्र-गीतम्
यः-शम्भु-पूजन-परम्-पठति-प्रदोषे
तस्य-स्थिराम्-रथ-गज-इन्द्र-तुरङ्ग-युक्ताम्
लक्ष्मीम्-सदैव-सुमुखीम्-प्रददाति-शम्भुः

भगवान् शिव से सम्बंधित अन्य स्तोत्र :
शिव रुद्राष्टकम
शिव रक्षा स्तोत्र
दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र
पशुपत्यष्टकम
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र

शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में PDF

शिव तांडव स्तोत्र सिर्फ एक स्तुति नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है, जो जीवन की हर चुनौती में आपको शक्ति देता है। अगर आप इसे सरल हिंदी में पढ़ना या याद करना चाहते हैं, तो हमारे ब्लॉग पर शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में PDF डाउनलोड कर सकते हैं।

शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में PDF Download करने के लिए नीचे बने बटम पे क्लिक करके इसे अपने मोबाइल या कंप्यूटर में सेव कर सकते हैं ताकि आप इसका पाठ नित्य कर सकें।

शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में

शिव तांडव स्त्रोत हिंदी में अर्थ सहित

कहा जाता है कि रावण द्वारा रचित यह स्तोत्र भोलेनाथ की असीम कृपा पाने का सबसे सरल मार्ग है। परंतु, इसके जटिल शब्दों और भावों को समझे बिना इसका पूरा लाभ नहीं मिल पाता।

क्या आप भी इसके संस्कृत श्लोकों के गहन अर्थों को समझने में अपने आपको असमर्थ पाते हैं? तो चिंता न करें, इस ब्लॉग में हमने शिव तांडव स्तोत्र के हर श्लोक को इतनी सरल और स्पष्ट हिंदी में समझाया है कि हर उम्र के भक्त इसकी गूढ़ बातों को आसानी से समझ सकेगें।

आइए, इस पवित्र स्तोत्र की हर पंक्ति को सरलता से जानें और शिव की अनंत कृपा को अपने हृदय में बसाएं।

॥ शिव तांडव स्त्रोत हिंदी में ॥

श्लोक 1
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥1॥

हिंदी अर्थ :
आपके जटाओं से प्रवाहित होती गंगाजल आपके कंठ-प्रदेश को निरंतर पवित्र कर रही हैं और लंबे-लंबे सर्प मालाएं की तरह गले में लटकीं हैं। जिनके डमरू से डमड-डमड का नाद हो रहा है तथा जो शुभ तांडव नृत्य कर रहें हैं, वे शिवजी हम सबको सम्पन्नता प्रदान करें।

श्लोक 2
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्जलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

हिंदी अर्थ :
जिनकी जटाएं लम्बी और गंगा की धारा से युक्त हैं तथा वो गंगा की चंचल लहरों की भांति लहरा रहीं हैं। जिनके ललाट पे अग्नि की ज्वालायें धधक धधक के प्रज्वलित हो रही हैं, ऐसे बाल-चन्द्रमा को अपने मस्तक पे धारण करने वाले भगवान् शिव में मेरा प्रेम प्रतिक्षण बढ़ता रहे।

श्लोक 3
धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

हिंदी अर्थ :
पर्वतराज हिमालय की पुत्री अर्थात माता पार्वती की विलासमय रमणीक दृस्टि से परम आनंद को उपलब्ध चित वाले महेश्वर, सभी दिशाओं में सूक्ष्म तरंगें फैला रहें हैं। जिनकी कृपादृष्टि मात्र ही समस्त दुखों का नाश कर देतीं हैं। ऐसे दिगंबर भगवान् शिव की आराधना से मेरा मन कब आनंदित होगा।

श्लोक 4
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्‍भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥

हिंदी अर्थ :
जिनके जटाओं में विराजमान सर्प, अपने फन के मणियों के द्वारा केसर की भांति प्रभा से सभी दिशाओं में विभिन्न रंग बेखेर रहा है, जो कुमकुम विलेपित किसी वधु के सामान प्रतीत हो रही हैं। मदमस्त गजराज के चर्म से बने वस्त्र धारण करने वाले और समस्त प्राणियों की रक्षा करने वाले ऐसे भगवान् शिवजी में मेरा मन आनंद को उपलब्ध हो।

श्लोक 5
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥

हिंदी अर्थ :
जिनके चरणों में हजार नेत्रों वाले इंद्र के समान अगणित देवताओं का सर झुका हो,जिनके पैर फूलों के पराग-कणों से सुशोभित हैं, जिनकी जटाएं सर्पराज से बंधी हो, तथा जो चकोर के मित्र चन्द्रमा को अपने मस्तक पे धारण करतें हैं, ऐसे भगवान् शिव चिरकाल तक हमें सम्पदा प्रदान करें।

श्लोक 6
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥

हिंदी अर्थ :
अपने ललाट के मध्य में प्रज्वलित अग्नि-ज्वाला से कामदेव को भस्म करने वाले, समस्त जीवों को जीवन प्रदान करने वाले देव, जिनका मस्तक अर्ध-चंद्र से सुशोभित हो रहा है तथा जो नर-मुंड धारण करने वाले हैं ऐसे भगवान् शिव की जटाओं मे स्थित सम्पदा हमें प्राप्त हो।

श्लोक 7
करालभालपट्टिकाधगद्‍धगद्‍धगज्ज्वलद्
धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥

हिंदी अर्थ :
आपके तीसरे नेत्र की असीम ऊर्जा से प्रज्वलित अग्नि कामदेव को भस्म करने वाली है साथ ही माता पार्वती के साथ इस सृस्टि का निर्माण करने वाले हे त्रिनेत्रधारी आप भगवान् शिव में मेरी रूचि अटल हो।

श्लोक 8
नवीनमेघमण्डली निरुद्‍धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

हिंदी अर्थ :
नवीन काले मेघों के सामान, अमावश्या के अंधकार से भी अधिक गहरे, अपने कंठ मे सर्पराज को बांधे, माँ गंगा की धारा को धारण करने वाले, गजराज के चर्म से सुशोभित, जो इस जगत के सृजन का आधार हैं तथा चन्द्रमा के सारे कलाओं के स्वामी हैं, ऐसे भगवान् शिव मुझे हर प्रकार की संपत्ति दें।

श्लोक 9
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥

हिंदी अर्थ :
ब्रह्माण्ड में छाया अन्धकार जिनके कंठ में संपूर्णरूप से खिले कमल के भांति नीला प्रतीत हो रहा हो, जो सर्प को गले में धारण किये किसी वृक्ष के जड़ों के समान प्रतीत हो रहें हो, कामदेव और त्रिपुरासुर का विनाश करने वाले, समस्त बंधनों से मुक्त करने वाले, अंधकासुर, गजासुर तथा साक्षात् यम को भी परास्त करने वाले भगवान् शिव को मैं नमन करता हूँ।

श्लोक 10
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥

हिंदी अर्थ :
माता पार्वती के मस्तक पे चढ़े पुष्पों से निकलते मधुरता का, मधुमक्खियो की भांति आस्वादन करने वाले, कामदेव और त्रिपुरासुर का विनाश करने वाले, समस्त बंधनों से मुक्त करने वाले, अंधकासुर, गजासुर तथा साक्षात् यम को भी परास्त करने वाले भगवान् शिव को मैं नमन करता हूँ।

श्लोक 11
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्‍भुजङ्गमश्वसद्
विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥

हिंदी अर्थ :
अत्यंत तीव्रता से घूमते हुए तथा अदम्भ्य ऊर्जा से भरे सर्पों की फूपकार से, आपके ललाट से मानो यज्ञ के समान अग्नि प्रज्वलित हो रही है, पवित्र मृदंग की धिमिध-धिमिध की निरंतर मंगलघोष पे प्रचंड तांडव नृत्य करने वाले हे भगवान् शिव आपकी जय हो।

श्लोक 12
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥१२॥

हिंदी अर्थ :
अत्यंत कठोर पत्थर और कोमल शैय्या में, सर्पों के हार और मोतियों की माला में, मिट्टी के ढेर और बहुमूल्य रत्नों में, शत्रु और परम मित्रों में, घांस के तिनके और कमल की पखुड़ियों में, सामान्य प्रजा-जन और महान सम्राट में समान मनोभाव रखते हुए मैं कब आप भगवान् सदाशिव की पूजा का अधिकारी बनूँगा।

श्लोक 13
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन् ।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

हिंदी अर्थ :
गंगा के तट पे, अपने मस्तक के ऊपर अपने हाथों को जोर नमस्कार की मुद्रा में, नकारात्मक भाव से मुक्त हो अटूट श्रद्धा से अपने भोहों के मध्य ध्यान केंद्रित किये, मैं कब शिव-मंत्र की स्तुति करते आनंदित अनुभव करूँगा।

श्लोक 14
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥१४॥

हिंदी अर्थ :
भगवान शिव के शरीर से निकलती प्रकाश की किरणें, जो की देवराज इंद्र के राज्य अमरावती के फूलों के रस के समान हैं, मुझे सर्वोच्य स्थान और परम आनंद को प्रदान करें।

श्लोक 15
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यःशम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१५॥

हिंदी अर्थ :
भगवान् शिव के नाम का मंत्र अग्नि के चमक की भांति सभी दिशाओं में अपनी पवित्रता फैला रहा है, अष्टसिद्धि की कामना रखने वालों के द्वारा की गई प्रार्थना तथा माँ पार्वती के द्वारा गुनगुनाये गए ये शिव नाम रूपी मंत्र, जो मेरे आभुषण के समान हैं, वो मुझे संसार पे विजय पाने का आशीर्वाद दें।

श्लोक 16
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥

हिंदी अर्थ :
जो इस उत्तम से भी उत्तम स्त्रोत का नित्य पाठ, स्मरण या श्रवण करता है वो अनंत पवित्रता को प्राप्त कर लेता है | भगवान् शिव के चिंतन मात्र से व्यक्ति गुरु-कृपा और प्रभु-कृपा का भागी बन जाता है तथा अधोगति और समस्त बंधनों से मुक्त हो जाता है।

श्लोक 17
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

हिंदी अर्थ :
शिव पूजा के अंत में जो भी दशानन रावण रचित भगवान् शिव की इस स्तुति का गान प्रदोष-काल में करता है उन्हें स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है तथा वो भगवान् शिव के कृपा के अधिकारी बनतें हैं।

शिव तांडव स्त्रोत का पाठ कैसे करें

अगर आप शिव तांडव स्त्रोत का लाभ पूर्ण रूप से पाना चाहते हैं तो ये जरुरी हो जाता है की आप इसका पाठ विधि पूर्वक हीं करें। तो चलिए हम अब ये जानते हैं कि रावण कृत शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कैसे और कब करें।

  • प्रदोष-काल भगवान् शिव को अति-प्रिय होने की वजह से शिव तांडव स्त्रोत का पाठ प्रदोष-काल में सर्वोत्तम माना गया है।
  • शिवजी के जलाभिषेक के उपरांत उन्हें धुप, दीप और नैवैद्ययम अर्पित करें।
  • तदुपरांत शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करें। इस स्त्रोत का उच्च स्वर में पाठ करना सर्वोत्तम माना गया है।
  • पाठ करने के बाद शिवजी का ध्यान और प्रार्थना करें।

शिव तांडव स्तोत्र के लाभ | Shiv Tandav Stotram Benefits

भगवान शिव को समर्पित शिव तांडव स्तोत्र (Shiv Tandav Stotra) में प्रयोग किये गए एक एक शब्द अत्यंत ऊर्जा और सकारात्मकता से भरे हैं। लंकापति रावण के द्वारा रचित शिव तांडव स्तोत्र के शब्द और लय आपको थोड़े कठिन मालूम पड़ सकते हैं, परन्तु यदि आपने इसका पाठ भगवान् शिव के भक्तिभाव में डूबकर किया तो कुछ ही दिनों में आप इसे कंठस्थ भी कर सकते हैं, और शिव तांडव स्तोत्र के लाभ को प्राप्त कर सकते है।

शिव तांडव स्तोत्र के लाभ

शिव तांडव स्तोत्र का नियमित रूप से किया गया पाठ स्थिर लक्ष्मी को प्रदान करने वाला है।

रावण कृत शिव तांडव स्तोत्र (Shiv Tandav Stotram) का पाठ आत्मविश्वास में वृद्धि करने वाला तथा उत्कृष्ट व्यक्तित्व प्रदान करने वाला है।

शिव तांडव स्त्रोत लंकापति रावण के द्वारा रचित अत्यंत शक्तिशाली एवं ऊर्जावान रचना है जो भगवान् शिव को अत्यधिक प्रिय है। इसके नियमित पाठ से अष्ट-सिद्धियों को भी पाया जा सकता है।

हममे से कई लोग शारीरिक और मानसिक बिमारियों से पड़ेशान रहते हैं। ऐसे में रावण कृत शिव तांडव स्तोत्र का पाठ जरूर करें। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ व्यक्ति के हर प्रकार के शारीरिक और मानसिक व्याधियों का नाश करने वाला है।

यदि आप अपने ऊपर किये गए किसी भी प्रकार के तंत्र,मंत्र या शत्रु के प्रभाव को समाप्त करना चाहते हैं तो रावण रचित इस शिव तांडव स्तोत्र (Shiv Tandav Stotram) का पाठ नित्य-प्रतिदिन अवश्य करें।

रावण कृत शिव तांडव स्तोत्र के नियमित पाठ से पितृदोष, कालसर्प दोष तथा शनि के कुप्रभावों से मुक्ति मिलती है।

शिव तांडव स्तोत्र की उत्पत्ति कैसे हुई

ऐसे तो हिन्दू धर्म-ग्रंथों में भगवान् शिव को प्रसन्न करने के लिए कई सारे स्त्रोतों की रचना की गयी हैं। परन्तु उन सभी स्तोत्रों में दशानन रावण कृत शिव तांडव स्तोत्र भगवान् शिव को अतिप्रिय है।

चलिए अब हम ये जानते हैं कि शिव तांडव स्तोत्र की उत्पत्ति कैसे हुई, क्या है शिव तांडव के पीछे क्या कहानी।

शिव तांडव स्त्रोत की पौराणिक कथा

लंकापति रावण भगवान् शिव के अनन्य भक्तों में से एक था। जिस कारण वो भगवान् शिव को अपने सोने की नगरी लंका में स्थापित करना चाहता था। इसी उद्देश्य से शिवभक्त लंकापति रावण कैलाश पंहुचा, जहाँ उसकी मुलाकात नंदी से होती है।

नंदी ने उसके कैलाश आने का कारण पूछा, तो रावण ने कहा की वो भगवान् शिव को अपने साम्राज्य में स्थापित करना चाहता है।

महादेव की इच्छा के विरुद्ध कोई भी उन्हें कहीं नहीं ले जा सकता, ऐसा नंदी ने रावण को उत्तर दिया। ये सुन अहंकार में डूबा रावण क्रोधित होकर कैलाश को ही उठा लंका ले जाने की चेष्टा करने लगा।

ये देख, महादेव ने अपने पैर के अंगूठे से ही कैलाश को दबा डाला, जिससे रावण की भुजाएं कैलाश के भार से दब गयीं। रावण पीड़ा से कराह उठा और असंख्य प्रयत्न के वावजूद भी मुक्त नहीं हो सका।

तदुपरांत उसे अपने अहंकार का भान हुआ और वो शिव भक्ति में लीन हो गया। ऐसा कहा जाता है की इसी अवस्था में दशानन रावण ने 14 दिनों तक शिवजी की स्तुति की। परन्तु शिवजी प्रसन्न नहीं हुए।

तब एक शाम प्रदोष काल में रावण ने पूर्ण भक्ति भाव में लीन हो 16 श्लोकों की शिव-स्तुति की रचना कर उसका उच्च स्वर में गान किया। उसकी अनन्य भक्ति से किया गया शिव तांडव स्तोत्र सुनकर भगवान् शिव प्रसन्न हो गए।

तभी माता पार्वती के कहने पे उन्होंने रावण को कैलाश के भार से मुक्त कर अपना आशीर्वाद प्रदान किया।

रावण रचित ये शिव स्तुति ही शिव तांडव स्तोत्र के नाम से विख्यात हुई। चुकि ये रावण के द्वारा रचा गया था, इसलिए इसे रावण स्तोत्र के नाम से भी जाना जाता है।

निष्कर्ष

रावण की गहन भक्ति से उपजा यह स्तोत्र न सिर्फ शिव की महिमा का गुणगान करता है, बल्कि हर भक्त के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा, मानसिक शांति और जीवन की चुनौतियों से लड़ने का साहस भी प्रदान करता है।

इस ब्लॉग के माध्यम से हमने “शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में” समझाने का प्रयास किया है, ताकि आप इसकी गहराई को अपने दैनिक जीवन में उतार सकें। साथ ही, “शिव तांडव स्तोत्र कैसे याद करें” जैसे टिप्स और “शिव तांडव स्तोत्र PDF” के साथ हमने इसे और भी सुविधाजनक बनाया है।

आइए, इस स्तोत्र के माध्यम से भोलेनाथ की असीम कृपा को अपने हृदय में बसाएं और उनके तांडव के प्रत्येक ताल पर जीवन की गतिशीलता को स्वीकार करें। शिव हर पल आपके साथ हैं—बस चाहिए थोड़ी सी श्रद्धा और थोड़ा सा समर्पण!

शिव तांडव स्तोत्र FAQ

शिव तांडव स्तोत्र किसने रचा था?

इस स्तोत्र की रचना रावण ने की थी। कथा के अनुसार, जब भगवान् शिव ने रावण को अपने त्रिशूल से दबा दिया, तब उसने अपनी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव की स्तुति में यह स्तोत्र गया था।

शिव तांडव स्तोत्र में कितने श्लोक हैं?

इसमें कुल 16 श्लोक हैं, जिनमें शिव के तांडव नृत्य, उनकी शक्ति, और ब्रह्मांड के रहस्यों का वर्णन है।

इसे कब और कैसे पढ़ना चाहिए?

सुबह ब्रह्म मुहूर्त या शाम को प्रदोषकाल में शुद्ध भाव तथा एकाग्रता के साथ शिवलिंग या शिवजी के चित्र से समक्ष बैठकर इस स्तोत्र का पाठ करें।

शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में कैसे याद करें?

“शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में” के माध्यम से आप हर श्लोक का अर्थ और भावार्थ आसानी से समझ तथा याद कर सकते हैं। इससे पाठ का असर बढ़ जाता है।

क्या यह स्तोत्र संकटों को दूर करता है?

हाँ! मान्यता है कि नियमित पाठ से कर्ज़, रोग, और ग्रह दोष शांत होते हैं, और शिव की कृपा से जीवन में स्थिरता आती है।

क्या महिलाएँ भी शिव तांडव स्तोत्र पढ़ सकती हैं?

हाँ, कोई प्रतिबंध नहीं है। यह स्तोत्र सभी जाति, लिंग, और उम्र के लोगों के लिए है।

Leave a Comment