अर्गला स्तोत्र हिंदी में अर्थ सहित | Argala Stotram in Hindi

Argala Stotram in Hindi: अर्गला स्तोत्र दुर्गा सप्तशती का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत आता है। योगरत्नावली के अनुसार दुर्गा सप्तशती में देवी कवच के बाद अर्गला स्तोत्र पढ़ने का विधान है।

यह स्तोत्र देवी की असीम शक्ति, उनके विविध रूपों और लीलाओं का वर्णन करता है। इसे “सप्तशती की कुंजी” कहा जाता है, क्योंकि इसके पाठ के बिना दुर्गा सप्तशती के पाठ का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है।

अर्गला स्तोत्र का पाठ रोग, शत्रु, दरिद्रता और भय से मुक्त कर मनोवांक्षित फल को प्रदान करता है। इस स्तोत्र के पाठ से मन की शुद्धि और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

अर्गला स्तोत्र संस्कृत में

अर्गला स्तोत्र में 25 श्लोक हैं, जिनमें देवी के विभिन्न नामों, रूपों और चमत्कारिक कार्यों की स्तुति की गई है। मान्यता है कि यह स्तोत्र सप्तशती के मंत्रों की शक्ति को “खोलता” है।

प्रत्येक श्लोक के अंत में भक्त देवी से रूप, विजय, यश और शत्रुओं के नाश की कामना करता है।

मूल रूप से अर्गला स्तोत्र संस्कृत में लिखा गया है, जिसका उल्लेख मार्कण्डेय पुराण के साथ साथ देवी भागवत, तंत्र-ग्रंथों और शाक्त परंपरा के ग्रंथों में भी मिलता है।

॥ अर्गला स्तोत्र संस्कृत में ॥

विनियोग :

ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रीजगदम्बा प्रीतये सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः॥

अर्गला स्तोत्र संस्कृत में

अर्गला स्तोत्र संस्कृत में

अर्गला स्तोत्र हिंदी में अर्थ सहित | Argala Stotram in Hindi

कहा जाता है कि देवी अर्गला स्तोत्र माता की असीम कृपा पाने का सबसे सरल मार्ग है। मूलतः ये स्तोत्र संस्कृत में लिखा गया है, जिसके भावों को समझे बिना इसका पूरा लाभ प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

यहाँ हमने अर्गला स्तोत्र हिंदी में भी लिखा है जहाँ इसके हर एक श्लोक को अत्यंत सरलता एवं स्पष्टता से समझाया गया है। तो आइए, इस पवित्र स्तोत्र की हर पंक्ति को सरलता से जानें और माँ दुर्गा की असीम कृपा को सरलता से प्राप्त करें।

Argala Stotram in Hindi

विनियोग :

ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रीजगदम्बा प्रीतये सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः॥

अर्थ:
यह अर्गला स्तोत्र, जिसके ऋषि श्रीविष्णु हैं, छंद अनुष्टुप् है तथा इसकी अधिष्ठात्री देवता श्री महालक्ष्मी हैं, इस स्तोत्र का जप दुर्गा सप्तशती के पाठ के सहायक अंग के रूप में किया जाता है, जिससे जगदम्बा प्रसन्न होकर भक्तों को सिद्धि, रक्षा और मंगल प्रदान करें। यह अर्गला स्तोत्र के मंत्र का विनियोग है।

ॐ नमश्‍चण्डिकायै

श्री चंडीदेवी को नमस्कार है।

मार्कण्डेय उवाच

मार्कण्डेय जी कहते है।

ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥१॥

अर्थ:
हे जयन्ती (विजयदायिनी), मङ्गला (मंगलकारिणी), काली (काल का नाश करने वाली), भद्रकाली (कल्याणमयी काली), कपालिनी (कपाल धारण करने वाली), दुर्गा (दुःखों को हरने वाली), क्षमा (क्षमाशीला), शिवा (कल्याणमयी), धात्री (सृष्टि की धारण करने वाली), स्वाहा (यज्ञ की अग्नि में आहुति देने वाली), स्वधा (पितरों को अर्पित करने वाली) नामों से प्रसिद्द जगदम्बिके! तुम्हे नमस्कार है।

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥२॥

अर्थ:
हे चण्ड-मुण्ड का वध करने वाली चामुण्डे! तुम्हारी जय हो। हे सम्पूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली भूतार्तिहारिणि ! तुम्हारी जय हो। हे सब में व्याप्त रहने वाली देवि ! तुम्हारी जय हो। हे काल को भी नियंत्रित करने वाली देवी कालरात्रि ! तुम्हें नमस्कार है।

मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥३॥

अर्थ:
हे मधु और कैटभ नामक दैत्यों का संहार करने वाली तथा सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी को वरदान देने वाली देवी ! तुम्हें नमस्कार है। तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥४॥

अर्थ:
महिषासुर का नाश करने वाली तथा भक्तों को सुख देने वाली देवी ! तुम्हें नमस्कार है। तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥५॥

अर्थ:
हे रक्तबीज के वध करने वाली तथा चण्ड-मुण्ड का नाश करने वाली देवी ! तुम्हें नमस्कार है। तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥६॥

अर्थ:
हे, दैत्यों के राजा शुम्भ और निशुम्भ तथा धूम्रलोचन का मर्दन करने वाली देवी ! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

वन्दिताङ्‌घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥७॥

अर्थ:
हे सबके द्वारा वन्दित युगल चरणों वाली तथा समस्त मंगल और सौभाग्य प्रदान करने वाली देवी ! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥८॥

अर्थ:
तुम्हारा रूप और चरित्र अचिंत्य है तथा तुम सभी शत्रुओं का नाश करने वाली हो। तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥९॥

अर्थ:
हे पाप और दुःखों को नष्ट करने वाली चण्डिके ! तुम्हारे समक्ष जो भी नतमस्तक होकर भक्ति करते हैं तुम उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और उनके काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

स्तुवद्‌भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१०॥

अर्थ:
हे रोगों को नष्ट करने वाली चण्डिके ! जो भक्ति-भाव से तुम्हारा स्तवन करते हैं, तुम उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और उनके काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥११॥

अर्थ:
हे चण्डिके! जो लोग सतत भक्ति-भाव से आपको इस लोक में पूजते हैं, तुम उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और उनके काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१२॥

अर्थ:
हे देवी! मुझे सौभाग्य, आरोग्य तथा परम आनंद प्रदान करो। साथ ही, तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१३॥

अर्थ:
हे देवी ! जो मुझसे द्वेष रखते हैं उनका नाश करो और मुझे बल प्रदान करो। तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१४॥

अर्थ:
हे देवी ! तुम मेरा कल्याण करो तथा मुझे दिव्य समृद्धि प्रदान करो। साथ ही, तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

सुरासुरशिरोरत्न निघृष्टचरणेऽम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१५॥

अर्थ:
हे अम्बिके ! देवता और दैत्य दोनों हीं अपने मस्तक-रूपी मणियों को तुम्हारे चरणों पर घिसते हैं। तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१६॥

अर्थ:
हे देवी ! तुम अपने भक्तजनों को विद्यावान, यशस्वी तथा लक्ष्मीवान बनाओ। साथ ही, तुम उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और उनके काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१७॥

अर्थ:
हे प्रचण्ड दैत्यों के अहंकार को नष्ट करने वाली चण्डिके ! मुझ शरणागत को रूप दो, जय दो, यश दो और मेरे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१८॥

अर्थ:
हे, चार मुखों वाले ब्रह्माजी के द्वारा प्रशंसित चार भुजाओं वाली परमेश्वरि ! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

कृष्णेन संस्तुते देवि शश्‍वद्भक्त्या सदाम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१९॥

अर्थ:
हे सदाम्बिके, भगवान् श्री विष्णु नित्य निरंतर भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते है। तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

हिमाचलसुतानाथ संस्तुते परमेश्वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥२०॥

अर्थ:
हिमालय कन्या माता पार्वती पति महादेव के द्वारा प्रशंसित होने वाली, हे परमेश्वरि ! हिमाचलसुता (पार्वती) के नाथ (शिव) द्वारा स्तुत! हमें सुंदर रूप, विजय, यश प्रदान करो और शत्रुओं का नाश करो।

इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥२१॥

अर्थ:
हे परमेश्वरि! तुम शचीपति इन्द्र के द्वारा सच्ची भक्ति से पूजित हो, तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

देवि प्रचण्डदोर्दण्ड दैत्यदर्पविनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥२२॥

अर्थ:
प्रचण्ड भुजदंडोंवाले दैत्यों के अहंकार को नष्ट करने वाली देवी ! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

देवि भक्तजनोद्दाम-दत्तानन्दोदयेऽम्बिके।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥२३॥

अर्थ:
हे अम्बिके! तुम अपने भक्तों की उत्कट इच्छाओं को आनंद प्रदान करने वाली हो ! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥२४॥

अर्थ:
हे देवी! मुझे मन को हरने वाली मनोहर तथा मन के अनुकूल व्यवहार करने वाली पत्नी प्रदान करो जो दुःखों के संसार-सागर को तारने वाली तथा अच्छे कुल में जन्मी हो।

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।
स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम्॥२५॥

अर्थ:
जो भी मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करके दुर्गा सप्तशती का पाठ करता है, वह सप्तशती की जपसंख्या से मिलने वाले श्रेष्ठ फल को प्राप्त होता है,साथ हीं वह समृद्धियों को भी प्राप्त कर लेता है।

॥ देवी अर्गलास्तोत्र सम्पूर्ण होता है ॥

अर्गला स्तोत्र PDF Download | Argala Stotram PDF

अर्गला स्तोत्र का मूल उद्देश्य देवी की शक्ति को जागृत करना और साधक को सप्तशती पाठ के लिए तैयार करना है। अतः हम यहाँ आपके लिए Argala Stotram PDF प्रारूप में ले कर आये हैं। ताकि आप अपने मोबाइल या कम्पुयटर पे इसका कहीं भी और कभी भी पाठ कर सकें।

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अर्गला स्तोत्र के फायदे

अर्गला स्तोत्र, देवी दुर्गा सप्तशती का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसका नियमित पाठ करने से भक्तों को आध्यात्मिक, मानसिक और भौतिक स्तर पर अद्भुत लाभ की प्राप्ति होती है।

नवरात्रि के दौरान इसका पाठ करने से देवी की कृपा तीव्र गति से प्राप्त होती है। यहाँ हमने अर्गला स्तोत्र के पाठ से होने वाले कुछ प्रमुख फायदे बताए हैं।

Argala Stotram in Hindi

नकारात्मक ऊर्जा का होता है नाश

अर्गला स्तोत्र का नित्य किया गया पाठ देवी दुर्गा की शक्ति को जागृत करता है, जो भक्त को नकारात्मक ऊर्जा, भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र और जादू टोना जैसे संकटों से सुरक्षा प्रदान करता है।

स्वास्थ्य की होती है प्राप्ति

अर्गला स्तोत्र का भक्तिपूर्वक किया गया पाठ जातक को शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति देता है। इस स्तोत्र के पाठ से मनुष्य के समस्त रोगों का नाश हो जाता है और उसे स्वस्थ्य की प्राप्ति होती है।

धन-सम्पदा में होती है वृद्धि

अगर आपके जीवन में धन अथवा व्यापार-व्यवसाय से सम्बंधित समस्या बार बार आ रही हो तो अर्गला स्तोत्र का पाठ नित्य-प्रतिदिन करना प्रारम्भ कर दें। अर्गला स्तोत्र के पाठ से धन-धान्य, रोजगार और आर्थिक समृद्धि में वृद्धि होती है।

संकटों से मिलती है मुक्ति

इस स्तोत्र का पाठ मनुष्य को हर प्रकार के दुर्घटना तथा ग्रह-नक्षत्रों के बुरे प्रभाव से बचाता है। इस पाठ के प्रभाव से भक्त के आतंरिक तथा बाह्य दोनों हीं प्रकार के शत्रुओं का नाश हो जाता है।

विवाह में आ रही बाधा होती है दूर

यदि परिवार के किसी सदस्य के विवाह में बार बार बाधा आ रही है, तो अर्गला स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। इस स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करने से विवाह में आ रही बाधा दूर हो जाती है और विवाह शीघ्र हो जाता है।

प्रतिष्ठा में होती है वृद्धि

अर्गला स्तोत्र के पाठ से भक्त के आंतरिक और बाह्य सौंदर्य में वृद्धि होती है। इस स्तोत्र का पाठ जीवन के हर क्षेत्र में विजय तथा समाज में मान-सम्मान और यश की वृद्धि करता है।

अर्गला स्तोत्र पाठ करने की विधि

चिदम्बरसंहिता के अनुसार पहले अर्गला फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है। किंतु योगरत्नावली में इसके पाठ का क्रम थोड़ा भिन्न बताया गया है। इसके अनुसार दुर्गा सप्तशती में देवी अर्गला का पाठ देवी कवचम् के बाद और कीलकम् से पहले किया जाता है।

किसी भी स्तोत्र का पाठ अगर पूर्ण श्रद्धा, नियम और शुद्धता के साथ किया जाये तो वो अधिक फलदायी होता है। यहाँ हम आपको देवी सप्तशती में वर्णित अर्गला स्तोत्र के पाठ की सरल और प्रामाणिक विधि बताने जा रहे हैं।

  • सर्वप्रथम स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • अब अपने पूजा स्थल को गंगाजल अथवा किसी भी शुद्ध जल से साफ करें।
  • स्तोत्र के पाठ के लिए कुशा अथवा लाल या पीले रंग का आसन बिछाएँ।
  • देवी के इस स्तोत्र के पाठ के लिए उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना उत्तम माना गया है।
  • अब अपने समक्ष देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें।
  • सबसे पहले माता को दीपक, धूप, फूल, फल, और मिठाई (भोग) इत्यादि अर्पित करें।
  • पहले विनियोग मंत्र पढ़ें, फिर 25 श्लोकों वाले अर्गला स्तोत्र का पाठ करें। ध्यान रखें, श्लोकों का उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध हो।
  • अब देवी की आरती करें और परिवारजन में प्रसाद को वितरित करें।
  • अर्गल स्तोत्र का पाठ नवरात्रि, शुक्ल पक्ष, मंगलवार या शुक्रवार को विशेष फल को प्रदान करता है।
  • इस स्तोत्र का पाठ प्रातः ब्रह्ममुहूर्त (4-6 बजे) अथवा सायंकाल में करना सर्वोत्तम माना गया है।

अर्गला स्तोत्र से सम्बंधित FAQ

अर्गला स्तोत्र से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

अर्गला स्तोत्र क्या है?

अर्गला स्तोत्र देवी दुर्गा की स्तुति का एक प्राचीन संस्कृत स्तोत्र है, जो दुर्गा सप्तशती का अभिन्न अंग है। इसमें 25 श्लोक हैं, जो देवी के विविध रूपों, शक्तियों और संकटों के नाशक स्वरूप का वर्णन करते हैं।

अर्गला स्तोत्र का क्या महत्व है?

अर्गला स्तोत्र दुर्गा सप्तशती की “कुंजी” माना जाता है। इसके पाठ के बिना सप्तशती पाठ का पूरा फल नहीं मिलता। यह शत्रु बाधा, रोग, और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है तथा सौभाग्य, विजय और यश प्रदान करता है।

क्या महिलाएँ अर्गला स्तोत्र पढ़ सकती हैं?

हाँ, कोई भी लिंग या आयु वर्ग का व्यक्ति इसे पढ़ सकता है, बशर्ते श्रद्धा और शुद्धता बनाए रखें।

अर्गला स्तोत्र पाठ से कितने दिन में फल मिलता है?

यह भक्त की श्रद्धा, नियमितता और भावना पर निर्भर करता है। कुछ को तुरंत प्रभाव दिखता है, कुछ को समय लग सकता है।

अर्गला स्तोत्र के श्लोकों की संख्या कितनी है?

इसमें कुल 25 श्लोक हैं, जिनमें देवी के गुणों और लीलाओं का वर्णन है।

निष्कर्ष

धर्म शास्त्रों के अनुसार, अर्गला स्तोत्र दुर्गा सप्तशती के पाठ को पूर्णता प्रदान करता है। यदि आप “Argala Stotram in Hindi” या “अर्गला स्तोत्र हिंदी में” खोज रहे हैं, तो यह स्तोत्र हिंदी अनुवाद के साथ आसानी से उपलब्ध है, जो प्रत्येक भक्तों के लिए अत्यंत सहायक है। वहीं हमने, मंत्रों की मूल शक्ति को अनुभव करने के लिए “अर्गला स्तोत्र संस्कृत में” भी उपलभ्ध कराया है।

चाहे संस्कृत में हो या हिंदी में, इसका पाठ आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, सुरक्षा और समृद्धि लाता है। “Argala Stotram PDF” के माध्यम से इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करें और देवी की अनुपम कृपा का अनुभव करें।

॥ जय माँ दुर्गा ॥

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