Pashupati Ashtakam With Meaning in Hindi | पशुपत्यष्टकम

आज के इस पोस्ट में भगवान् पशुपतिनाथ को समर्पित एक शक्तिशाली स्तोत्र Pashupati Ashtakam With Meaning in Hindi अर्थात पशुपति अष्टकम अर्थ सहित जानेगें।

पशुपतिनाथ भगवान् शिव के हीं एक स्वरुप का नाम हैं। नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मंदिर को भगवान् शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ का आधा हिस्सा माना जाता हैं।

ऐसी मान्यता हैं की पशुपतिनाथ के केवल दर्शन मात्र से मनुष्य के सभी कष्टों का नाश हो जाता हैं। साथ हीं साथ उस मनुष्य को किसी भी जन्म में पशु योनि प्राप्त नहीं होती अर्थात वो मोक्ष को प्राप्त होता हैं।

तो चलिए अब हम जानते हैं भगवान् पशुपतिनाथ को समर्पित श्री पृथ्वीपति सुरि द्वारा निर्मित पशुपति अष्टकम हिंदी अर्थ के साथ।

Pashupati Ashtakam | श्रीपशुपत्यष्टकम् 

पशुपति अष्टकम की रचना श्री पृथ्वीपति सुरि के द्वारा की गयी हैं जो भगवान् पशुपतिनाथ को अति प्रिय स्तोत्रों में एक हैं। ऐसा उल्लेख हैं की जो भी मनुष्य पशुपति अष्टकम का नित्य पाठ या श्रवण करता हैं वह भगवान् शिव के धाम शिवपुरी में निवास कर आनंदित रहता है।

श्रीपशुपत्यष्टकम् ।।

ध्यानम् 

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् ।
पद्मासीनं समन्तात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥

स्तोत्रम

पशुपतीन्दुपतिं धरणीपतिं भुजगलोकपतिं च सतीपतिम् ।
प्रणतभक्तजनार्तिहरं परं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ १॥

न जनको जननी न च सोदरो न तनयो न च भूरिबलं कुलम् ।
अवति कोऽपि न कालवशं गतं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ २॥

मुरजडिण्डिमवाद्यविलक्षणं मधुरपञ्चमनादविशारदम् ।
प्रमथभूतगणैरपि सेवितं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ३॥

शरणदं सुखदं शरणान्वितं शिव शिवेति शिवेति नतं नृणाम् ।
अभयदं करुणावरुणालयं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ४॥

नरशिरोरचितं मणिकुण्डलं भुजगहारमुदं वृषभध्वजम् ।
चितिरजोधवलीकृतविग्रहं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ५॥

मखविनाशकरं शशिशेखरं सततमध्वरभाजिफलप्रदम् ।
प्रलयदग्धसुरासुरमानवं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ६॥

मदमपास्य चिरं हृदि संस्थितं मरणजन्मजराभयपीडितम् ।
जगदुदीक्ष्य समीपभयाकुलं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ७॥

हरिविरञ्चिसुराधिपपूजितं यमजनेशधनेशनमस्कृतम् ।
त्रिनयनं भुवनत्रितयाधिपं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ८॥

पशुपतेरिदमष्टकमद्भुतं विरचितं पृथिवीपतिसूरिणा ।
पठति संश‍ृणुते मनुजः सदा शिवपुरीं वसते लभते मुदम् ॥ ९॥

इति श्रीपृथिवीपतिसूरिविरचितं श्रीपशुपत्यष्टकं सम्पूर्णम्।

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Pashupati Ashtakam With Meaning in Hindi

हममे से कई लोग पशुपति अष्टकम का पाठ संस्कृत में नहीं कर पाते हैं। तो वो पशुपति अष्टकम का पाठ हिंदी में भी कर सकते है। तो चलिए अब हम श्री पृथ्वीपति सुरि कृत पशुपति अष्टकम अर्थ सहित पाठ करते हैं।

पशुपति अष्टकम अर्थ सहित

पशुपति अष्टकम हिंदी अर्थ सहित

पशुपति अष्टकम का पाठ हिंदी अर्थ।।

ध्यान

रजत अर्थात चाँदी के पर्वत की भांति जिनकी कान्ति श्वेत है, जो अत्यंत रमणीक चन्द्रमा को आभूषण के रूप में धारण करते हैं, कई रत्नों और आभूषणों से जिनका शरीर उज्ज्वल है, जिनके चारो हाथों में परशु, मृग, वर और अभय है, जो आनंदित हैं तथा पद्मासन में विराजमान हैं, जिनके चारों ओर खड़े होकर देवतागण वंदना करते हैं, जो बाघ की खाल धारण करते हैं, जो इस सृष्टि के मूल हैं, जगत्-उत्पत्ति के बीज तथा समस्त भयों को हरनेवाले हैं, उन पाँच मुख और तीन नेत्र वाले महेश्वर का प्रतिदिन ध्यान करें।

स्तोत्र

हे मनुष्य ! जो जगत के समस्त जीवों के देव हैं, जो तीनो लोक स्वर्ग, पृथ्वी तथा नागलोक के देव हैं, जो माता सती के स्वामी हैं, जो शरणागत जीवों और भक्तों के दुःख को हरने वाले हैं, उन परम परमेश्वर पार्वती-पति शिवजी को भजो ॥१॥

काल के बंधन में बंधे हुए प्राणियों को ना तो पिता, ना माता, ना भाई, ना पुत्र, और ना हीं उनके कुल की शक्ति बचा सकती है। इसलिये हे मनुष्यों, तुम पार्वती पति भगवान् शिव को भजो ॥२॥

मृदङ्ग और डमरू बजाने में जिनकी निपुणता है, मधुर पञ्चम स्वर के नाद में जिनकी कुशलता हैं, जिनकी सेवा में प्रमथ (विशेष प्रकार का शिवगण) और भूतगण रहते हैं। हे मनुष्यों, उन पार्वती पति भगवान् शिव को भजो ॥३॥

जो शरणागतों को शरण और सुख देने वाले हैं, शिव ! शिव ! शिव ! जपते हुए मनुष्य जिनको नमन करते हैं, जो सभी को अभय देने वाले हैं। हे मनुष्य ! उन करुणा बरसाने वाले पार्वती पति भगवान् शिव का भजन करो ॥ ४॥

जो नरमुण्डरूपी मणियों का कुण्डल तथा सर्पों का हार धारण करते हैं, जिनका शरीर चिता की भश्म से उज्जवल हो रहा है। हे मनुष्यों ! उन वृषभध्वज पार्वती पति भगवान् शिव को भजो ॥ ५ ॥

जिन्होंने दक्ष के यज्ञ को नष्ट किया था; जिनके मस्तक पर चन्द्रमा शोभायमान है, जो यज्ञ करनेवालों को सदैव फल देनेवाले हैं तथा जो प्रलय की अग्नि में देवता, दानव और मानवों को जलाने वाले हैं। हे मानवों ! उन पार्वती पति को भजो ॥६॥

हे मनुष्यो ! जगत् को जन्म, बुढ़ापे और मृत्यु के भय से पीड़ित तथा अपने समीप भय को उपस्थित देख, चिर काल से हृदय में संचित मद का त्याग कर उन गिरिजापति भगवान् शिव को भज ॥ ७ ॥

हे मनुष्यों ! श्री हरी विष्णु, ब्रह्मा और इन्द्र भी जिनका पूजन करते हैं, यम और कुबेर भी जिन्हें नमन करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं तथा जो त्रिभुवन के अधिपति हैं, उन पार्वती पति भगवान् शिव को भजो ॥ ८॥

पृथ्वीपति सूरि रचित इस अद्भुत पशुपति-अष्टक का जो मनुष्य सदा पाठ और श्रवण करता है, वह शिवपुरी में निवास करता और सदा आनन्दित होता है ॥९॥

। श्रीपशुपत्यष्टकं समाप्त ।

पशुपति अष्टकम पाठ के लाभ

श्री पृथ्वीपति सुरि द्वारा रचित पशुपति अष्टकम स्तोत्र के पाठ से हमे कई लाभ प्राप्त हो सकते हैं जिसका हमारे जीवन गहरा प्रभाव पड़ता है। यहाँ कुछ प्रमुख लाभों का उल्लेख किया गया है।

पशुपति अष्टकम पाठ के लाभ

कष्टों का होता है निवारण

इस स्तोत्र के पाठ से भक्त के जीवन से सभी मानसिक और शारीरिक कष्टों का अंत हो जाता है। तथा जीवन में आने वाली सभी विघ्न और बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं।

भगवान शिव की मिलती है आशीर्वाद

भगवान् शिव को समर्पित इस स्तोत्र का जो भी मनुष्य पाठ या फिर श्रवण करता है वो भगवान् शिव के आशीर्वाद का अधिकारी बन जाता है और वो जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो आनंद को प्राप्त होता है।

बिमारियों से मिलती है मुक्ति

भगवान् शिव को समर्पित पशुपति अष्टकम के पाठ से शरीर की रोज प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।

सकारात्मक ऊर्जा का होता है संचार

पशुपति अष्टकम स्तोत्र के पाठ से शरीर और मन में सकारात्मक ऊर्जा और स्फूर्ति का संचार होता है जिससे व्यक्ति पहले से अधिक ऊर्जावान और समृद्ध अनुभव करता है।

परिवार तथा समाज में बढ़ती है प्रतिष्ठा

अगर नियमित रूप से श्रद्धा और विश्वास के साथ पशुपति अष्टकम का पाठ किया जाये तो निश्चित हीं व्यक्ति को समाज और परिवार में प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।

मन की शांति तथा आध्यात्मिक उन्नत्ति

इस स्तोत्र का नियमित पाठ मन में शांति तथा स्थिरता प्रदान करता है, जिससे जीवन में आध्यात्मिकता की वृद्धि होती है।

पशुपति अष्टकम सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

पशुपति अष्टकम क्या है?

पशुपति अष्टकम भगवान् शिव को समर्पित एक प्रभावशाली स्तोत्र है जिसकी रचना श्री पृथ्वीपति सुरि ने की थी। इस स्तोत्र के माध्यम से भगवान शिव की महिमा और उनके अलग अलग रूपों का वर्णन किया गया है।

पशुपति अष्टकम का पाठ कब करना चाहिए ?

पशुपति अष्टकम का पाठ आप प्रातः काल अथवा सायं काल में भी कर सकते हैं। स्वक्ष वस्त्र धारण कर शुद्ध और शांत मन से भगवान शिव के किसी चित्र या प्रतिमा के सामने बैठकर इसका पाठ करें।

पशुपति अष्टकम का पाठ कैसे करना चाहिए ?

स्वक्ष वस्त्र धारण कर शुद्ध और शांत मन से भगवान शिव के किसी चित्र या प्रतिमा के सामने बैठकर श्रद्धा और भक्ति के साथ इसका पाठ करें।

क्या पशुपति अष्टकम का पाठ केवल संस्कृत में ही करना चाहिए?

यदि आप शुद्ध उच्चारण के साथ पशुपति अष्टकम का पाठ कर सकते हैं तो ये सर्वोत्तम होगा, परन्तु यदि आप संस्कृत भाषा में सहज नहीं हैं तो इसे हिंदी में भी पढ़ सकते हैं। अंततः आपकी भक्ति और आस्था हीं जरुरी है।

पशुपति अष्टकम का पाठ करने के लिए क्या किसी गुरु की अनिवार्यता होती है?

नहीं, पशुपति अष्टकम के पाठ के लिए किसी गुरु की कोई अनिवार्यता नहीं होती है। आप बिना गुरु के भी इसका पाठ पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ कर सकते हैं।

निष्कर्ष

भगवान् पशुपति शिवजी का वो दिव्य स्वरुप हैं जो समस्त प्राणियों के पाप कर्मों को काट कर उन्हें आनंद, संवृद्धि तथा मोक्ष प्रदान कर जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त करते हैं।

पृथ्वीपति सुरि रचित 8 श्लोकों की पशुपति अष्टकम संस्कृत में या फिर पशुपति अष्टकम अर्थ सहित पाठ करने से भगवान् पशुपति शीघ्र प्रसन्न हो अपने भक्तों का कल्याण कर देते हैं।

तो कैसी लगी Pashupati Ashtakam With Meaning in Hindi से जुडी ये जानकारी। हमने यहाँ आपको पशुपति अष्टकम अर्थ सहित समझाने की कोशिश की है।

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