धर्म शास्त्रों में Kilak Stotram को दुर्गा सप्तशती का एक अभिन्न अंग माना गया है जिसमे देवी चंडिका की स्तुति की गयी है। इस स्तोत्र के बिना दुर्गा सप्तशती का पाठ अधूरा माना गया है। दुर्गा सप्तशती में देवी कवच तथा अर्गला स्तोत्र के पाठ के उपरान्त हीं महाफलदायक कीलक स्तोत्र का पाठ करने का विधान है।
स्वयं भगवान् शिव ने भी दुर्गा सप्तशती के पाठ को देवी की कृपा प्राप्त करने का एकमात्र साधन बताया है। इसका नियमित पाठ करने वाले भक्त को किसी अन्य साधना या उपाय की आवश्यकता नहीं होती है।
इस स्तोत्र में इतनी शक्ति है कि बिना किसी अतिरिक्त मंत्र, औषधि या प्रयास के हीं, भक्तों के सभी संकट दूर हो जाते हैं तथा देवी चण्डिका स्वयं उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण कर देती हैं।
कीलक स्तोत्र संस्कृत में | Kilak Stotram in Sanskrit
दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों की शक्ति का दुरुपयोग नहीं हो, इस कारण स्वयं महादेव में इसे कीलित अर्थात लॉक कर दिया था। अतः, उत्कीलन अर्थात अनलॉक किये बिना दुर्गा सप्तशती की शक्ति को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
आप सभी भक्तों को बता दें कि दुर्गा सप्तशती में हीं इसके उत्कीलन की कुछ अलग अलग विधियां भी बताई गयी है। अत्यंत शुद्ध तथा समर्पण भाव से किया गया कीलक स्तोत्र का पाठ उन विधियों में एक है।
इसी कारण से दुर्गा सप्तशती के पाठ के पहले कीलक स्तोत्र के पाठ का विधान कहा गया है, ताकि आप इसकी शक्ति को प्राप्त कर सकें।
कीलक स्तोत्र हिंदी में | Kilak Stotram in Hindi
बहुत से लोग जटिल या अनावश्यक समझकर इस इसके पाठ को टालते हैं, परंतु शास्त्रों में ये स्पष्ट कहा गया है कि “इसे प्रारम्भ करने मात्र” से ही देवी की कृपा प्रवाहित होने लगती है।
दुर्गा सप्तशती के समस्त प्रभाव को पाने के लिए इन स्तोत्रों का उत्कीलन करना अनिवार्य होता है, और कीलक स्तोत्र का पाठ इसके उत्कीलन विधियों में से एक है। अतः कीलक स्तोत्र का पाठ करके हीं दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रारम्भ करें।
मूलतः ये स्तोत्र संस्कृत में लिखा गया है, परन्तु यहाँ हमने कीलक स्तोत्र को हिंदी में भी लिखा है और इसके हर एक श्लोक को अत्यंत सरलता एवं स्पष्टता से समझाया गया है। तो आइए, इस पवित्र स्तोत्र की हर पंक्ति को सरलता से जानें और माँ दुर्गा की असीम कृपा का भागी बनें।
विनियोग:
ॐ अस्य श्रीकीलकमन्त्रस्य शिव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहासरस्वती देवता, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ॥
॥ ॐ नमश्चण्डिकायै ॥
मार्कण्डेय उवाच
ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे।
श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे॥१॥
अर्थ:
विशुद्ध ज्ञान ही जिनका स्वरुप है, तीनों वेद ही जिनके तीन दिव्य नेत्र हैं, जो मोक्ष और कल्याण प्राप्ति के हेतु हैं तथा जो अपने मस्तक पर अर्धचन्द्र को धारण करते हैं, उन भगवान शिव को नमस्कार है ॥1॥
सर्वमेतद्विजानीयान्मन्त्राणामभिकीलकम्।
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्यतत्परः॥२॥
अर्थ:
मन्त्रों का जो अभिकीलक है अर्थात मन्त्रों की सिद्धि में अवरोध उत्पन्न करने वाले शापरूपी कीलक का जो निवारण करने वाला है, उस सप्तशती स्तोत्र को सम्पूर्ण रूप से जानना चाहिये। जो भक्त एकाग्रता से निरंतर इन मन्त्रों का जप करता है, वह सभी प्रकार के कल्याण को प्राप्त कर लेता है।
सिद्ध्यन्त्युच्चाटनादीनि वस्तूनि सकलान्यपि।
एतेन स्तुवतां देवी स्तोत्रमात्रेण सिद्ध्यति॥३॥
अर्थ:
उसके उच्चाटन (शत्रु या बाधाओं का नाश), वशीकरण आदि कार्य सिद्ध होते हैं तथा समस्त दुर्लभ वस्तुओं की प्राप्ति होती है। देवी की इस स्तोत्र के पाठ मात्र से ही स्तुति करने वाले भक्तों के लिए सच्चिदानन्द स्वरूपिणी देवी सिद्ध हो जाती है ॥3॥
न मन्त्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते।
विना जाप्येन सिद्ध्येत सर्वमुच्चाटनादिकम्॥४॥
अर्थ:
उन्हें अपने कार्य की सिद्धि के लिये किसी भी मन्त्र, औषधि या अन्य किसी साधन के उपयोग की आवश्यकता नहीं होती है। बिना जप के ही उनके उच्चाटन (शत्रु या बाधा का नाश), मारण (शत्रु का विनाश), वशीकरण (किसी को वश में करना) जैसे जटिल कर्म भी सिद्ध हो जाते हैं ॥4॥
समग्राण्यपि सिद्ध्यन्ति लोकशङ्कामिमां हरः।
कृत्वा निमन्त्रयामास सर्वमेवमिदं शुभम्॥५॥
अर्थ:
इतना ही नहीं, उनकी सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुएँ भी सिद्ध होती हैं। लोगों के मन में यह संदेह था कि ‘जब केवल सप्तशती की उपासना के अलावा अन्य मन्त्रों की उपासना से भी समान रूप से सब कार्य सिद्ध होते हैं, तब इनमें श्रेष्ठ साधन कौन सा है ?’ लोगों की इस शंका को सामने पाकर भगवान शंकर ने अपने पास आये हुए भक्तों को बताया कि यह सप्तशती नामक सम्पूर्ण स्तोत्र ही सर्वश्रेष्ठ एवं कल्याणकारी है ॥5॥
स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः।
समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावन्नियन्त्रणाम्॥६॥
अर्थ:
तदनन्तर भगवती चण्डिका के सप्तशती नामक स्तोत्र को महादेव ने गुप्त कर दिया। अन्य मन्त्रों के जप से प्राप्त पुण्य की समाप्ति हो जाती है परन्तु सप्तशती के पाठ से जो पुण्य प्राप्त होता है, उसका कभी क्षय नहीं होता है। अतः भगवान शिव ने अन्य मन्त्रों की अपेक्षा जो सप्तशती की ही श्रेष्ठता का निर्णय किया, उसे यथार्थ ही समझना चाहिये ॥6॥
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सर्वमेवं न संशयः।
कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः॥७॥
ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति।
इत्थंरुपेण कीलेन महादेवेन कीलितम्॥८॥
अर्थ:
अन्य मन्त्रों का जप करने वाला पुरुष भी यदि सप्तशती के स्तोत्र के जप का अनुष्ठान करे तो वह भी निश्चित रूप से समस्त कल्याण को प्राप्त करता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। जो साधक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी अथवा अष्टमी को एकाग्रचित्त होकर भक्ति भाव से भगवती की सेवा में अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है और फिर उसे प्रसादरुप से ग्रहण करता है, उसी पर माँ भगवती प्रसन्न होती हैं अन्यथा उनकी कृपा की प्राप्ति नहीं होती। इस प्रकार कील के द्वारा महादेव ने इस स्तोत्र को कीलित कर रखा है ॥7-8॥
यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम्।
स सिद्धः स गणः सोऽपि गन्धर्वो जायते नरः॥९॥
अर्थ:
जो बताये गए विधि विधान के साथ निष्कीलन करके इस सप्तशती स्तोत्र का नित्य स्पष्ट उच्चारण के साथ पाठ करता है, ऐसा भक्त सिद्धि को प्राप्त करता है, वह शिव के गणों (जैसे नंदी, भृंगी) के समान दिव्य समूह में स्थान पाता है, तथा एक साधारण मनुष्य होते हुए भी, गन्धर्व (दिव्य संगीतज्ञ, सौंदर्य और सुख के देवता) के समान दिव्य गुणों से युक्त हो जाता है॥9॥
न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते।
नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात्॥१०॥
अर्थ:
सर्वत्र विचरते रहने पर भी उसे इस संसार में कहीं भी भय नहीं होता। वह अकाल मृत्यु के वश में नहीं होता। तथा मृत्यु के पश्चात् मोक्ष को प्राप्त करता है ॥10॥
ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति।
ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः॥११॥
अर्थ:
अतः कीलन को जान कर उसका परिहार करके ही सप्तशती का पाठ प्रारम्भ करें। जो ऐसा नहीं करता, उसका नाश हो जाता है। इसलिये कीलक और निष्कीलन का ज्ञान प्राप्त करने पर ही ज्ञानी पुरुष इस निर्दोष स्तोत्र का पाठ प्रारम्भ करते हैं॥11॥
सौभाग्यादि च यत्किञ्चिद् दृश्यते ललनाजने।
तत्सर्वं तत्प्रसादेन तेन जाप्यमिदं शुभम्॥१२॥
अर्थ:
स्त्रियों में जो कुछ भी सौभाग्य आदि दृष्टिगोचर होता है, वह सब देवी की कृपा से हीं है। अतः इस पवित्र स्तोत्र का जप सदा करना चाहिये ॥12॥
शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिन् स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः।
भवत्येव समग्रापि ततः प्रारभ्यमेव तत्॥१३॥
अर्थ:
इस स्तोत्र का मन्दस्वर से पाठ करने पर स्वल्प फल की प्राप्ति होती है और उच्चस्वर से पाठ करने पर पूर्ण फल की सिद्धि होती है। अतः उच्चस्वर से ही इसका पाठ आरम्भ करना चाहिये॥13॥
ऐश्वर्यं यत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यसम्पदः।
शत्रुहानिःपरो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः॥१४॥
अर्थ:
जिनकी कृपा से ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, सम्पत्ति, शत्रुनाश तथा परम मोक्ष की भी सिद्धि होती है, उस कल्याणमयी जगदम्बा की स्तुति मनुष्य क्यों नहीं करेंगे ?॥14॥
॥ इति देव्याः कीलकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
॥ इस प्रकार देवी चण्डिका का कीलक स्तोत्र पूर्ण हुआ ॥
कीलक स्तोत्र PDF | Kilak Stotram PDF
भगवान् शिव अपने भक्तों के भय को हरते हैं, और देवी उनके जीवन में शुभता प्रवाहित करती हैं। इस स्तोत्र के पाठ से साधक को देवी चण्डिका और भगवान् शिव की संयुक्त कृपा की प्राप्ति होती है। देवी के इस कीलक स्तोत्र के पाठ का प्रारम्भ मात्र ही कल्याण का द्वार खोल देता है।
अतः हम यहाँ आपके लिए Kilak Stotram PDF प्रारूप में ले कर आये हैं। ताकि आप अपने मोबाइल या कम्पुयटर पे इसका कहीं भी और कभी भी पाठ कर सकें।
Kilak Stotram PDF Download करने के लिए नीचे बने बटम पर Click करें।
Kilak Stotram PDF Free Download
कीलक स्तोत्र के लाभ
दुर्गा सप्तशती में देवी कवच तथा अर्गला स्तोत्र के पाठ के बाद कीलक स्तोत्र के पाठ का विधान बताया गया है।
निरंतरता, एकाग्रता और श्रद्धा से हीं इस स्तोत्र का पाठ किया जाना चाहिए तभी ये पाठ फलदायी होता है। अज्ञान या लापरवाही से दुर्गा सप्तशती का किया गया पाठ व्यर्थ होता है। अतः ज्ञानी पुरुष इसके रहस्य को समझकर ही इसे अपनाते हैं।
यह स्तोत्र इतना पवित्र और प्रभावशाली है कि इसका जप करने वाले के जीवन में सभी शुभता स्वयं हीं प्रकट हो जाती हैं। जो भी निष्काम भाव से, नियमित और शुद्ध उच्चारण के साथ इस कीलक स्तोत्र का जप करता है, उसे सिद्धि की प्राप्ति हो जाती है।
यहाँ हमने Kilak Stotram के पाठ से होने वाले कुछ प्रमुख फायदे बताए हैं।
कीलक स्तोत्र के लाभ
- कीलक स्तोत्र के पाठ से भगवती की कृपा की प्राप्ति होती है। जो भी भक्त इसे निष्ठापूर्वक जपता है, उसे सहज हीं समस्त सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।
- इसके पाठ या श्रवण मात्र से हीं व्यक्ति को आरोग्यता की प्राप्ति होती है तथा वह अकाल मृत्यु जैसे दुर्घटना, हत्या, या अचानक बीमारी से सुरक्षित रहता है।
- कीलक स्तोत्र का नियमित जप करने वाले भक्त को किसी भी प्रकार का भय (शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक) नहीं सताता। चाहे वह कितनी भी विषम परिस्थितियों में क्यों न हो।
- इस स्तोत्र का पाठ साधक को सांसारिक सुख, संपदा, प्रतिष्ठा, सौभाग्य, ऐश्वर्य के साथ साथ आध्यात्मिक ज्ञान को भी प्रदान करता है।
- कीलक स्तोत्र के पाठ से घर परिवार में प्रेम और सम्मान बना रहता है तथा वैवाहिक जीवन में सुख का प्रवेश होता है।
- इस स्तोत्र का पाठ सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है।
- माँ भगवती के इस स्तोत्र के पाठ से साधक को सहज हीं जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। और वो जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है।
- कीलक स्तोत्र के पाठ से समस्त बाहरी तथा आतंरिक शत्रुओं का नाश हो जाता है।
Kilak Stotram FAQ
कीलक स्तोत्र किसे समर्पित है?
यह स्तोत्र देवी दुर्गा (चण्डिका) को समर्पित है, लेकिन इसमें भगवान शिव की भी स्तुति की गई है, क्योंकि वे इसके ऋषि (द्रष्टा) माने जाते हैं।
कीलक स्तोत्र क्यों ख़ास है?
दुर्गा सप्तशती के समस्त प्रभाव को पाने के लिए इन स्तोत्रों का उत्कीलन करना अनिवार्य होता है, और कीलक स्तोत्र का पाठ इसके उत्कीलन विधियों में से एक है। अतः कीलक स्तोत्र का पाठ करके हीं दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रारम्भ करें।
इसके पाठ से क्या लाभ मिलते हैं?
यह स्तोत्र शत्रुओं से सुरक्षा देता है, बाधाएँ दूर करता है, और मनचाही सिद्धियाँ प्रदान करता है। साथ ही, मोक्ष का मार्ग खोलता है।
कीलक स्तोत्र कब पढ़ना चाहिए?
नवरात्रि या किसी भी कृष्ण पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी को किया गया पाठ विशेष फलदायी होता है। इसे सुबह या शाम के समय शुद्ध मन से पढ़ सकते हैं।
क्या यह स्तोत्र सभी के लिए है?
हाँ, कोई भी इसे श्रद्धा से पढ़ सकता है। इसके लिए किसी विशेष दीक्षा या ज्ञान की जरूरत नहीं।
निष्कर्ष
“कीलक स्तोत्र” (Kilak Stotram) देवी दुर्गा की असीम कृपा पाने का सबसे सुगम तरीका है। इसके पाठ के बिना दुर्गा सप्तशती के पाठ का प्रारम्भ नहीं करना चाहिए। यह स्तोत्र “दुर्गा सप्तशती” की शक्ति को जागृत करता है और भक्तों को भौतिक एवं आध्यात्मिक सुखों से भर देता है।
हमने यहाँ संस्कृत प्रेमियों के लिए “कीलक स्तोत्र संस्कृत में” (Kilak Stotram in Sanskrit) तथा हिंदी भाषियों के लिए “कीलक स्तोत्र हिंदी में” (Kilak Stotram in Hindi) उपलब्ध कराया है, जो इसकी गहराई को सरलता से समझने में मदद करते हैं।
चाहे आप इसे संस्कृत में पढ़ें या हिंदी में, माँ चण्डिका की कृपा सदैव आप पर बनी रहेगी। इस स्तोत्र को कहीं भी पढ़ने के लिए Kilak Stotram PDF के प्रति को अपने डिवाइस में सेव करें और नियमित पाठ से जीवन को दिव्यता से भरें।