शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र | अर्थ सहित पाठ, विधि, लाभ और PDF

यदि आप शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र अर्थ सहित पढ़ना चाहते हैं या शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र PDF को ढूंढ़ रहे हैं, तो यह लेख आपको सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करेगा। यहाँ आप इस स्तोत्र के श्लोक, उनके सरल अर्थ और इसके पाठ के लाभों को विस्तार से जान सकेंगे।

शिव को “करुणाब्धे” अर्थात करुणा का सागर कहा गया है और वे शीघ्र प्रसन्न हो अपने भक्तों की गलतियों को क्षमा कर देते हैं। शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र इसी भाव को समर्पित है, जिसमें शिव से निवेदन किया जाता है कि वे हमारे सब अपराधों को क्षमा करें।

इस स्तोत्र में कुल 14 श्लोक हैं, जिसके प्रत्येक श्लोक में विभिन्न अवस्थाओं में (बाल्य, यौवन, वृद्धावस्था) किए गए अपराधों का उल्लेख है।

यह स्तोत्र मन, वचन और कर्म के द्वारा होने वाले समस्त पापों को चाहे वो जानबूझकर किये गए हों अथवा अनजाने में, उन्हें तत्क्षण समाप्त कर देता है।

यह स्तोत्र अपराधबोध और मानसिक बोझ से मुक्ति देकर मन को निर्मलता प्रदान करता है। जब भी आपका मन आपके द्वारा हुए जाने-अनजाने पापों से भारी महसूस हो रहा हो तो तुरंत आदि शंकराचार्यकृत इस शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करें।

शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र

शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र आदिगुरु शंकराचार्य के द्वारा रचित एक संस्कृत स्तोत्र है, जिसके माध्यम से एक भक्त भगवान शिव से अपने जीवन में जाने-अनजाने हुए पापों और अपराधों के लिए क्षमा याचना करता है।

मनुष्य जाने-अनजाने अनेक प्रकार के पाप कर बैठता है। शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र इन सबसे मुक्ति और शांति पाने का एक अत्यंत सरल मार्ग है। पूर्ण समर्पण भाव के साथ के साथ किया गया शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ क्षण में हीं भक्त के समस्त पापों का नाश कर देता है।

शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र
शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र

शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र अर्थ सहित

यदि आप भगवा शिव को समर्पित इस स्तोत्र को संस्कृत में शुद्धता के साथ पाठ नहीं कर पा रहे हों तो “शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र अर्थ सहित” हिंदी में पढ़ना उतना हीं लाभकारी होगा जितना इसे देववाणी संस्कृत में पढ़ कर होता है।

और यदि आप इस स्तोत्र को संस्कृत में ही पढ़ने में सक्षम हों तो भी “शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र अर्थ सहित” पढ़ना जरुरी हो जाता है क्योंकि इसके प्रत्येक श्लोक का अर्थ जानने से इस स्तोत्र की शक्ति और अधिक बढ़ जाती है।

तो, यदि आप भी इस महान स्तोत्र को गहराई से समझना चाहते हैं, तो यहां प्रस्तुत शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र का सरल हिंदी अर्थ सहित पाठ निश्चित रूप से आपकी भक्ति को और दृढ़ करेगा।

|| श्रीशिवापराधक्षमापणस्तोत्रम् ||

आदौ कर्मप्रसङ्गात् कलयति कलुषं मातृकुक्षौ स्थितं मां
विण्मूत्रामेध्यमध्ये क्वथयति नितरां जाठरो जातवेदाः।
यद्यद्वै तत्र दुःखं व्यथयति नितरां शक्यते केन वक्तुं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ १ ॥

अर्थ: पहले मैं अपने प्रारब्ध कर्मों के कारण मां के गर्भ में गया, फिर मेरा शरीर अपवित्र मूत्र और मल के बीच जठराग्नि से निरंतर संतप्त रहा। वहां जो-जो दुःख निरन्तर व्यथित करते रहते हैं उन्हें कौन कह सकता है? हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! ab मेरे सभी अपराधों को क्षमा करो ! क्षमा करो ।

बाल्ये दुःखातिरेको मललुलितवपुः स्तन्यपाने पिपासा
नो शक्तश्चेन्द्रियेभ्यो भवगुणजनिता जन्तवो मां तुदन्ति।
नानारोगादिदुःखाद्रुदनपरवशः शङ्करं न स्मरामि
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ २ ॥

अर्थ: बाल्यावस्था में मैं अत्यंत दुखों से घिरा रहा, शरीर मल-मूत्र से सना रहता था और निरन्तर स्तनपान की लालसा रहती थी। इन्द्रियों में कोई कार्य करने की सामर्थ्य न थी और संसार के स्वभाव से उत्पन्न कीट-जंतु मुझे कष्ट देते थे। बीमारियों और अनेक प्रकार के दुखों से व्याकुल होकर मैं हमेशा रोता रहता था, पर तब भी मुझसे शंकर का स्मरण नहीं बना, इसलिये हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरा अपराध क्षमा करो ! क्षमा करो।

प्रौढोऽहं यौवनस्थो विषयविषधरैः पंचभिर्मर्मसन्धौ
दष्टो नष्टो विवेकः सुतधनयुवतिस्वादसौख्ये निषण्णः।
शैवीचिन्ताविहीनं मम हृदयमहो मानगर्वाधिरूढं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ ३ ॥

अर्थ: जब मैं युवा-अवस्था में आकर प्रौढ़ हुआ तब मैं इन्द्रियों रूपी विषय-विष के पाँच सर्पों से डंसा गया, इस कारण मेरा विवेक नष्ट हो गया और मैं पुत्र, धन और स्त्रियों के सुख में ही रम गया। उस समय भी मेरा हृदय आपकी शिवचिंतन से शून्य हो गया और अहंकार एवं अभिमान से भर गया। अतः हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरा अपराध क्षमा करो ! क्षमा करो ।

वार्द्धक्ये चेन्द्रियाणां विगतगतिमतिश्चाधिदैवादितापैः
पापै रोगैर्वियोगैस्त्वनवसितवपुः प्रौढिहीनं च दीनम्।
मिथ्यामोहाभिलाषैर्धमति मम मनो धूर्जटेानशून्यं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ ४ ॥

अर्थ: वृद्धावस्था में भी, जब इन्द्रियों की गति शिथिल हो गयी है, बुद्धि मन्द पड़ गयी है और आधिदैविकादि तापों, पापों, रोगों और वियोगों से शरीर जर्जरित हो गया है, मिथ्या मोह और अभिलाषाओं से दुर्बल और दीन होने के बावजूद भी मेरा मन अभी भी झूठे मोह और इच्छाओं में फंसा हुआ है, और वह आपसे शून्य बना हुआ है।अतः हे शिव! हे शिव! हे शंकर! हे महादेव! हे शम्भो ! अब मेरा अपराध क्षमा करो ! क्षमा करो।

नो शक्यं स्मार्तकर्म प्रतिपदगहनप्रत्यवायाकुलाख्यं
श्रौते वार्ता कथं मे द्विजकुलविहिते ब्रह्ममार्गे सुसारे।
नास्था धर्मे विचारः श्रवणमननयोः किं निदिध्यासितव्यं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ ५ ॥

अर्थ: पग पग पर अति गहन प्रायश्चित्तों से व्याप्त होने के कारण मुझसे तो स्मार्त कर्म भी नहीं हो सका, तो फिर जो द्विजकुलके लिये विहित हैं, उन ब्रह्मप्राप्ति के मार्ग स्वरूप श्रौतकर्मों की तो बात ही क्या है ? धर्म में मेरी कोई आस्था नहीं रही, न शास्त्र सुनने की इच्छा हुई, न उन पर विचार करने की और ना हीं ब्रह्म का ध्यान करने की। अतः हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरा अपराध क्षमा करो! क्षमा करो ।

स्नात्वा प्रत्यूषकाले स्नपनविधिविधौ नाहृतं गाङ्खतोयं
पूजार्थं वा कदाचिद्वहुतरगहनात्‌ खण्डबिल्वीदलानि।
नानीता पद्ममाला सरसि विकसिता गन्धपुष्पे त्वदर्थं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ ६ ॥

अर्थ: प्रातःकाल स्नान करके आपका अभिषेक करने के लिये मैं गंगाजल लेकर प्रस्तुत नहीं हुआ, न कभी आपकी पूजा के लिये वन से बिल्वपत्र ही लाया और न आपके लिये सरोवर में खिले हुए कमल के फूलों की माला लाया तथा ना हीं कभी गन्ध-पुष्प ही लाकर अर्पित किये । अतः हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरा अपराध क्षमा करो ! क्षमा करो ।

दुग्धेर्मध्वाज्ययुक्तैदंधिसितसहितेः स्नापितं नैव लिङं
नो लिप्तं चन्दनाद्यैः कनक विरचिते: पूजितं न प्रसूनैः।
धूपैः कर्पूरदीपैर्विविधरसयुतैर्नैव भक्ष्योपहारैः
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ ७ ॥

अर्थ: दूध, दही, शहद, घी और शक्कर से युक्त पंचामृत से शिवलिंग का स्नान नहीं कराया। ना तो मैंने चन्दन आदि से आपका अनुलेपन किया, ना धतूरे के फूल, धूप, दीप, कपूर तथा नाना रसों से युक्त नैवेद्यों द्वारा पूजन किया। अतः हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरे अपराधों को क्षमा करो ! प्रभु क्षमा करो ।

ध्यात्वा चित्ते शिवाख्यं प्रचरतरधनं नैव दत्तं द्विजेभ्यो
हव्यं ते लक्षसंख्यैर्हतवहवदने नार्पितं बीजमन्त्रैः।
नो तप्तं गाङ्गतीरे व्रतजपनियमै रुद्रजाप्यैर्न वेदैः
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ ८ ॥

अर्थ: मैंने चित्त में शिव नाम का स्मरण करते हुए ब्राह्मणों को प्रचुर धन नहीं दिया, न मैंने आपके एक लक्ष बीजमन्त्रों द्वारा अग्नि में आहुतियाँ दीं। और न ही मैंने गंगा तट पर बैठकर व्रत, जप, नियम या रुद्र जप किए और न ही वेदों के पाठ का तप किया। अतः हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरे अपराधों को क्षमा करो ! क्षमा करो।

स्थित्वा स्थाने सरोजे प्रणवमयमरुत्कुण्डले सूक्ष्ममार्गे
शान्ते स्वान्ते प्रलीने प्रकटितविभवे ज्योतिरूपे पराख्ये।
लिङ्गज्ञे ब्रह्मवाक्ये सकलतनुगतं शङ्करं न स्मरामि
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ ९ ॥

अर्थ: सहस्रार चक्र के कमल में विराजमान, जहाँ ‘ॐ’ रूपी प्राणवायु (प्रणव) सूक्ष्म मार्गों के माध्यम से प्रवेश करती है, और जहाँ जहाँ अंतःकरण शांत होकर पूर्ण रूप से विलीन हो जाता है, जो प्रकाशमयी और परब्रह्म का स्वरूप है। जो लिंग रूप हैं, ब्रह्मवाक्य (वेदवाणी) के ज्ञाता, समस्त प्राणियों के भीतर स्थित हैं उस शंकर को मैंने कभी स्मरण नहीं किया। अतः हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरे अपराधों को क्षमा करो ! क्षमा करो ।

नग्नो निःसङ्गशुद्धस्त्रिगुणविरहितो ध्वस्तमोहान्धकारो
नासाग्रे न्यस्तदृष्टिर्विदितभवगुणो नैव दृष्टः कदाचित्।
उन्मन्यावस्थया त्वां विगत कलिमलं शंकरं न स्मरामि
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ १० ॥

अर्थ: मैं संसार के बंधनों से मुक्त, निष्काम और शुद्ध होकर भी, सत्व, रज, तम गुणों से परे तथा मोह के अंधकार को नष्ट कर के बाद भी, नासिकाग्र पर ध्यान लगाकर संसार के रहस्य जान लेने के उपरांत समाधि की उच्चतम अवस्था में भी तुम्हें नहीं देखा पाया। हे शंकर! मैं कलियुग के पापों से मुक्त होकर भी तुम्हारा स्मरण नहीं कर पाया। अतः हे शिव ! हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ! अब मेरे अपराधों को क्षमा करो ! क्षमा करो ।

चन्द्रोद्भासितशेखरे स्मरहरे गङ्गाधरे शंकरे
सर्भूषितकण्ठकर्णविवरे नेत्रोत्थवैश्वानरे।
दन्तित्वक्कृतसुन्दराम्बरधरे त्रैलोक्यसारे हरे
मोक्षार्थं कुरु चित्तवृत्तिमखिलामन्यैस्तु किं कर्मभिः ॥ ११ ॥

अर्थ: चन्द्रमा से जिनका ललाट-प्रदेश प्रकाशित हो रहा है, जो काम देव का नाश करने वाले हैं, जो गंगा को धारण करने वले हैं, कल्याणस्वरूप हैं, जिनके कण्ठ और कर्ण सर्पों से आभूषित हैं, जिनके नेत्रों से अग्नि प्रकट हो रहा है, जिसने गजचर्म को वस्त्र की तरह धारण कर रखा है, तथा जो तीनों लोकों के सार हैं, मेरी समस्त चेतना को मोक्ष के लिए अपने चरणों में समर्पित कर दो। अन्य कर्मों से अब क्या प्रयोजन?

किं वानेन धनेन वाजिकरिभिः प्राप्तेन राज्येन किं
किं वा पुत्रकलत्रमित्रपशुभिर्देहेन गेहेन किम्।
ज्ञात्वैतत्क्षणभङ्गुरं सपदि रे त्याज्यं मनो दूरतः
स्वात्मार्थं गुरुवाक्यतो भज भज श्रीपार्वतीवल्लभम् ॥ १२ ॥

अर्थ: इस धन, घोड़े, हाथी और राज्यादि की प्राप्ति से क्या मिलेगा?पुत्र, पत्नी, मित्र और पशुओं से क्या फायदा? शरीर और घर भी कब तक साथ देंगे? इनको क्षणभंगुर जानकर रे मन ! दूर ही से त्याग दे और आत्मानुभव के लिये गुरुवचनानुसार पार्वतीवल्लभ श्रीशंकर का भजन कर ।

आयुर्नश्यति पश्यतां प्रतिदिनं याति क्षयं यौवनं
प्रत्यायान्ति गताः पुनर्न दिवसाः कालो जगद्भक्षकः।
लक्ष्मीस्तोयतरङ्गभङ्गचपला विद्युच्चलं जीवितं
तस्मान्मां शरणागतं शरणद त्वं रक्ष रक्षाधुना ॥ १३ ॥

अर्थ: हमारे आखों के सामने नित्य प्रतिदिन आयु नष्ट हो रही है, यौवन क्षीण हो रहा है; बीते हुए दिन फिर लौटकर नहीं आते; काल सम्पूर्ण जगत् को निगला जा रहा है। धन-लक्ष्मी जल की तरंगमाला के समान अस्थिर है, जीवन बिजली की चमक जैसा क्षणिक है, अतः मुझ शरणागत की हे शरणागतवत्सल शंकर ! अब रक्षा करो ! रक्षा करो ।

करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्‌ क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥ १४ ॥

अर्थ: मेरे हाथों और पैरों से किए गए, वाणी, शरीर या कर्म से उत्पन्न हुए, कर्णों और नेत्रों द्वारा किए गए, या मन से किए गए सभी अपराध, चाहे वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको हे करुणा- सागर महादेव शम्भो ! क्षमा कीजिये । आपकी जय हो, जय हो ।

॥ इति श्रीशिवापराधक्षमापनस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र अर्थ सहित

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शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र PDF

भगवान शिव को समर्पित इस पावन स्तोत्र को पढ़ने की इच्छा रखने वाले कई भक्त “शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र PDF” को ढूंढ़ते हैं ताकि वे इसे कहीं भी, कभी भी पढ़ सकें।

यदि आप “शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र” पढ़ना चाहते हैं, तो PDF फॉर्मेट में इसे प्राप्त करना सबसे सरल और सुविधाजनक तरीका है। नीचे दिए गए लिंक से आप इस स्तोत्र को डाउनलोड कर सकते हैं और नियमित पाठ में शामिल कर सकते हैं।

Shiv Aparadha Kshamapana Stotra पाठ विधि 

भगवान शिव से क्षमा याचना करने के लिए शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ एक अत्यंत प्रभावशाली साधन माना जाता है। सही विधि और भावना के साथ इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त के सभी पाप और दोष क्षमा हो जाते हैं। इस भाग में हम बताएंगे कि Shiv Apradh Kshamapan Stotra को कब, कैसे और किन नियमों के अनुसार पढ़ना चाहिए ताकि आप इसका सम्पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकें।

“जो भी इसे श्रद्धा से पढ़ेगा, मैं उसके जन्म-जन्मांतर के पापों को धो दूँगा”

शिव पुराण (रुद्र संहिता 22.45)

शिव अपराध क्षमापना स्तोत्र पाठ विधि

सुबह स्नानादि से निवृत होकर कोई भी स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

पूजास्थल को गंगाजल या फिर सामान्य जल से शुद्ध करें।

भूमि पर कुशा या लाल कपड़ा बिछाकर पूर्व/उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएँ।

शिवलिंग, शिवजी का चित्र या पार्थिव लिंग बनाकर सामने रखें। यदि कुछ भी उपलभ्ध नहीं हो तो शिवजी का मानसिक ध्यान करें।

एक घी या तेल का दीया जलाएं और शिवजी को बेलपत्र, जल, सफेद पुष्प आदि अर्पित करें।

अब सर्वप्रथम इस प्रकार संकल्प करें, “हे भोलेनाथ! मैं जाने-अनजाने किए अपने सभी पापों के प्रायश्चित के लिए यह स्तोत्र पढ़ रहा हूँ। कृपया मेरी प्रार्थना स्वीकार करें।”

तत्पश्चात शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र PDF या पुस्तक के माध्यम से इस स्तोत्र का पाठ करें।

पाठ करते समय उच्चारण स्पष्ट रखें और यदि इस स्तोत्र को संस्कृत में नहीं पढ़ पा रहे हों तो शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र हिंदी में अर्थ सहित पढ़ें।

अंत में भगवान शिव से प्रार्थना करें कि वे आपके सभी ज्ञात-अज्ञात अपराध क्षमा करें।

शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र के लाभ

शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र” एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है जिसके माध्यम से भक्त अपने उन सारे दोषों, त्रुटियों और उपेक्षाओं के लिए क्षमा मांगता है, जिसे उसने अज्ञानतावश या अभिमानवश किया है। इसके नियमित पाठ से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि उसके जीवन के समस्त दोष भी मिट जाते हैं।

तो चलिए अब हम जानते हैं शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र के पाठ से मिलने वाले कुछ महत्वपूर्ण लाभ।

आत्मशुद्धि और पश्चाताप की अभिव्यक्ति

पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ इस स्तोत्र का किया गया पाठ भक्त के भीतर आत्मग्लानि और पश्चाताप को दूर करता है और उसके अंदर शुद्ध भावना को जन्म देता है।

समस्त पापों की मिलती है क्षमा

यह स्तोत्र हमारे जाने-अनजाने में हुए पापों और अपराधों के लिए भगवान शिव से क्षमा माँगने का सबसे श्रेष्ठ उपाय है। नित्य प्रतिदिन किया गया शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ अपराधबोध से मुक्ति देकर मन को हल्का करता है।

अहंकार और अज्ञान का नाश

जो व्यक्ति अपने जीवन में विवेक और ज्ञान की कमी के कारण अहंकारवश भटकते रहते हैं, यह स्तोत्र उन्हें विनम्रता, पश्चाताप और सत्य की ओर प्रेरित करता है।

मन को मिलती है शांति

भगवान शिव को समर्पित इस स्तोत्र के पाठ से मानसिक तनाव और अशांति दूर होती है और मन को गहन शांति और स्थिरता मिलती है।

आदि शंकराचार्य का कवच

शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र, जिसे आदिगुरु शंकराचार्य ने रचा है, उनकी तपस्या की ऊर्जा इस मंत्र में समाई है, इसलिए इसके पाठ से भक्त को
तत्काल प्रभाव महसूस होता है।

शिव कृपा की प्राप्ति

भगवान शिव को अपराध क्षमा करने वाले तथा करुणा का सागर कहा गया है। जब कोई सच्चे मन से क्षमा माँगता है, तो शिवजी तुरंत प्रसन्न होकर कृपा करते हैं और जीवन के संकट दूर करते हैं।

निष्कर्ष

अगर आप “शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र PDF” ढूंढ रहे हैं, या इसका “अर्थ सहित” पाठ समझना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए बहुत मददगार है। इसे पढ़ने से मन को शांति मिलती है, पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति आती है।

तो आइए, इस “शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र अर्थ सहित” का पाठ करें, और शिवजी की कृपा से अपने जीवन की परेशानियों को दूर करें।

शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र FAQ


शिव क्षमा स्तोत्र क्या है?

यह भगवान् शिव को समर्पित एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है जिसमें भक्त भगवान शिव से अपने द्वारा हुए जाने-अनजाने अपराधों के लिए क्षमा याचना करता है।

शिव अपराधा क्षमापना स्तोत्रम किसने लिखा था?

शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र आदिगुरु शंकराचार्य के द्वारा रचित एक संस्कृत स्तोत्र है, जिसमें कुल 14 श्लोक हैं और प्रत्येक श्लोक में विभिन्न अवस्थाओं में (बाल्य, यौवन, वृद्धावस्था) किए गए अपराधों का उल्लेख किया गया है।

क्या शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र को संस्कृत में पढ़ना ज़रूरी है?

नहीं, इस स्तोत्र को आप उसके हिंदी अर्थ के माध्यम से भी पढ़ सकते हैं। शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र का अर्थ सहित पाठ करना भी उतना हीं लाभकारी है जितना इसे संस्कृत में पढ़ने से होता है।

शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र कब पढ़ना चाहिए?

इस स्तोत्र को प्रातः काल अथवा शाम प्रदोष काल में स्नान करके शिवलिंग के सामने शांत मन से पढ़ना चाहिए। प्रत्येक दिन इस स्तोत्र का पाठ श्रेष्ठकर है अथवा सोमवार, प्रदोष व्रत, शिवरात्रि आदि विशेष दिन इसके लिए उत्तम माने जाते हैं।

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