लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् | Lingashtakam in Hindi

प्रिय पाठकों, “लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम्” भगवान शिव को समर्पित एक प्रभावशाली स्तोत्र है जिसकी रचना साक्षात् शिवजी का अवतार माने जाने वाले आदि शंकराचार्य ने की थी।

भगवान शिव की स्तुति के लिए इस स्तोत्र में कुल आठ श्लोक लिखे गए हैं, जिसके पाठ से भगवान शिव अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों को मनचाहा वरदान प्रदान करते हैं।

यदि आप जीवन में दुःख-दर्द, करियर में बाधाओं या मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं और आपको यह लग रहा है कि मानो बुरा समय खत्म ही नहीं हो रहा, तो भगवान शिव का यह लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् आपके लिए वरदान साबित हो सकता है।

मान्यता है कि यदि नियमित रूप से श्रद्धा-भाव के साथ शिवलिंग पर जल और बिल्वपत्र अर्पित कर, लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् का पाठ किया जाए, तो सभी बाधाएँ धीरे-धीरे दूर होने लगती हैं।

यदि आप लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् PDF डाउनलोड करना चाहते हैं या इसके सरल हिंदी अर्थ और लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् के लाभ जानना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए उपयोगी और मार्गदर्शक सिद्ध होगा।

लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् संस्कृत में

शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है कि जो भी मनुष्य इस लिंगाष्टकम स्तोत्र का श्रद्धा भाव से पाठ या श्रवण करता है, उसके सारे कष्ट क्षण मात्र में नष्ट हो जाते हैं तथा अंत में उसे अवश्य हीं शिवलोक की प्राप्ति होती है।

लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् मूल रूप से संस्कृत में लिखा गया है। तो चलिए सबसे पहले शिवजी को समर्पित इस स्तोत्र का पाठ संस्कृत में करने का प्रयास करते हैं।

लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम्

॥ इति श्री लिङ्गाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् सरल भाषा में पढ़ना सीखें

लिंगाष्टकम स्तोत्र भगवान शिव को खुश करने का सबसे आसन तरीका है। नियमित रूप से श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

अगर आप लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् का पाठ करना चाहते हैं लेकिन संस्कृत के उच्चारण में कठिनाई महसूस करते हैं, तो यह भाग आपके लिए है। इस सेक्शन में, हम आपको सरल हिंदी भाषा में इस पावन स्तोत्र को पढ़ने और समझने का तरीका सिखाएँगे।

यहाँ हमने संस्कृत के श्लोकों को सरल हिंदी लिप्यांतरित के माध्यम से पढ़ना सिखाया है, ताकि आप शुद्ध उच्चारण के साथ इसका पाठ कर सकें।

॥ श्री लिङ्गाष्टकं स्तोत्र पढ़ना सीखें॥

ब्रह्म मुरारि सुरार्चित लिंगं
निर्मल भासित शोभित लिंगम्।
जन्मज दुःख विनाशक लिंगं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्॥१॥

देव मुनि प्रवरार्चित लिंगं
काम दहं करुणाकर लिंगम्।
रावण दर्प विनाशन लिंगं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्॥२॥

सर्व सुगंधि सुलेपित लिंगं
बुद्धि विवर्धन कारण लिंगम्।
सिद्ध सुरासुर वंदित लिंगं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्॥३॥

कनक महा मणि भूषित लिंगं
फणि पति वेष्टित शोभित लिंगम्।
दक्ष सुयज्ञ विनाशन लिंगं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्॥४॥

कुंकुम चंदन लेपित लिंगं
पंकज हार सुशोभित लिंगम्।
संचित पाप विनाशन लिंगं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्॥५॥

देव गणार्चित सेवित लिंगं
भावैः भक्तिभिरेव च लिंगम्।
दिनकर कोटि प्रभाकर लिंगं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्॥६॥

अष्टदल उपरि वेष्टित लिंगं
सर्व समुद्भव कारण लिंगम्।
अष्ट दरिद्र विनाशित लिंगं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्॥७॥

सुरगुरु सुरवर पूजित लिंगं
सुरवन पुष्प सदार्चित लिंगम्।
परात्परं परमात्म लिंगं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्॥८॥

लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
शिव लोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥९॥

॥ इति श्री लिङ्गाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् हिंदी में । Lingashtakam in Hindi

शिवपुराण के अनुसार, शिवलिंग की आराधना में लिंगाष्टकम का पाठ अत्यंत फलदायक माना गया है। कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ प्रतिदिन शिवलिंग पर जल व बेलपत्र चढ़ाकर यह स्तोत्र पढ़े, तो भगवान शिव अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं। उनके आशीर्वाद से जीवन की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और सुख-शांति की स्थापना होती है।

इस भाग में आप भगवान शिव के लिंग रूप की महिमा को समर्पित लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् को संपूर्ण रूप से हिंदी में पढ़ सकते हैं। हिंदी में उपलब्ध होने से भक्तों के लिए इसकी गहराई को समझना और भी सरल हो जाता है।

शंकरचार्य रचित यह स्तोत्र मूल रूप से संस्कृत में लिखा है, लेकिन हिंदी अनुवाद के साथ इस स्तोत्र का किया गया पाठ शिवलिंग की अलौकिक शक्ति से जोड़ता है। चाहे आप संस्कृत के ज्ञानी हों या नहीं, हिंदी में इसका पाठ करने से आप शिव के निराकार स्वरूप की व्याख्या को हृदय तक महसूस कर सकते हैं।

॥ अथ श्री लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् ॥

ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं
निर्मलभासितशोभितलिङ्गम्।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्ग
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥

अर्थ: जो लिङ्ग (स्वरूप) ब्रह्मा, विष्णु एवं समस्त देवगणो द्वारा पूजित तथा निर्मल कान्ति से सुशोभित है और जो जन्मजन्य दुःख का विनाशक अर्थात्‌ मोक्षप्रदायक है, उस सदाशिव-लिङ्ग को मैं नमस्कार करता हूँ ॥१॥

देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं
कामदहं करुणाकरलिङ्गम्।
रावणदर्पविनाशन लिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥

अर्थ: जो शिवलिङ्घ श्रेष्ठ देवगण एवं ऋषि-प्रवरो द्वारा पूजित है, कामदेव को नष्ट करनेवाला है, करुणा का सागर है और जो रावण के अहंकार को भी नष्ट करने वाला है, उस सदाशिव-लिङ्ग को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२॥

सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं
बुद्धिविवर्धन कारणलिङ्गम्।
सिद्धसुराऽसुरवन्दितलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥३॥

अर्थ: जो लिङ्ग सभी दिव्य सुगन्धि (अगर,तगर,चन्दन आदि) से सुलेपित है, जो “ज्ञानमिच्छेत्तु शङ्करात्‌” इस उक्ति द्वारा बुद्धि-वृद्धि कारक है, जो समस्त सिद्ध, देवता एवं असुर गणों के द्वारा वन्दित है, उस सदाशिव-लिङ्ग को मैं नमस्कार करता हूँ ॥३॥

कनकमहामणिभूषितलिङ्गं
फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम्।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्ग
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥४॥

अर्थ: साम्ब-सदाशिव का लिङ्गरूप विग्रह सुवर्ण, माणिक्यादि महामणियो से विभूषित है तथा जो नागराज द्वारा लिपटे होने से अत्यन्त सुशोभित है, और जो दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाला है, उस सदाशिव-लिङ्ग को मैं नमस्कार करता हूँ ॥४॥

कुंकुमचन्दनलेपितलिङ्गं
पंकजहारसुशोभितलिङ्गम्।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥५॥

अर्थ: सदाशिव का लिङ्गरूप विग्रह जो कुंकुम-चन्दन आदि से लिप्त है, जो दिव्य कमलों की माला से शोभायमान है, ओर जो अनेक जन्म-जन्मान्तर के संचित पाप को नष्ट करनेवाला है, उस सदाशिव-लिङ्गको मैं नमस्कार करता हूँ ॥५॥

देवगणार्चितसेवितलिङ्गं
भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्।
दिनकरकोटि प्रभाकरलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥६॥

अर्थ: समस्त देवगणों द्वारा भक्ति-भाव से पूजित एवं सेवित, करोड सूर्यो की प्रखर कान्ति से युक्त उस भगवान्‌ सदाशिव-लिङ्ग को मैं नमस्कार करता हूँ ॥6॥

अष्टदलोपरि वेष्टितलिङ्गं
सर्वसमुद्भव कारणलिङ्गम्।
अष्टदरिद्र विनाशितलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥७॥

अर्थ: अष्टदल कमल पर विराजित सदाशिव का लिङ्करूप विग्रह जो सभी चराचर जगत की उत्पत्ति का कारण भूत है, एवं जो आठों प्रकार की दरिद्रता का नाश करने वाला है, उस सदाशिव-लिङ्ग को मैं प्रणाम करता हूं ॥ ७॥

सुरगुरुसुरवर-पूजितलिङ्गं
सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम्।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥८॥

अर्थ: जो लिङ्क देवगुरु बृहस्पति एवं देवराज इन्द्रादि के द्वारा पूजित है, जो निरन्तर नन्दनवन के दिव्य पुष्पो द्वारा अर्चित है, जो परात्पर एवं परमात्मा स्वरूप है, उस सदाशिव-लिङ्ग को मैं प्रणाम करता हूं ॥ ८ ॥

लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥९॥

अर्थ: जो मनुष्य साम्ब-सदाशिव के समीप बैठकर इस पुण्यदायक लिङ्काष्टक का पाठ करता है, वह निश्चित ही शिवलोक में निवास करता है तथा शिव के साथ रहते हए अत्यन्त प्रसन्न होता है ॥ ९॥

॥ श्री लिङ्गाष्टकं स्तोत्र सम्पूर्ण होता है ॥

Lingashtakam in Hindi

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लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् PDF

अगर आप लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् को नियमित रूप से पढ़ना या Save करना चाहते हैं, तो यहाँ हम आपके लिए इसका मुफ्त PDF प्रारूप लेकर आए हैं। इसे डाउनलोड करके आप कभी भी, कहीं भी शिवलिंग की महिमा का पाठ कर सकते हैं।

नीचे दिए गए लिंक से आप लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् PDF आसानी से डाउनलोड कर भगवान् शिव की अनुकंपा को अपने जीवन में शामिल करें।

लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् PDF Download

लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् के लाभ

भगवान शिव को समर्पित लिङ्गाष्टकं स्तोत्र के नियमित पाठ से भक्त को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है, चाहे मन की शांति हो, रोगों से मुक्ति हो, संतान सुख, या ग्रह दोषों का निवारण हीं क्यों ना हो, यह स्तोत्र हर इच्छा को पूर्ण करने की शक्ति रखता है। साथ ही, यह स्तोत्र नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर घर-परिवार में सुख-समृद्धि लाता है।

अब हम जानेंगे कि लिङ्गाष्टकं स्तोत्र के नियमित पाठ से भक्त को क्या-क्या फल प्राप्त हो सकते हैं।

आठों प्रकार की दरिद्रता से मिलती है मुक्ति

इस स्तोत्र में हीं इस बात का वर्णन मिलता है की जो भी मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करता है उसकी आठों प्रकार की दरिद्रता का शीघ्र हीं नाश हो जाता है।

शिवलोक की होती है प्राप्ति

शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है कि इस स्तोत्र के नियमित पाठ से जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है और भक्त अंततः शिवलोक को प्राप्त करता है।

पापों से मिलती है मुक्ति

शिवजी को अतिप्रिय इस लिंगाष्टक स्तोत्र के नित्य पाठ से मन, वाणी और कर्म से हुए जन्म-जन्मांतर के पाप और दोषों का नाश हो जाता है।

मनोकामनाएँ होती हैं पूर्ण

भक्ति भाव से किया गया लिङ्गाष्टकं स्तोत्र का पाठ भगवान शिव की विशेष कृपा को प्रदान करता है। इस स्तोत्र के पाठ से शीघ्र हीं मनोवांक्षित फल की प्राप्ति होती है।

भय और रोगों से होती है रक्षा

नियमित पाठ से रोगों से भी रक्षा होती है। भगवान् शिव को समर्पित इस लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम के पाठ से मन को शांति मिलती है साथ हीं शारीरिक रोग तथा नकारात्मक विचारों का नाश होने लगता है। इस स्तोत्र के पाठ से भूत-प्रेत, बुरी नज़र, और वास्तु दोष इत्यादि भी दूर होने लगते हैं।

श्री लिङ्गाष्टकं स्तोत्र पाठ विधि

श्री लिङ्गाष्टकम् स्तोत्र भगवान शिव को समर्पित एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है। यह स्तोत्र भक्तों के पापों का नाश करने वाला, शिवलोक की प्राप्ति कराने वाला और हर प्रकार की दरिद्रता दूर कर संवृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है।

परन्तु किसी भी स्तोत्र को पढ़ने की एक विधि होती है, अगर उस स्तोत्र को शास्त्रों में वर्णित विधि के अनुसार पढ़ा जाये तो उसका प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है। तो चलिए अब हम जानते हैं लिंगाष्टकम स्तोत्र पाठ करने की सही विधि क्या है।

लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् पाठ विधि

  • लिंगाष्टकम स्तोत्र पाठ करने की सर्वोत्तम समय प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त को माना गया है। यदि ये संभव नहीं हो तो आप इस स्तोत्र का पाठ संध्या प्रदोष काल में भी कर सकते हैं।
  • सर्वप्रथम सुबह स्नान आदि नित्य-कर्म से निवृत हो स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजन करना उत्तम माना गया है , अतः पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन बिछाएँ।
  • अब अपने समक्ष शिवलिंग, शिव-पार्वती की मूर्ति, या शिवजी के चित्र को स्थापित करें।
  • पूजन स्थल पर घी या तेल का दीपक प्रज्वलित करें। यदि घर में शिवलिंग हो तो उनका जल, दूध या पंचामृत से अभिषेक करें, अन्यथा फूल, अक्षत, बेलपत्र आदि शिवजी को समर्पित करें।
  • अब सबसे पहले भगवान गणेश का ध्यान करें, उसके बाद शिवजी के मूलमंत्र ॐ नमः शिवाय का 3 या 5 बार जाप करें।
  • तत्पश्चात भक्ति-भाव पूर्वक लिङ्गाष्टकम् स्तोत्र का पाठ करें। यदि आपको संस्कृत उच्चारण कठिन लगे, तो इस स्तोत्र का हिंदी में पाठ करें।
  • पाठ के पश्चात शिवजी की आरती गाएँ और उन्हें धूप तथा दीपक दिखाएँ। और अंत में भगवान शिव से अपने और परिवार के कल्याण की प्रार्थना करें।
  • शिवजी को समर्पित इस लिङ्गाष्टकम् स्तोत्र का पाठ नित्य प्रतिदिन करें, परन्तु यदि समय की कमी के कारण ये संभव नहीं हो तो, प्रत्येक सोमवार, प्रदोष और महाशिवरात्रि के दिन इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् FAQ

लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् क्या है?

लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् भगवान शिव को समर्पित एक आठ श्लोकों का पावन स्तोत्र है, जिसकी रचना साक्षात् शिव के अवतार माने जाने वाले संत आदि शंकराचार्य ने की थी।

 लिङ्गाष्टकं स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?

लिङ्गाष्टकम का पाठ प्रतिदिन प्रातःकाल या संध्या काल, स्नान के बाद शुद्ध स्थान पर बैठकर करना उत्तम माना जाता है। विशेषकर सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि के दिन इसका पाठ अत्यधिक फलदायक होता है।

क्या महिलाएं लिङ्गाष्टकम् का पाठ कर सकती हैं?

बिल्कुल! शिव सभी भक्तों पर समान रूप से कृपालु हैं। किसी भी लिंग, आयु, या जाति के व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।

क्या गुरु दीक्षा ज़रूरी है?

नहीं! लिङ्गाष्टकम् का पाठ सभी प्रकार के भक्त कर सकते हैं। इसके पाठ के लिए दीक्षा की कोई अनिवार्यता नहीं है।

क्या शिवलिंग के बिना इस स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं?

हाँ! अगर शिवलिंग उपलब्ध न हो, तो शिव के चित्र या मन में उनका ध्यान करके लिङ्गाष्टकम् का पाठ करें।

निष्कर्ष

Lingashtakam in Hindi भगवान शिव की कृपा पाने का एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है। इस ब्लॉग में हमने लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् को सरल हिंदी में प्रस्तुत किया है, ताकि हर भक्त इसे सहजता से पढ़ और समझ सके।

साथ ही, आप यहाँ से लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् PDF भी उपलभ्ध कराया है। आप “लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् PDF” डाउनलोड करके इसे अपने फ़ोन में save कर घर या शिव मंदिर में इसका पाठ कर सकते हैं।

यदि आप इस दिव्य स्तोत्र को प्रतिदिन श्रद्धा और नियम से पढ़ते हैं, तो आप निश्चित रूप से लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् के लाभ अनुभव करेंगे और शिव कृपा प्राप्त करेंगे।

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