श्री रामचंद्र अष्टकम भगवान श्री रामचंद्रजी को समर्पित एक संस्कृत स्तोत्र है, अमरदास द्वारा रचित आठ श्लोकों के इस स्तोत्रश्री राम की स्तुति और गुणगान की गयी है। आठ श्लोकों के संग्रह के कारण इसे “अष्टकम” कहा गया है।
तो सबसे पहले हम इस स्तोत्र का पाठ संस्कृत में करेगें। तत्पश्चात इसे हम हिंदी अर्थ के साथ पढ़ेगें।
श्री रामचंद्र अष्टकम संस्कृत में
श्री रामचंद्र अष्टकम की रचना अमरदास ने की थी। इस आठ स्तोत्रों के माध्यम से अमरदास ने भगवान् श्री रामचन्द्रजी के अलग अलग गुणों की तथा उनके साहस और दिव्य चरित्र का वर्णन किया है।
इस अष्टकम का पाठ करने से भक्तों को भगवान राम की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन से निराशा, कुंठा और भय सदा सदा के लिए तिरोहित हो जाते हैं।
Sri Ramchandra Ashtakam Lyrics in Sanskrit
श्री रामचंद्र अष्टकम हिंदी अर्थ सहित
श्री रामचंद्र अष्टकम के श्लोकों में प्रयोग संस्कृत के शब्द अगर आपको थोड़े कठिन लग रहे हों तो इसका पाठ आप हिंदी में भी कर सकते हैं। अब हम यहाँ श्री रामचंद्र अष्टकम के हिंदी अर्थ को प्रस्तुत करने जा रहे हैं।
Sri Ramchandra Ashtakam Lyrics in Hindi
चिदाकारो धाता परमसुखद: पावनतनु-
र्मुनीन्द्रैर्योगीन्द्रैर्यतिपतिसुरेन्द्रैर्हनुमता ।
सदा सेव्य: पूर्णो जनकतनयांग सुरगुरु
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ।।1।।
अर्थ : जो ज्ञानस्वरूप हैं, जगत को धारण और पोषण करने वाले हैं, परमसुख के दाता हैं, जिनका शरीर सबको पवित्र करने वाला है, मुनीन्द्र, योगीन्द्र, यतीश्वर, देवेश्वर और श्री हनुमान् जिनकी सदा सेवा करते हैं, जो पूर्ण हैं, सीताजी जिनकी अर्धांगिनी हैं, जो देवताओ के भी गुरु हैं; वे लक्ष्मीपति भगवान् श्री रामचंद्र जी मेरे चित्त में सदा रमण करें ॥ 1॥
मुकुन्दो गोविन्दो जनकतनयालालितपद:
पदं प्राप्ता यस्याधमकुलभवा चापि शबरी ।
गिरातीतोऽगम्यो विमलधिषणैर्वेदवचसा ।
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ।।2।।
जो मुकुन्द, गोविन्द नाम से कहे जाते हैं, सीताजी ने जिनके चरणों का लालन किया है, जिनका भजन करने से नीच कुल में उत्पन्न शबरी भी जिनके परमधाम को प्राप्त हो गयी, जो विमल बुद्धि वालों की भी वाणी से परे हैं ओर वेदो की वचन से भी अगम्य हैं; वे लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामचन्द्रजी मेरे चित्त में सदा रमन करें ॥2॥
धराधीशोऽधीश: सुरनरवराणां रघुपति:
किरीटी केयूरी कनककपिश: शोभितवपु: ।
समासीन: पीठे रविशतनिभे शांतमनसो ।
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ।।3।।
जो पृथ्वी के अधीश्वर हैं, श्रेष्ठ देवताओं ओर मनुप्यो के भी स्वामी हैं, रघुकुल के नाथ हैं, जिन्होंने सिर पर मुकुट ओर बाहुओ में केयूर धारण किये हैं, जो सोने के समान पीतवर्णं के वस्र पहने हए हैं, जिनका शरीर शोभित हो रहा है और जो सैकड़ों सूर्य के समान देदीप्यमान सिंहासन पर बैठे हुए हैं; वे लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामचनद्र जी शान्त हृदय वाले मेरे चित्त में सदा रमण करें ॥3॥
वरेण्य: शारण्य: कपिपतिसखश्चान्तविधरो
ललाटे काश्मीरो रुचिरगतिभंग शशिमुख: ।
नराकारो रामो यतिपतिनुत: संसृतिहरो ।
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ।।4।।
जो श्रेष्ठ हैं, शरण देने वाले हैं, सुग्रीव के मित्र है, अन्त से रहित है, जिनके ललाट में केसर का तिलक है, जिनकी चाल अतिसुन्दर है, मुखारविन्द चनद्रमा के समान आनन्ददायी है, जो मनुष्यरूप में प्रतीत होने पर भी राम (योगियोके ध्येय परब्रह्म) हैं, * यतीश्वरगण जिनकी स्तुति करते है, जो जन्म-मृत्युरूप संसार के हरने वाले हैं; वे लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामचन्द्र मेरे चित्त में सदा रमण करें ॥ 4 ॥
विरूपाक्ष: काश्यामुपदिशति यन्नाम शिवदं
सहस्त्रं यन्नाम्नां पठति गिरिजा प्रत्युषसि वै ।
स्वलोके गायन्तीश्वरविधिमुखा यस्य चरितं ।
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ।।5।।
काशी में भगवान् शंकर जिनके कल्याणप्रद नाम का उपदेश करते हैं, श्रीपार्वतीजी प्रतिदिन प्रभात-काल में जिनके सहस्र -नाम का पाठ करती हैं, शिव, ब्रह्मा आदि (देवगण) अपने-अपने लोकों में जिनके दिव्य चरित्र का गान करते हैं, वे लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामचन्द्र मेरे चित्त में सदा रमण करें ॥ 5॥
परो धीरोऽधीरोऽसुरकुलभवश्चासुरहर:
परात्मा सर्वज्ञो नरसुरगणैर्गीतसुयशा: ।
अहल्याशापघ्न: शरकरऋजु: कौशिकसखो ।
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ।।6।।
जो अत्यन्त धीर होकर भी अधीर (अविद्याको दूर करने वाले) हैं, सूर्य के कुल में उत्पन्न होकर असुरों का संहार करने वाले हैं, जो परमात्मा हैं, सर्वज्ञ हैं, मनुष्य तथा देवतागण जिनके सुयश का गान करते हैं, जिन्होने अहल्या के शाप का नाशा किया, जिनके हाथ में बाण शोभित हैं, जो सरल स्वभाव वाले ओर विश्वामित्र के मित्र हैं, वे लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामचन्द्र मेरे चित्त में सदा रमण करें ॥ 6॥
ऋषिकेश: शौरिर्धरणिधरशायी मधुरिपु-
रुपेन्द्रो वैकुण्ठो गजरिपुहरस्तुष्टमनसा ।
बलिध्वंसी वीरो दशरथसुतो नीतिनिपुणो ।
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ।।7।।
जो हृषिकेश, शौरी, शेषशायी, मधुसूदन, उपेन्द्र, वैकुण्ठ आदि नाम से कहे जाते हैं, जिन्होंने प्रसन्न होकर गजराज के शत्रु का नाश किया, जो बलि को पदच्युत करने वाले हैं, जो वीर हैं, वे नीतिनिपुण, लक्ष्मीपति, दशरथनन्दन, भगवान् श्री रामचंद्र मेरे चित्त में सदा रमण करें ॥ 7॥
कवि: सौमित्रीडय: कपटमृगघाती वनचरो
रणश्लाघी दान्तो धरणिभरहर्ता सुरनुत: ।
अमानी मानज्ञो निखिलजनपूज्यो ह्रदिशयो ।
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ।।8।।
जो त्रिकालदर्शी हैं, लक्ष्मण जी के पूज्य हैं, जिन्होंने वन में भ्रमण करते हुए मायामृग मारीच का वध किया है, जो युद्धप्रिय हैं, दान्त (मन ओर इन्द्रियों का दमन करने वाले) हैं, पृथ्वी के भार को हरने वाले तथा देवताओं से स्तुत हैं, जो स्वयं मानरहित होकर दूसरो के सम्मान के ज्ञाता (कृतज्ञ) हैं, सब लोगो के पूज्य हैं, सबके हदय में निवास करने वाले हैं, वे लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामचन्द्र मेरे चित्त में सदा रमण करें ॥ 8॥
इदं रामस्तोत्रं वरममरदासेन रचित-
मुष:काले भक्त्या यदि पठति यो भावसहितम् ।
मनुष्य: स क्षिप्रं जनिमृतिभयं तापजनकं
परित्यज्य श्रेष्ठं रघुपतिपदं याति शिवदम् ।।9।।
जो मनुष्य प्रातःकाल भक्ति और श्रद्धा के साथ अमरदास कवि के बनाये हुए इस सुन्दर रामस्तोत्र का पाठ करेगा, वह बहुत शीघ्र ही तापजनक जन्म-मृत्यु के भय का परित्याग कर श्रेष्ठ तथा कल्याणप्रद रघुनाथ के पद को प्राप्त करेगा ॥ 9॥
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श्री रामचंद्र अष्टकम से सम्बंधित कुछ अन्य प्रश्न । FAQ
श्री रामचंद्र अष्टकम क्या है?
श्री रामचंद्र अष्टकम भगवान् श्री राम को समर्पित आठ श्लोकों का एक संस्कृत स्तोत्र है। जिसके माध्यम से भगवान् श्री राम के दिव्या गुणों और चरित्र का वर्णन किया गया है।
श्री रामचंद्र अष्टकम के रचयिता कौन है?
सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार इस स्तोत्र के रचयता अमरदास कहे जाते हैं।
श्री रामचंद्र अष्टकम का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?
श्री रामचंद्र अष्टकम का पाठ आप प्रातः काल अथवा संध्या काल में स्नानादि से निवृत होकर कर सकते हैं। आप इस स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन कर सकते हैं। राम नवमी, दशहरा, दीपावली जैसे विशेष दिनों को इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत फलदायी होती है।
श्री रामचंद्र अष्टकम का पाठ करने के क्या लाभ हैं?
श्री रामचद्र अष्टकम के नियमित पाठ से साधक को श्री राम का आशीर्वाद प्राप्त होता है। श्रद्धा और पूर्ण विश्वास से इस स्तोत्र का किया गया पाठ साधक को जीवन के कठिन से कठिन परिस्तिथि में भी साहस और धैर्य प्रदान करता है और उसे सभी प्रकार के दुखों से मुक्त करता है।
क्या श्री रामचंद्र अष्टकम का पाठ किसी विशेष दिशा में बैठकर करना चाहिए?
अगर आप पूर्व दिशा की तरफ बैठ कर इस स्तोत्र का पाठ करते हैं तो ये उत्तम माना जाता है।
क्या श्री रामचंद्र अष्टकम का पाठ केवल संस्कृत में ही करना चाहिए?
नहीं, ऐसा बिलकुल भी जरुरी नहीं है। अगर आप श्री रामचंद्र अष्टकम का पाठ संस्कृत में कर पाते हैं तो ये सर्वोत्तम है, परन्तु ऐसा करने में यदि आप असमर्थ हैं तो ईशा पाठ आप हिंदी में भी कर सकते हैं।
निष्कर्ष
आशा करता हूँ कि आप श्री रामचंद्र अष्टकम का पाठ कर अपने जीवन को भी ऊर्जावान जरूर बनायेगें। तो कैसी लगी इस स्तोत्र से जुडी ये जानकारी। अगर अच्छी लगी हो तो अपने प्रियजनों के साथ इस पोस्ट को शेयर करना मत भूलें। आपकी एक लाइक और एक शेयर भी हिन्दू-धर्म को समर्पित Kubereshwar Dham Sehore के टीम को बल प्रदान करेगा, और समय समय पर हम आपके लिए ऐसे ही अद्भुत जानकारियां लाते रहेंगें।