सनातन धर्म में “श्री सूक्त” को माता लक्ष्मी की सर्वाधिक शक्तिशाली स्तुतियों में से एक माना गया है। यदि आप “श्री सूक्त पाठ हिंदी में” उसके अर्थ सहित पाठ करना चाहते हैं या फिर श्री सूक्त पाठ संस्कृत में करना चाहते हैं, तो यह ब्लॉग पोस्ट आपके लिए संपूर्ण मार्गदर्शक सिद्ध होने वाला है।
हमने यहाँ “श्री सूक्त PDF” डाउनलोड लिंक भी उपलभ्ध कराया है ताकि आप इसका लाभ घर बैठे उठा सकें। साथ ही, हम विस्तार से जानेंगे कि श्री सूक्त पाठ के लाभ क्या-क्या हैं और श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने की सही विधि क्या है, ताकि अत्यंत सुगमता से आप सभी को माँ महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो।
तो आइए, देवी महालक्ष्मी की कृपा का आह्वान करते हुए श्री सूक्त की दिव्य यात्रा को आरंभ करें।
श्री सूक्त पाठ संस्कृत में
मनुष्य के दुर्भाग्य को समाप्त कर सुख और समृद्धि प्रदान करने वाला “श्री सूक्तं” माता लक्ष्मी को समर्पित एक शक्तिशाली स्तोत्र है। ऋग्वेद के पाँचवे मंडल में इस स्तोत्र का वर्णन मिलता है।
यह स्तोत्र कुल 37 श्लोकों का संग्रह है जिसके पहले 15 श्लोक मूल हैं और बाकि के 22 श्लोक उसकी फलश्रुति तथा परिशिष्ट के रूप में लिखी गयी हैं।
तो सबसे पहले श्री लक्ष्मी सूक्त को उसके मूल भाषा में अर्थात श्री सूक्त पाठ संस्कृत में पढ़ने का प्रयास करें।
श्री सूक्त संपूर्ण पाठ



श्री सूक्त पाठ हिंदी में अर्थ सहित
सम्पूर्ण श्री सूक्त में 16 मंत्र और 21 परिशिष्ट सम्मिलित हैं, जो माता लक्ष्मी को समर्पित वैदिक संस्कृत में रचा गया एक दिव्य स्त्रोत्र है। परन्तु इसकी पूर्ण शक्ति तभी प्रकट होगी जब हम प्रत्येक शब्द के पीछे छिपे भाव, प्रत्येक मंत्र में निहित देवी के विशेष रूप और मन्त्रों के माध्यम से की गयी प्रत्येक कामना के अर्थ को ठीक तरह से समझें।
ब्लॉग पोस्ट के इस भाग में हम आपके लिए श्री सूक्त पाठ संस्कृत में मूल स्वरूप के साथ-साथ, प्रत्येक श्लोक की व्याख्या हिंदी में अर्थ सहित करेंगे।
श्री सूक्त पाठ हिंदी में अर्थ सहित
।। अथ श्री सूक्त मंत्र पाठ ।।
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥१॥
अर्थ: हे सर्वज्ञ अग्निदेव! आप स्वर्ण के समान दैदीप्यमान, कोमलांगी, सोने-चांदी के आभूषणों से सुशोभित, चंद्रमा के समान कांतिवाली, स्वर्णमयी देवी लक्ष्मी का मेरे लिये आवाहन करें ॥1॥
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥२॥
अर्थ: हे अग्निदेव! आप मेरे लिए उन देवी लक्ष्मी का आवाहन करें जिनका कभी विनाश नहीं होता हो तथा जिनके आगमन से मैं सोना, गौ, घोड़े तथा पुत्रादि को प्राप्त कर सकूँ ॥2॥
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥३॥
अर्थ: जो घोड़ों से जुते रथ के मध्य में विराजमान हैं तथा जो हाथियों की गर्जना सुनकर प्रमुदित होती हैं, उन्हीं श्रीदेवी का मैं आवाहन करता हूँ; देवी लक्ष्मी मुझे प्राप्त हों ॥3॥
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां
ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां
तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥४॥
अर्थ: जो साक्षात् ब्रह्मरूपा, मन्द-मन्द मुसकराने वाली, स्वर्ण के आवरण से आवृत, दयाद्र, देदीप्यमान, पूर्णकामा, भक्तानुग्रहकारिणी, कमल के आसान पर विराजमान तथा कमल के समान हीं वर्ण वाली हैं, उन देवी लक्ष्मी का मैं यहाँ आवाहन करता हूँ ॥4॥
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं
श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये
अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥५॥
अर्थ: मैं चन्द्रमा के समान शुभ्र कान्तिवाली, प्रकाशपूर्ण, यश से दीप्तिमान, स्वर्गलोक में देवताओं के द्वार पूजित, उदारशीला, पद्महस्ता देवी लक्ष्मी की शरण ग्रहण करता हूँ। मेरा दारिद्र्य नष्ट हो जाय; मैं आपको शरण्य के रूप में वरण करता हूँ ॥5॥
आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो
वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु
या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥६॥
अर्थ: हे सूर्य के समान प्रकाशस्वरूपे! आपके ही तप से वृक्षों में श्रेष्ठ मंगलमय बिल्ववृक्ष उत्पन्न हुआ। उसके फल आपके अनुग्रह से हमारे बाहरी और भीतरी दरिद्रता कों दूर करें ॥6॥
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्की र्तिमृद्धिं ददातु मे ॥७॥
अर्थ: हे देवि ! देवसखा कुबेर और उनके मित्र मणिभद्र तथा दक्ष-प्रजापति की कन्या कीर्ति मुझे प्राप्त हों अर्थात् मुझे धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति हो। मैं इस राष्ट्र में उत्पन्न हुआ हूँ, हे देवी! मुझे कीर्ति और समृद्धि प्रदान करें ॥7॥
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥८॥
अर्थ: मैं माता लक्ष्मी की ज्येष्ठ बहन अलक्ष्मी (दरिद्रता की अधिष्ठात्री देवी ) का, जो क्षुधा और पिपासा से मलिन तथा क्षीणकाय रहती हैं, नाश चाहता हूँ। देवि! मेरे जीवन से सब प्रकार के अभाव तथा दरिद्रता को दूर करो॥ 8॥
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥९॥
अर्थ: सुगन्धि जिनका प्रवेश द्वार है, जो दुराधर्षा अर्थात अजेय तथा नित्यपुष्टा अर्थात सदैव पोषण देने वाली हैं, जो गोमय के बीच निवास करती हैं, जो समस्त प्राणियों की स्वामिनी हैं उन देवी लक्ष्मी का मैं अपने जीवन में आवाहन करता हूँ ॥9॥
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥१०॥
अर्थ: मन की समस्त कामनाएं और संकल्प की सिद्धि तथा वाणी की सत्यता मुझे प्राप्त हों; गौ आदि पशुओं एवं विभिन्न अन्न-आदि भोग्य पदार्थों के रूप में तथा यश के रूप में श्रीदेवी मेरे जीवन में आगमन करें॥10॥
कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥११॥
अर्थ: हे देवी! आप ऋषि कर्दम के कुल में प्रजा अर्थात संतान के रूप में प्रकट हुई थीं। उसी प्रकार, हे कर्दम! आप मुझमें प्रकट हो और पद्मोंकी माला धारण करनेवाली माता देवी लक्ष्मी को हमारे कुल में स्थापित करें॥ 11॥
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥१२॥
अर्थ: हे जल! आप स्निग्ध पदार्थों की सृष्टि करें। हे लक्ष्मीपुत्र चिक्लीत! आप भी मेरे घर में निवास करें और माता लक्ष्मी को भी मेरे कुल में स्थापित करें ॥12॥
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥१३॥
अर्थ: हे जातवेद (अग्निदेव)! आर्द्रता प्रदान करने वाली, सरोवर में निवास करने वाली, पुष्टि को देने वाली, सुनहरे वर्ण वाली, कमल पुष्पों की माला धारण करने वाली, चंद्रमा के समान शुभ्र कान्ति से युक्त और स्वर्णमयी लक्ष्मी देवी का मेरे यहाँ आवाहन करें ॥13॥
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥१४॥
अर्थ: हे अग्निदेव! जो दुष्टों का निग्रह करने वाली होने पर भी दयाभाव से आर्द्रचित्त हैं, जो मंगलदायिनी और अवलम्बन प्रदान करने वाली यष्टिरूपा हैं, जो सुन्दर वर्णवाली, सुवर्णमाला को धारण करने वाली, सूर्यस्वरूपा तथा स्वर्णिम हैं, उन प्रकाशस्वरूपा देवी लक्ष्मी का मेरे लिए आवाहन करें ॥14॥
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥१५॥
अर्थ: हे अग्ने! कभी नष्ट न होने वाली उन स्थिर लक्ष्मी देवी का मेरे लिये आवाहन करें, जिनके आगमन से बहुत सा धन, गायें, सेवक, अश्व और पुत्रादि हमें प्राप्त हों ॥ 15॥
॥ फलश्रुति ॥
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥१६॥
अर्थ: जो नित्य पवित्र और संयमशील होकर अग्नि में घी की आहुतियाँ देते हुए इन पन्द्रह ऋचाओं वाले श्रीसूक्त का भक्तिपूर्वक पाठ करता है, उसकी श्री लक्ष्मी को पाने की कामना पूर्ण हो जाती है ॥ 16॥
॥ परिशिष्ट – श्री लक्ष्मी सूक्त ॥
पद्मानने पद्मऊरु पद्माक्षि पद्मसम्भवे।
तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥१७॥
अर्थ: हे कमल के समान मुख वाली! हे कमल के समान ऊरुप्रदेशवाली! हे कमल के समान नेत्रों वाली! हे कमल पुष्पों से आविर्भूत होनेवाली कमलनयनी! आप उसी प्रकार मेरा पालन करें, जिससे मैं परम सुख को प्राप्त कर सकूँ ॥ 17॥
अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥१८॥
अर्थ: अश्वदायिनी, गोदायिनी, धनदायिनी, महाधन स्वरूपिणी हे देवि! मेरे पास सदैव धन रहे, आप मेरी समस्त कामनाओं को आप पूर्ण करे तथा मुझे सभी अभिलषित वस्तुएँ प्रदान करें ॥ 18॥
पुत्रपौत्रधनं धान्यं हस्त्यश्वाश्वतरी रथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम् ॥१९॥
अर्थ: हे देवी! आप सृष्टि के समस्त प्राणियों की माता हैं। आप मुझे पुत्र, पौत्र, धन, धान्य, हाथी, घोड़े, खच्चर तथा रथ आदि से संपन्न करें। हे देवी! आप मुझे दीर्घ आयुष्य प्रदान करें ॥ 19॥
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमश्नुते ॥२०॥
अर्थ: हे देवी लक्ष्मी! आप मुझे अग्नि, इन्द्र, वायु, सूर्य, जल, बृहस्पति, वरुण आदि की कृपा द्वारा धन प्रदान करें ॥20॥
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥२१॥
अर्थ: हे विनता के पुत्र गरुड! आप सोमपान करें। वृत्रासुर के विनाशक इन्द्र, आप सोमपान करें। हे सोमरस के स्वामी (कुबेर)! मुझ सोमपान की अभिलाषा रखने वाले को धन का सोम (धनरूपी अमृत) प्रदान करें॥ 21॥
न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा ॥२२॥
अर्थ: श्री सूक्त का भक्तिपूर्वक पाठ करने वाले, पुण्यशाली लोगों को न क्रोध होता है, न ईर्ष्या होती है, न लोभ ग्रसित कर सकता है और न हीं उनकी बुद्धि दूषित होती है। वे सदैव सत्कर्म की ओर प्रेरित होते रहते हैं ॥22॥
वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः ।
रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि ॥२३॥
अर्थ: हे समस्त ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी! मेघों से भरे आकाश में बादल और बिजली के द्वारा अपनी कृपा बरसाओ। तथा सभी प्रकार के बीज अंकुरित होकर उन्नति को प्राप्त हों। हे देवी! आप ब्रह्मस्वरूप हैं और सभी द्वेषों का नाश करने वाली हैं ॥23॥
पद्मप्रिये पद्मिनि पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि ।
विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥२४॥
अर्थ: हे लक्ष्मी देवी! कमल के सामान मुख वाली , कमल पुष्प पर विराजमान, कमल-दल के समान नेत्रों वाली, कमल पुष्पों को पसंद करने वाली, भगवान विष्णु के मन के अनुकूल आचरण करनेवाली, सृष्टि के सभी जीव आपकी कृपा की कामना करते हैं। आप सबको मनोनुकूल फल प्रदान करने वाली हैं। हे देवी! आपके चरण-कमल सदैव मेरे हृदय में स्थित हों ॥24॥
या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी ।
गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया ॥२५॥
अर्थ: जो कमल के आसन पर विराजमान हैं, जिनकी कमर विशाल और सुडौल है, जिनकी आँखें कमल की पंखुड़ियों के समान विशाल हैं, जिनकी नाभि गहरी और घुमावदार है, जो पूर्ण वक्षस्थल के साथ मंद मंद झुकी हुई हैं और जिन्होंने श्वेत वस्त्र एवं दुपट्टा धारण कर रखा है ॥25॥
लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैस्स्नापिता हेमकुम्भैः।
नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता॥२६॥
अर्थ: विभिन्न रत्नों से जड़ित श्रेष्ठ और दिव्य हाथियों द्वारा स्वर्ण कलश के जल से जिस देवी लक्ष्मी का स्नान कराया जाता है, वह कमलहस्ता, समस्त मंगलों से युक्त, सदैव मेरे घर में निवास करें ॥26॥
लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीम् ।
दासीभूतसमस्त देव वनितां लोकैक दीपांकुराम् ॥२७॥
अर्थ: मैं उस देवी लक्ष्मी की स्तुति करता हूँ, जो क्षीर सागर की पुत्री हैं, श्रीरंगधाम अर्थात समस्त वैभव की स्वामिनी हैं, जिनके लिए समस्त देवांगनाएँ दासी के समान हैं और जो समस्त लोकों के लिए एकमात्र दीपक की ज्योति के समान हैं तथा हर प्रकटीकरण के पीछे अंकुरित होता है ॥27॥
श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधराम् ।
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥२८॥
अर्थ: मैं उस कमलजा देवी माता लक्ष्मी की वंदना करता हूँ, जिनकी सुंदर कोमल दृष्टि की कृपा मात्र से भगवान ब्रह्मा, इंद्र और शिव आदि देवताओं को ऐश्वर्य प्राप्त किया है। जो सम्पूर्ण त्रैलोक्य की पालनकर्त्री माता हैं और मुकुंद अर्थात भगवान् श्री विष्णु की प्रियतमा हैं ॥28॥
सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती ।
श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा ॥२९॥
अर्थ: हे सिद्धि देनेवाली सिद्धिलक्ष्मी! हे मोक्ष देनेवाली मोक्षलक्ष्मी! हे विजय प्रदान करनेवाली जयलक्ष्मी! हे विद्या स्वरूपा विद्यालक्ष्मी! हे ऐश्वर्य देनेवाली श्रीलक्ष्मी! तथा वर प्रदान करने वाली वरलक्ष्मी! आप सभी सदैव मुझ पर प्रसन्न रहें ॥29॥
वरांकुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम् ।
बालार्क कोटि प्रतिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीस्वरीं त्वाम् ॥३०॥
अर्थ: जो अपने हाथों में वर, अंकुश, पाश और अभय-मुद्रा धारण किए हुए हैं, जो कमलासन पर विराजमान हैं, करोड़ों उगते हुए सूर्यों के समान जिनका प्रकाश है, जिनके तीन नेत्र हैं, जो आदिशक्ति और जगत की अधीश्वरी हैं, ऐसी माता लक्ष्मी को मैं प्रणाम करता हूँ और भजता हूँ ॥30॥
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ नारायणि नमोऽस्तु ते॥३१॥
अर्थ: हे समस्त मंगलों में सर्वाधिक मंगलमयी! हे कल्याणस्वरूपिणी! भक्तों के समस्त पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) को सिद्ध कराने वाली! हे शरणदायिनी! हे तीन नेत्रों वाली माता! हे नारायणी देवी! मैं आपको बारंबार नमस्कार करता हूँ। हे नारायणी! आपको नमस्कार है। हे नारायणी!आपको नमस्कार है ॥31॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥३२॥
अर्थ: हे कमलनिवासिनी! हे कमलहस्ते! हे अत्यंत उज्ज्वल वस्त्र, सुगंध और मालाओं से शोभित! हे समस्त ऐश्वर्य की स्वामिनी भगवती! हे हरि की प्रियतमा! हे मनोहर! हे तीनों लोकों का कल्याण करने वाली! आप मुझ पर प्रसन्न हों ॥32॥
विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं भूमिं नमाम्यच्युतवल्लभाम्॥३३॥
अर्थ: मैं विष्णु की पत्नी, क्षमा स्वरूपिणी देवी, माधवी, माधव की प्रियतमा, लक्ष्मी, प्रिय सखी और अच्युत (विष्णु) की प्रियतमा को नमस्कार करता हूँ ॥33॥
महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥३४॥
अर्थ: हम उन महालक्ष्मी का ध्यान करते हैं, जो भगवान विष्णु की पत्नी हैं। वे देवी लक्ष्मी हमारी बुद्धि को सदा सत्पथ की ओर प्रेरित करें ॥34॥
श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥३५॥
अर्थ: इस लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से व्यक्ति ऐश्वर्य, तेज, दीर्घ आयु और स्वास्थ्य को प्राप्त कर शोभायमान और महान बनता है। वह धन, अन्न, पशु, अनेक पुत्रों की प्राप्ति कर सौ वर्षों तक की दीर्घ आयु प्राप्त करता है ॥35॥
ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥३६॥
अर्थ: ऋण, रोग, दरिद्रता, पाप, भूख, अकाल मृत्यु, भय, शोक तथा मानसिक ताप आदि – ये सभी बाधाएँ मेरे जीवन से सदा के लिये नष्ट हो जाएँ ॥36॥
य एवं वेद ।
ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥३७॥
अर्थ: ॐ, हम महान देवी और विष्णु की पत्नी महालक्ष्मी को इस सूक्त के माध्यम से जानते हुए उनका ध्यान करते हैं। वे लक्ष्मी देवी हमें कल्याण के मार्ग पर प्रेरित करें। ओम शांति शांति शांति ॥37॥
।। इति श्रीसुक्तम सम्पूर्ण: ।।
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श्री सूक्त PDF
श्री सूक्त मन्त्र का पाठ करने से साधक के जीवन की सभी प्रकार की निर्धनता दूर होती है तथा उसे धन, समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। अत: इस स्तोत्र का नित्य प्रतिदिन पूर्ण भक्तिभाव के साथ पाठ करना चाहिए।
अगर आप श्री सूक्त को रोज़ पढ़ना चाहते हैं या फिर इसकी पूरी 37 श्लोकों वाली स्वरूप को अपने पास सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो यहाँ दिया गया श्री सूक्त PDF आपके लिए बहुत उपयोगी होगा। इसे डाउनलोड करके आप हमेशा अपने फ़ोन या कंप्यूटर में रख सकते हैं या प्रिंट निकाल कर पूजाघर में रख सकते हैं।
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श्री सूक्त पाठ के लाभ
सनातन धर्म में माता लक्ष्मी को केवल धन की हीं नहीं बल्कि स्वास्थ्य, मानसिक शांति, आध्यात्मिक पवित्रता और सुरक्षा की भी दात्री माना गया है। ऐसा माना जाता है कि नियमित रूप से किया गया श्री सूक्त का पाठ सिर्फ धन-समृद्धि ही नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में स्थिरता, सौभाग्य और शांति लाता है।
श्री महालक्ष्मी अष्टक के समान देवी का यह स्तोत्र भी साधक को हर प्रकार के दुख से मुक्त करके एक पूर्णतः सुखी और निर्भय जीवन प्रदान करता है। नीचे श्री सूक्त पाठ से मिलने वाले प्रमुख लाभ विस्तार से समझाए गए हैं:
सकारात्मक कर्म-ऊर्जा का होता है निर्माण
श्री सूक्त का पाठ साधक की कर्मशक्ति को सक्रिय करता है, जिससे व्यक्ति अपने कर्मों में स्थिरता, अनुशासन और जागरूकता की वृद्धि होती है।
समस्याओं का पूर्ण और स्थायी रूप से होता है नाश
यह स्तोत्र मनुष्य के जीवन में आने वाले सभी प्रमुख दुखों और संकटों को स्थायी रूप से समाप्त कर डालता है। श्री सूक्त के नियमित पाठ से “ऋण, रोग, दरिद्रता, पाप, भूख, अकाल मृत्यु, भय, शोक और मन की पीड़ाएँ — ये सब सदैव के लिए नष्ट हो जाती हैं।
धन और समृद्धि की होती है प्राप्ति
श्री लक्ष्मी सूक्त स्तोत्र को विशेष रूप से धन-लक्ष्मी को आकर्षित करने वाला स्तोत्र माना गया है। इसके नियमित पाठ से घर में अन्न-धन की वृद्धि और आर्थिक स्थिरता आती है।
नौकरी, व्यापार और करियर में होती है उन्नति
श्री सूक्त को लक्ष्मी प्राप्ति के सबसे प्रभावी स्तोत्रों में माना जाता है। इसके प्रभाव से नौकरी तथा व्यवसाय में नई अवसरों की प्राप्ति होती है। इस स्तोत्र का भक्ति भाव से किया गया पाठ कार्यों में सफलता और करियर में उन्नति प्रदान करता है।
परिवार में आती है सुख-शांति और सौहार्द
श्री सूक्त में वर्णित “शुभ” और “सौभाग्य” का आह्वान परिवार में झगड़े और मतभेद को कम कर प्रेम और सामंजस्य को बढ़ता है। अतः कई लोग इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से अपने परिवार के कल्याण के लिए करते हैं।
आत्मविश्वास और मानसिक बल में होती है वृद्धि
नियमित रूप से उच्च स्वर में श्री सूक्त स्तोत्र का किया गया पाठ या फिर इसके श्रवण मात्र से मनुष्य का मन दृढ़ होता है और उसके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। इस स्तोत्र का प्रत्येक श्लोक साधक के भीतर अभय और विश्वास का भाव जगाता है तथा जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को विकसित करता है।
रोगों से रक्षा और स्वास्थ्य लाभ
नियमित रूप से श्री सूक्त का किया गया पाठ साधक के शरीर को सूक्ष्म स्तर पर संतुलित करता है, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर-मन की थकान कम होती है। भारतीय आयुर्वेद में इसे प्राण ऊर्जा को शुद्ध करने वाला मंत्र माना गया है।
धन के अपव्यय और हानि से मिलती है सुरक्षा
यदि व्यक्ति कर्ज, अस्थिर आय या व्यापार में रुकावटों से परेशान हो, तो नियमित रूप से श्री सूक्त का किया गया पाठ धीरे-धीरे उन बाधाओं को दूर करता है। यह मन में स्पष्टता और सही निर्णय लेने की शक्ति देता है, जिससे व्यक्ति गलत निवेश, धोखाधड़ी, अप्रत्याशित हानि और धन के अपव्यय से सुरक्षित रहता है।
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श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ कैसे करें
सनातन धर्म में श्री सूक्त का पाठ अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली माना गया है। यदि आप इसे नियमित रूप से सही नियमों, शुद्ध भाव और श्रद्धा के साथ करते हैं तो इसका फल कई गुना बढ़ जाता है। तो चलिए अब हम जानते हैं कि श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ कैसे करें।
प्रभावी समय और दिन का चयन
श्री सूक्त पाठ के लिए प्रातःकाल सूर्योदय का समय या सायंकाल सूर्यास्त के पूर्व का समय सर्वोत्तम माना गया है। अगर प्रभावी और शुभ दिनों के बारे में बात की जाये तो शुक्रवार, गुरुवार, पूर्णिमा और दीपावली का दिन इसके लिए अति शुभ माना गया है।
सही स्थान व आसन का चयन
पूजा स्थल के लिए किसी स्वच्छ और शांत जगह को चुनें। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन लगाएँ। यदि संभव हो तो कुश से बने आसन का चयन करें अन्यथा चटाई या किसी स्वच्छ कपड़े को भी प्रयोग में लाया जा सकता है। शास्त्रों के अनुसार एक ही आसन पर रोज बैठने से साधना का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
स्नान एवं शारीरिक शुद्धि होती है जरुरी
पाठ करने से पहले स्नान करें या कम से कम हाथ-पैर धोकर स्वच्छ और विशेष रूप से हल्के और सात्विक रंग के वस्त्र धारण करें। पाठ के पहले मन को स्थिर करना जरुरी होता है अतः इसके लिए कुछ क्षण शांत बैठें और माँ लक्ष्मी का स्मरण करें।
पूजा सामग्री की तैयारी
अगर संभव हो तो जल का कलश, एक दीपक (घी या तेल का), लाल या पीले फूल, कुमकुम, चावल, मीठा प्रसाद और एक श्रीयंत्र या लक्ष्मी जी की मूर्ति अथवा चित्र को अपने समक्ष स्थापित करें।
संकल्प करें
पाठ शुरू करने से पहले हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर अपना नाम, गोत्र, तिथि और स्थान बोलते हुए संकल्प लें। उदाहरण: “मैं [ अपना नाम, गोत्र, तिथि और स्थान ] माता लक्ष्मी प्रसन्नता के लिए श्री सूक्त का पाठ करने का संकल्प करता/करती हूँ।”
आचमन व प्राणायाम करें
तीन बार आचमन करें और फिर गहरी साँस लेकर मन को केन्द्रित करें।
देवताओं का आवाहन करें
सबसे पहले भगवान् श्री गणेश, अपने गुरु और इष्ट देवता का स्मरण करें। फिर मन में माँ लक्ष्मी की कल्पना करते हुए कि वे आपके सामने विराजमान हैं, इस तरह उनका आह्वान करें।
श्री सूक्त का पाठ प्रारंभ करें
श्री सूक्त पाठ संस्कृत में धीरे-धीरे और स्पष्ट उच्चारण के साथ करें। यदि संस्कृत कठिन लगे, तो आप श्री सूक्त पाठ हिंदी में अर्थ सहित भी कर सकते हैं। पाठ करते समय उच्चारण पर विशेष ध्यान दें क्योंकि उच्चारण जितना सही होगा, उतना हीं बेहतर परिणाम आपको मिलेगा।
प्रार्थना और प्रसाद वितरण
पाठ पूरा होने पर माँ को पुष्प, कुमकुम और प्रसाद अर्पित करें। हाथ जोड़कर माँ से अपनी भूल-चूक के लिए क्षमा माँगें और उनसे अपने व परिवार के कल्याण की प्रार्थना करें। तत्पश्चात माता को अर्पित किया गया प्रसाद स्वयं ग्रहण करें और परिवारजनों में बाँटें।
कुछ महत्वपूर्ण सुझाव:
- प्रतिदिन या सप्ताह में कम से कम 1–2 बार पाठ करना अत्यंत लाभकारी है।
- श्री सूक्त स्तोत्र को जल्दबाज़ी में पाठ न पढ़ें—मंत्र की गति जितनी शांत होगी, प्रभाव उतना गहरा होगा।
- शुक्रवार, पूर्णिमा या देवी के विशेष दिनों में अवश्य करें।
- पाठ के दौरान मन में ईर्ष्या, क्रोध या नकारात्मक विचार न लाएँ। केवल समर्पण और कृतज्ञता का भाव रखें
- यदि आप श्री सूक्त को श्री यंत्र या कुबेर यंत्र के सामने पढ़ते हैं, तो इसका प्रभाव और शक्तिशाली माना जाता है।
- पाठ के साथ-साथ घर में सफाई व सात्विकता बनाए रखना आवश्यक है।
- लाल, पीले या सफेद पुष्पों से माँ लक्ष्मी का पूजन करें।
- यदि संभव हो तो पाठ के बाद घर में थोड़ा-सा घी का दीपक जलाए रखें।
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निष्कर्ष
श्री लक्ष्मी सूक्त देवी महालक्ष्मी को समर्पित 37 श्लोको का एक ऐसा संकलन है जो साधक के जीवन में धन, समृद्धि, शांति और स्थिरता का मार्ग प्रशस्त करती है।
यहाँ हमने जाना कि श्री सूक्त पाठ संस्कृत में कैसे पढ़ें और श्री सूक्त पाठ हिंदी में अर्थ सहित इसे समझकर कैसे हम इसकी गहराई में उतरें। हमने इस आर्टिकल में आप सभी के लिए श्री सूक्त PDF भी उपलभ्ध कराया है। साथ ही, श्री सूक्त पाठ के लाभ को जानकर और श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ की सही विधि अपनाकर हम माता लक्ष्मी की कृपा को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।
श्री सूक्त पाठ हिंदी में FAQ
श्री सूक्त में कितने मंत्र होते हैं?
श्री लक्ष्मी सूक्त देवी महालक्ष्मी को समर्पित 37 श्लोको का एक ऐसा वैदिक संकलन है जो साधक के जीवन में धन, समृद्धि, शांति और स्थिरता का मार्ग प्रशस्त करती है।
क्या श्री सूक्त का पाठ हिंदी में किया जा सकता है?
हाँ, बिल्कुल कर सकते हैं। बल्कि किसी भी स्तोत्र के पूर्ण लाभ के लिए हिंदी अर्थ के साथ पढ़ना आवश्यक है, ताकि आप प्रत्येक शब्द का भाव समझ कर मन में चिंतन कर सकें।
श्री सूक्त कब पढ़ना चाहिए?
श्री सूक्त पाठ के लिए प्रातःकाल सूर्योदय का समय या सायंकाल सूर्यास्त के पूर्व का समय सर्वोत्तम माना गया है। शुक्रवार, गुरुवार, पूर्णिमा और दीपावली का दिन इसके लिए अति शुभ माना गया है।
श्री सूक्त पढ़ने से क्या लाभ होता है?
श्री सूक्त पाठ से साधक के जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति आती है। साथ ही यह स्तोत्र दरिद्रता, रोग, कलह और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ती है।
क्या महिलाएं श्री सूक्त का पाठ कर सकती हैं?
बिल्कुल कर सकती हैं। माँ लक्ष्मी की आराधना सभी उम्र और लिंग के लोग कर सकते हैं।