शिव रुद्राष्टकम हिंदी में अर्थ सहित | Shiv Rudrashtakam

“शिव रुद्राष्टकम हिंदी में अर्थ सहित” जानने की इच्छा रखने वाले हर भक्त के लिए यह स्तोत्र एक आध्यात्मिक खजाना है। यह स्तोत्र भक्तों को भय, रोग, और संकटों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।

क्या आप जानते हैं कि इस स्तोत्र के नियमित पाठ से काला जादू, ग्रहदोष और मानसिक अशांति जैसी समस्याएँ दूर होती हैं? इस लेख में, हम आपको रुद्राष्टकम के 8 छंदों का सरल हिंदी अर्थ, पाठ की सही विधि, और उन चमत्कारिक लाभों के बारे में बताने जा रहे हैं।

शिव रुद्राष्टकम क्या है?

रुद्राष्टकम संस्कृत भाषा में रचित एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है, जिसमें 8 छंद हैं। इसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में शिव-स्तुति के रूप में प्रस्तुत किया है। यह स्तोत्र भगवान शिव के रौद्र और करुणामय स्वरूप को एक साथ दर्शाते हुए उनकी असीम महिमा को प्रकट करता है।

शिव रुद्राष्टकम पाठ | Shiv Rudrashtakam

हिंदू धर्म में भगवान शिव को ‘संहारक’ और ‘कल्याणकारी’ देवता माना जाता है। उनकी आराधना में अनेक स्तोत्र, मंत्र, और आरतियाँ प्रचलित हैं, जिनमें रुद्राष्टकम स्तोत्र का विशेष महत्व है।

तो आइये, सबसे पहले हम भक्तिपूर्वक Shiv Rudrashtakam का पाठ करना शुरू करते हैं।

शिव रुद्राष्टकम पाठ
शिव रुद्राष्टकम पाठ

शिव रुद्राष्टकम हिंदी में अर्थ सहित

किसी भी स्तोत्र को उसके अर्थ के साथ पढ़ने से उसकी शक्ति और भी ज्यादा बढ़ जाती है, अतः अब हम शिव रुद्राष्टकम हिंदी में अर्थ सहित बताने जा रहे हैं।

यहाँ शिव रुद्राष्टकम के 8 छंदों का हिंदी अर्थ सरल भाषा में बताया गया है।

शिव रुद्राष्टकम हिंदी में अर्थ सहित

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं ॥१॥

मैं “ईश” अर्थात सृष्टि के स्वामी और “ईशान” अर्थात सर्वव्यापी नियंता रूप में स्थित शिव को नमन करता हूँ। जो निर्वाण स्वरूप हैं, जो सर्वत्र व्याप्त हैं, जो अणु-अणु में विद्यमान हैं और वेदों के मूलस्वरूप ब्रह्म हैं।

जो निज स्वरूप में स्थित हैं, जो सत्त्व-रज-तम गुणों से परे निर्गुण हैं, जो निर्विकल्प तथा निरीह अर्थात इच्छाओं से मुक्त हैं, जो चिदाकाश अर्थात चेतना का विशाल आकाश स्वरूप हैं तथा अखंड चैतन्य में निवास करने वाले हैं, उन शिव को मैं प्रणाम करता हूँ।

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोऽहं ॥२॥

जो स्वयं ब्रह्म हैं तथा जो सभी रूपों, आकारों और सीमाओं से परे हैं, जिनका मूल स्वरूप ॐकार है, जो जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति से परे तुरीय अवस्था में विद्यमान हैं, जो वाणी (गिरा), ज्ञान (ग्यान), और इंद्रियों (गो) की पहुँच से परे हैं, जो कैलाशनाथ हैं।

जो भयंकर रूप में प्रलय के देवता हैं अर्थात संहारक हैं, जो समय के स्वामी (महाकाल) तथा स्वयं काल (समय) हैं, जो इसी रौद्र रूप में भी कृपालु हैं, जो त्रिगुणों (सत्त्व, रज और तम) के आधार होते हुए भी स्वयं गुणातीत हैं, जो संसार के बंधनों से मुक्ति देने वाले हैं, मैं उन शिव को नमन करता हूँ।

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा ॥३॥

जिनका शरीर हिमालय की भांति धवल और दिव्य है, जो सांसारिक बुद्धि की पहुँच से परे गंभीर स्वरुप में हैं, जिनका तेज कोटि कोटि कामदेवों के प्रभाव को भी निष्फल कर देने वाला है, जिनका शरीर शोभा तथा समृद्धि का स्रोत है।

जिनकी जटाएँ ज्ञान और तपस्या से प्रकाशमान हो रही हैं तथा जिनसे गंगा की लहरें प्रवाहित हो रही हैं, जिनके मस्तक पर अर्धचन्द्र शोभायमान है तथा जो गले में सर्प को धारण किये हुए हैं।

चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुंडमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥४॥

जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, जिनके नेत्र एवं भृकुटि सुन्दर और विशाल हैं, जिनका मुखमंडल प्रसन्नता से भरा हुआ है, जो नीलकंठ हैं तथा करुणा के सागर हैं। जो मृगराज के चर्म को वस्त्र रूप में धारण करते हैं तथा मुंडमाला पहने रहते हैं, ऐसे समस्त जगत के स्वामी, भवप्रिय, शिव की मैं वंदना करता हूँ।

प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ॥५॥

जो प्रबल और तेजस्वी हैं, जो समस्त गुणों से परिपूर्ण हैं, जो निर्भीक और सर्वज्ञ हैं, जो परम ईश्वर हैं, जो अविभाज्य और अनादि-अनंत हैं, जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजोमय हैं, जो आधिभौतिक, आधिदैविक तथा आध्यात्मिक तीन प्रकार के दुखों का उन्मूलन करने वाले हैं, वैसे त्रिशूल धारण करने वाले तथा भक्ति भाव से ही प्राप्त होने वाले भवानी पति शिव का मैं भजन करता हूं।

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥६॥

हे प्रभु, आप काल से परे, मंगलमय तथा प्रलय के समय समस्त सृष्टि को अपने में समेट लेने वाले हैं। आप “त्रिपुरासुर” के विनाशक तथा सज्जनों को आनंद देने वाले है। हे, चेतना और आनंद के स्वरूप, अज्ञान और मोह का नाश करने वाले तथा कामदेव को भस्म करने वाले, आप मुझ पर कृपा करें।

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं
भजंतीह लोके परे वा नराणां।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥७॥

मनुष्य जब तक उमापति शिव जी के चरणारविन्दों का भजन नहीं करते, उन्हें इहलोक तो क्या परलोक में कभी सुख तथा शान्ति की प्राप्ति नहीं होती और ना हीं उनका सन्ताप ही दूर होता है। हे समस्त प्राणियों में निवास करने वाले भगवान शिव, आप मुझ पर प्रसन्न हों।

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥८॥

हे शम्भू, मैं ना तो योग साधना, ना जप, और ना ही कोई पूजा-विधि जानता हूँ, हे ईश, मैं सदा-सर्वदा आपको नमस्कार करता हूं। जन्म-मृत्यु तथा बुढ़ापे के दुखों से पीड़ित मुझ दुखी की दुःख से रक्षा करो।

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥९॥

जो मनुष्य भगवान शंकर की प्रसन्नता के लिए ब्राह्मण देव के द्वारा रचित इस रुद्राष्टक का भक्तिपूर्वक पाठ करते हैं, उन पर भगवान् शिव प्रसन्न होते हैं।

भगवान् शिव से सम्बंधित अन्य स्तोत्र :

शिव रक्षा स्तोत्र
दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र
पशुपत्यष्टकम
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र

शिव रुद्राष्टकम PDF Download

यहाँ हम आपके लिए शिव रुद्राष्टकम हिंदी में अर्थ सहित, PDF प्रारूप में ले कर आये हैं। ताकि आप अपने मोबाइल या कम्पुयटर पे इसका कहीं भी और कभी भी पाठ कर सकें।

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शिव रुद्राष्टकम पाठ के लाभ

भगवान शिव की कृपा पाने के लिए शिव रुद्राष्टकम सबसे प्रभावशाली स्तोत्रों में से एक है। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित इस स्तोत्र के नियमित पाठ से न केवल आध्यात्मिक उन्नति होती है, बल्कि जीवन के हर संकट का समाधान भी मिलता है।

शिव पुराण, रामचरितमानस और अन्य ग्रंथों में इसके चमत्कारिक प्रभावों का वर्णन मिलता है। आइए, सरल भाषा में जानें कि शिव रुद्राष्टकम पाठ के लाभ क्या हैं, जो आपको हैरान कर देंगे!

मानसिक शांति और तनाव से मुक्ति

शिव रुद्राष्टकम के मंत्रों का कंपन मस्तिष्क की अल्फा तरंगों को सक्रिय करता है, जिससे चिंता और डिप्रेशन कम होता है और मन को अत्यंत शांति की अनुभूति होती है।

काला जादू और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा

शिव रुद्राष्टकम में शिव के रौद्र रूप की स्तुति की गयी है, जो बुरी शक्तियों को नष्ट करती है। इसके निरंतर पाठ से किसी भी प्रकार के तंत्र-मंत्र या नकारात्मक शक्ति का बाई आसानी से अंत हो जाता है।

रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ

भगवान् शिव को ‘वैद्यनाथ’ भी कहा गया है, अर्थात वे वैद्यों के भी वैद्य हैं। शिव रुद्राष्टकम का निरंतर पाठ पुराने से पुराने और असाध्य रोग को भी समाप्त कर देता है।

आर्थिक समृद्धि और नौकरी में सफलता

शिव को “भोलेभंडारी” भी कहा गया है। शिवजी के रुद्राष्टकम के पाठ से साधक के धन की कमी दूर होनी शुरू हो जाती है। नौकरी के इंटरव्यू से पहले इसका पाठ आत्मविश्वास बढ़ाने वाला होता है। व्यापार में नए अवसर पाने के लिए भी इसका भक्ति पूर्वक पाठ करें।

पारिवारिक कलह और वैवाहिक समस्याओं का समाधान

जो भी दंपति संयुक्त रूप से शिव रुद्राष्टकम का पाठ करते हैं, उनके बीच प्रेम सदा हीं बढ़ता चला जाता है। भक्ति पूर्वक शिव रुद्राष्टकम का किया गया पाठ घर परिवार के क्लेशों को मिटाकर आपसी प्रेम बढ़ता है।

मोक्ष की प्राप्ति और कर्मों का शुद्धिकरण

सनातन धर्म के अनुसार शिवजी की कृपा से आत्मा को अज्ञान के बंधन से मुक्ति मिलती है। शिव पुराण के रुद्र संहिता में ये वर्णन मिलता है कि रुद्राष्टकम का पाठ 10 जन्मों के पाप भी धो देता है।

ग्रहदोष और कुंडली के दोषों का निवारण

महामृत्युंजय मंत्र के साथ रुद्राष्टकम पढ़ने से शनि तथा राहु-केतु के समस्त अशुभ प्रभाव कम होने शुरू हो जाते हैं। साथ हीं साथ कुंडली में मंगल की खराब स्थिति अर्थात मंगल दोष भी समाप्त होने लगते हैं।

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ कैसे करें

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रुद्राष्टकम एक शक्तिशाली स्तोत्र है, लेकिन इसका पूरा लाभ पाने के लिए पाठ की सही विधि जानना ज़रूरी है। शिवमहापुराण पुराण तथा रामचरितमानस के अनुसार, यदि इस स्तोत्र का पाठ नियम और श्रद्धा से किया जाए, तो यह जीवन में आध्यात्मिक और भौतिक समृद्धि लाता है।

तो आइए, अब हम शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र के पाठ करने की वैदिक, सटीक और व्यावहारिक विधि को समझते हैं।

1. पाठ से पहले की तैयारी (Essential Preparations)

शास्त्रों में कहा गया है, “शुद्धौ च शुद्धिः सम्यग्दर्शनप्रदा” अर्थात पाठ करने के पहले मन, शरीर और वातावरण की शुद्धि ज़रूरी होती है।

शारीरिक शुद्धि के लिए सुबह शौच स्नानआदि से निवृत हो कर स्वक्ष वस्त्र धारण कर लें।

अब पाठ करने हेतु किसी स्वक्ष और शांत वातावरण का चुनाव करें।

मानसिक शुद्धि के लिए शिवजी की प्रतिमा के समक्ष घी का दीपक जलाकर 5 मिनट ध्यान करके मन को एकाग्र करें।

2. पाठ विधि (Step-by-Step Guide)

रुद्राष्टकम पाठ को 3 भागों में बाँटें: संकल्प, मुख्य पाठ, और समापन।

चरण 1: संकल्प लें

शिवजी के सामने बैठकर हाथ में जल लेकर कहें: हे भोलेनाथ! मैं आपकी कृपा से रुद्राष्टकम का पाठ करके (अपनी इच्छा बोलें, जैसे- मानसिक शांति, रोगमुक्ति, धन-प्राप्ति इत्यादि) पाना चाहता/चाहती हूँ। इस पाठ का पुण्य समस्त संसार के कल्याण में लगे।

चरण 2: मुख्य पाठ (Chanting)

अब शिवजी के रौद्र रूप का ध्यान करते हुए शिव रुद्राष्टकम के सभी 8 छंदों को स्पष्ट और धीमी आवाज में पढ़ें।

ध्यान रखें हर छंद के बाद ॐ नमः शिवाय का 1 बार जाप अवश्य करें।

यदि आप शिवलिंग के समक्ष बैठकर पाठ कर रहे हों तो पाठ के दौरान शिवलिंग पर जल, दूध या शहद भी चढ़ाते जाएँ।

चरण 3: समापन

पाठ पूरा होने पर शिव जी की आरती (ॐ जय शिव ओंकार…) जरूर करें।

प्रसाद के रूप में फल या मिठाई परिवार के सदियों के बीच बाँटें।

शिव रुद्राष्टकम पाठ का सर्वोत्तम समय

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का ब्रह्म मुहूर्त के समय पाठ करने से इसके 3 गुना फल की प्राप्ति होती है। प्रत्येक सोमवार, प्रदोष, मासिक शिवरात्रि या महाशिवरात्रि शिवजी को अतिप्रिय हैं, अतः इन विशेष दिनों में शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ करना विशेष लाभ को प्रदान करता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

नमामि शमीशान निर्वाण रूपं के रचयिता कौन हैं?

संत तुलसीदास जी ने शिवजी की स्तुति में 8 छंदों की शिव रुद्राष्टकम “नमामि शमीशान निर्वाण रूपं” की रचना की थी।

क्या महिलाएं शिव रुद्राष्टकम का पाठ कर सकती हैं?

हाँ, अवश्य कर सकती हैं। शिव रुद्राष्टकम का पाठ किसी भी लिंग व वर्ग के लोग कर सकते हैं।

रुद्राष्टकम कब पढ़ना है?

प्रत्येक सोमवार, प्रदोष, मासिक शिवरात्रि या महाशिवरात्रि शिवजी को अतिप्रिय हैं, अतः इन विशेष दिनों में शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ करना विशेष लाभ को प्रदान करता है।

कितने दिन में फल मिलता है?

11, 21, या 41 दिन का अनुष्ठान करें। लक्षण दिखने लगेंगे!

पाठ में गलती हो जाए तो क्या करें?

“ॐ क्षमस्व भोलेनाथ” बोलकर फिर से शुरू करें। शिव भक्ति में नियम से ज़्यादा भावना मायने रखती है।

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