हममे से कई लोग भगवान् शिव सभी 12 ज्योतिर्लिंगों का दर्शन नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में आप प्रतिदिन द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र अर्थ सहित का पाठ कर सकते हैं। शिव महापुराण के अनुसार द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र अर्थ सहित पाठ से व्यक्ति को उसी फल की प्राप्ति हो जाती है जिस फल को वो सभी ज्योतिर्लिंग के दर्शन से प्राप्त करता है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् की रचना आदि शंकराचार्य जी ने किया था जिसमे उन्होंने भगवान् शिव के सभी ज्योतिर्लिंगों की महिमा का वर्णन किया है।
भगवान् शिव भारत के 12 अलग अलग स्थानों पे अपने ज्योतिर्लिंग स्वरुप में विद्यमान हैं। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार, जो भी व्यक्ति इन 12 ज्योतिर्लिंग का दर्शन कर लेता है जो अपने समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र अर्थ सहित पाठ से मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है और व्यक्ति लंबी आयु को प्राप्त होता है। इस स्तोत्र के नियमित पाठ से भगवान् शिव की कृपा अति शीघ्र प्राप्त हो जाती है। तो चलिए पहले हम द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम संस्कृत में पढ़ेगें फिर द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र अर्थ सहित जानेगें।
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम् PDF
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द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम् आसानी से पढ़ें
किसी भी मंत्र या स्तोत्र का अगर सिद्ध करना होता है तो उसका सही उच्चारण के साथ पाठ जरुरी हो जाता है। हममे से कई लोग द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम् में प्रयोग किये गए संस्कृत के कठिन शब्दों का सही से उच्चारण नहीं कर पाते हैं।
तो उन लोगों के लिए कुबेरेश्वर धाम की टीम ने संस्कृत के शब्दों को लघु रूप में लिखा है जिसे पढ़ना आपके लिए आसान हो जायेगा।
तो चलिए अब हम द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम् को संस्कृत के आसान और लघु शब्दों के साथ।
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम्
सौराष्ट्र-देशे विशदेऽतिरम्ये
ज्योतिर्मयं चन्द्रकला-वतंसम् ।
भक्ति-प्रदानाय कृपा-वतीर्णं
तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ १ ॥
श्रीशैल-शृङ्गे विबुधाति-सङ्गे
तुला-द्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम् ।
तमर्जुनं मल्लिक-पूर्वमेकं
नमामि संसार-समुद्र-सेतुम् ॥ २ ॥
अवन्तिकायां विहिता-वतारं
मुक्ति-प्रदानाय च सज्जनानाम्
अकाल-मृत्योः परिरक्षणार्थं
वन्दे महाकाल-महासुरेशम् ॥ ३ ॥
कावेरिका-नर्मदयोः पवित्रे
समागमे सज्जन-तारणाय ।
सदैव मान्धातृ-पुरे वसन्त
मोङ्कार-मीशं शिवमेक-मीडे ॥ ४ ॥
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिका-निधाने
सदा वसन्तं गिरिजा-समेतम्
सुरासुरा-राधित-पादपद्मं
श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥ ५ ॥
याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये
विभूषि-ताङ्गं विविधैश्च भोगैः ।
सद्भक्ति-मुक्ति-प्रदमीश-मेकं
श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ ६ ॥
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं
सम्पूज्य-मानं सततं मुनीन्द्रैः ।
सुरा-सुरैर्यक्ष-महोर-गाद्यैः
केदार-मीशं शिवमेक-मीडे ॥ ७ ॥
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं
गोदावरी-तीर-पवित्र-देशे ।
यद्दर्शनात्पातक-माशु नाशं
प्रयाति तं त्र्यम्बक-मीश-मीडे ॥ ८ ॥
सुताम्रपर्णी-जल-राशियोगे
निबध्य सेतुं विशिखैर-संख्यैः ।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं
रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥ ९ ॥
यं डाकिनी-शाकिनिका-समाजे
निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।
सदैव भीमादि-पद-प्रसिद्धं
तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥ १० ॥
सानन्द-मानन्द-वने वसन्त
मानन्द-कन्दं हतपाप-वृन्दम् ।
वाराणसी-नाथम-नाथनाथं
श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ ११ ॥
इलापुरे रम्यविशाल-केऽस्मिन्
समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम् ।
वन्दे महोदारतर-स्वभावं
घृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये ॥ १२ ॥
ज्योतिर्मय-द्वादश-लिङ्गकानां
शिवात्मनां प्रोक्त-मिदं क्रमेण ।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽति-भक्त्या
फलं तदा-लोक्य निजं भजेच्च ॥ १३ ॥
इति श्रीद्वादशज्योतिर्लिङ्गस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र अर्थ सहित
जो भी मनुस्य श्री द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र अर्थ सहित का नियमित पाठ करता है उसे समस्त ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का फल मिलता है तथा उनकी मनोकामना पूर्ण होते देर नहीं लगती। तो चलिए अब हम श्री द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र अर्थ सहित का पाठ करते हैं।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र अर्थ सहित
जो अपनी भक्ति प्रदान करने हेतु अति रमणीक तथा निर्मल सौराष्ट्र प्रदेश में दयापूर्वक अवतरित हुए हैं, चन्द्रमा जिसके मस्तक का आभूषण है, उन ज्योतिर्लिङ्गस्वरूप भगवान् श्री सोमनाथ की शरण में मैं जाता हूँ ॥ 1 ॥
जो ऊँचाई के आदर्श पर्वतों से भी ऊँचे श्रीशैल के शिखर पर, जहाँ देवताओं का समागम होता रहता है, प्रसन्न मुद्रा में निवास करते हैं तथा जो संसार रूपी सागर को पार कराने के लिये सेतु के समान हैं, उन एकमात्र प्रभु श्री मल्लिकार्जुन को मैं नमस्कार करता हूँ ॥ 2 ॥
जिन्होंने सज्जन पुरुषों को मोक्ष देने हेतु अवन्तिपुरी में अवतरित हुए, उन महाकाल नाम से प्रसिद्द महादेव को मैं अकालमृत्यु से रक्षा के लिये नमस्कार करता हूँ ॥ 3 ॥
जो सत्पुरुषों को संसार रूपी सागर से पार करने हेतु कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम के समीप मान्धाता के पुर में सदा निवास करते हैं, उन अद्वितीय कल्याणकारी भगवान् ॐकारेश्वर का मैं स्तवन करता हूँ ॥ 4 ॥
जो पूर्व-उत्तर दिशा में चिताभूमि अर्थात वैद्यनाथ धाम के भीतर सदा ही माँ पार्वती के संग वास करते हैं , देवता और असुर भी जिनके चरण-कमलों की आराधना करते हैं, उन श्री वैद्यनाथ को मैं नमन करता हूँ ॥ 5 ॥
जो दक्षिण दिशा के अति रमणीक सदङ्ग नगर में विभिन्न भोगों से सम्पन्न होकर सुन्दर आभूषणों से सुशोभित हो रहे हैं, जो एकमात्र सद्भक्ति और मुक्ति दोनों को हीं देनेवाले हैं, उन प्रभु श्री नागनाथ की मैं शरण में जाता हूँ ॥ 6 ॥
जो महागिरि हिमालय के निकट केदारशृङ्ग के तट पर सदैव निवास करते हुए मुनी श्रेष्ठों द्वारा पूजे जाते हैं तथा देवता, असुर, यक्ष और महान् सर्प आदि भी जिनका पूजन करते हैं, उन एक कल्याण कारक भगवान् श्री केदारनाथ का मैं स्तवन करता हूँ ॥ 7 ॥
जो गोदावरी तट के पवन क्षेत्र में सह्यपर्वत के विमल शिखर पर निवास करते हैं, जिनके दर्शन मात्र से शीघ्र ही पातक नष्ट हो जाता है, उन श्री त्र्यम्बकेश्वर का मैं स्तवन करता हूँ ॥ 8 ॥
जो भगवान् श्री रामचन्द्रजी के द्वारा ताम्रपर्णी और सागर के संगम में असंख्य बाणों द्वारा सेतु बनाकर स्थापित किये गये, उन श्री रामेश्वर को मैं नियम से नित्य प्रणाम करता हूँ ॥ 9 ॥
जो डाकिनी और शाकिनीवृन्द में प्रेतों द्वारा सदैव सेवित होते हैं, उन भक्तहितकारी भगवान् श्री भीमशङ्कर को मैं नमन करता हूँ ॥ 10 ॥
जो स्वयं आनन्द रूप हैं और आनन्दपूर्वक आनन्दवन अर्थात काशीक्षेत्र में निवास करते हैं, जो पाप समूह को नष्ट करने वाले हैं, उन अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की शरण में मैं जाता हूँ ॥ 11 ॥
जो इलापुर के सुरम्य मन्दिर में विराजमान होकर समस्त जगत के पूजनीय हो रहे हैं, जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है, उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान् शिव की शरण में मैं जाता हूँ ॥ 12 ॥
यदि मनुष्य क्रमशः कहे गये इन द्वादश ज्योतिर्मय शिवलिङ्गों के स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करे तो वो इनके दर्शन से होने वाला फल को प्राप्त कर सकता है ॥ 13 ॥
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द्वादश ज्योतिर्लिंग लिस्ट
सनातन धर्म में भगवान् शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों को अति विशिष्ट स्थानों में एक माना जाता है। हर ज्योतिर्लिंग से कोई ना कोई एक विशेष कथा जुडी है। तो भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम को क्रमशः जानते हैं।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग है जो आज के गुजरात में स्थित है। पुराणों के अनुसार इस मन्दिर का निर्माण स्वयं चन्द्र देव ने किया था।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में श्रीशैल पर्वत पर स्थित है जिसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
12 ज्योतिर्लिंगों में तीसरा ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है जो मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। प्राचीन भारत में उज्जैन को अवन्तिका पुरी के नाम से जाना जाता था।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिंग है। जो की मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर स्थित है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
पांचवां ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड राज्य के हिमालय की चोटी पर स्थापित है जिसे श्री केदारनाथ या ‘केदारेश्वर’ भी कहा जाता है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग 12 प्रमुख ज्योतिर्लिगों में से छठे स्थान पर आता है जिसे मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में स्थित है जिसके दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को समस्त दुखों से छुटकारा मिल जाता है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग
काशी विश्वनाथ को सभी 12 ज्योर्तिर्लिंगों में से सप्तम ज्योतिर्लिंग कहा गया है। जो की उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा नदी के तट पर स्थित है।
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग
आठवें ज्योतिर्लिंग को त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है जो की महाराष्ट्र के त्र्यम्बक गांव में स्थित है। यह पवित्र गोदावरी नदी के तट पर स्थित है।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
बारह ज्योतिर्लिंगों में से नौवें ज्योतिर्लिंग बाबा वैद्यनाथ हैं जो झारखंड के देवघर में स्थित है। यहाँ स्थपित शिवलिंग को ‘कामना लिंग’ भी कहते हैं।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
दशम ज्योतिर्लिंग नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है जो गुजरात के द्वारका में स्थित है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग
तमिलनाडु के रामनाथपुरम में एकादशवाँ ज्योतिर्लिंग स्थापित है जिसे रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। सनातन धर्म में रामेश्वरम चार धामों में से भी एक है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
द्वादशवें ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के वेरुल नामक गांव में स्थित है जिसे घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में अंतिम माना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग को घृष्णेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के लाभ
- द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र अर्थ सहित पाठ से मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।
- इस स्तोत्र के नियमित पाठ से शिवजी का आशीर्वाद शीघ्र मिल जाता है।
- द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र अर्थ सहित का नियमित पाठ समस्त ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का फल प्रदान करने वाला होता है।
- इस स्तोत्र के पाठ मात्र से मनोकामना पूर्ण होते देर नहीं लगती।
- द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र अर्थ सहित पाठ व्यक्ति को आकाल मृत्यु से बचता है।
- द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम के पाठ से व्यक्ति के सभी पाप कर्म नष्ट होने लगते हैं।
- इस स्तोत्र पाठ आतंरिक शांति तथा संतुष्टि प्रदान करने वाला है।
निष्कर्ष
तो कैसी लगी द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र अर्थ सहित से जुड़ी ये रोचक जानकारी। कुबरेश्वर धाम की पूरी टीम आप सभी से उम्मीद करेगी कि इस स्तोत्र का जाप आप जरूर करेगें। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र अर्थ सहित का पाठ आप सभी के पाप कर्मों को नष्ट कर जीवन की सभी बाधाओं को दूर कर देगा।