जानिए पशुपति व्रत के नियम, पंडित प्रदीप मिश्रा से | Pashupati Vrat

आज के इस पोस्ट में हम जानेगें पशुपति व्रत के नियम प्रदीप मिश्रा जी के माध्यम से।

भगवान् शिव का एक नाम पशुपतिनाथ भी है। पशुपति का शाब्दिक अर्थ होता है इस ब्रह्माण्ड में पाए जाने वाले समस्त जीवों का मालिक, अर्थात जीवन का देवता।

नेपाल की राजधानी काठमांडू में पशुपतिनाथ चार मुख वाले लिंग के रूप में आदिकाल से स्थापित हैं। भगवान् शिव का ये स्वरुप प्राणियों के किसी भी मनोकामना को पूर्ण करने की क्षमता रखता है।

शिव महापुराण में वर्णित पशुपतिनाथ का व्रत देवाधिदेव महादेव के इसी स्वरुप को समर्पित है। अगर कोई मनुष्य सच्ची श्रद्धा और पूर्ण विधि-विधान से जिस भी मनोकामना की पूर्ति के लिए इस व्रत को धारण करता है वो अवश्य हीं पूर्ण होती है।

पशुपति व्रत को करना ज्यादा कठिन नहीं है और ना हीं इसे रखने के लिए किसी विशेष मुहूर्त की आवश्यकता होती है। बस शर्त केवल इतना हीं है की आप पशुपति व्रत के नियम का पालन शास्त्रों के अनुरूप हीं करें।

आज इस पोस्ट के माध्यम से हम पशुपति व्रत के नियम तथा पशुपति व्रत की विधि तथा पशुपति व्रत की उद्यापन विधि प्रदीप मिश्रा जी के माध्यम से जानेगें जो की अत्यंत सरल है और शिव महापुराण गीताप्रेस गोरखपुर में वर्णित है।

पशुपति व्रत कब करना चाहिए?

पशुपति व्रत को शुरू करने के लिए किसी विशेष महीने का या किसी शुभ मुहूर्त का चयन करना आवश्यक नहीं है। ये व्रत केवल सोमवार के दिन हीं रखा जाता है। अतः आप इस व्रत को वर्ष के किसी भी महीने के सोमवार से शुरू कर सकते हैं।

पशुपति व्रत को कितने सोमवार करना चाहिए?

शास्त्रों में पशुपति व्रत को लगातार 5 सोमवार रखने का विधान बताया गया है। पांचवे सोमवार को इस व्रत का उद्ध्यापन किया जाता है। एक पशुपति व्रत को पूर्ण करने के बाद अगर आप दुबारा से इस व्रत को धारण करना चाहते हैं तो एक-दो सोमवार छोड़कर व्रत को पुनः शुरू कर सकते हैं।

पशुपति व्रत की पूजा की सामग्री

पशुपति व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाने वाला व्रत है। अतः इस व्रत में वो समाग्री हीं प्रयोग में लाते हैं जिसे हम शिवलिंग पे अर्पित कर सकें। हमारे शास्त्रों में कई ऐसी सामग्रियों का वर्णन किया गया है जो भगवान शिव को अति प्रिय है।

बस इतना ध्यान रखें की जिस भी सामग्री से आपने सुबह का पूजन किया है, थाल में बचे हुए उन्ही सामग्री से हीं शाम के पूजन करने का विधान है।

हम यहाँ आपको पशुपति व्रत की पूजा की सामग्री की सूचि देने जा रहे हैं। इनमे से जो भी सामग्री यथाशक्ति आपके पास आसानी से उपलभ्ध हो जाये, आप उसी का प्रयोग करें। ये कतई जरुरी नहीं है की नीचे दिए गए प्रत्येक सामग्री आपके पास हो।

पशुपति व्रत के नियम

पशुपति व्रत की सामग्री

पीला, लाल अथवा सफेद चन्दन, पुष्प, रोली, कलावा, गुलाल, अबीर, भांग, धतूरा, भस्म, अक्षत, बेल-पत्र, शमी-पत्र, धुप, दूध, दही, शहद और शक्कर से निर्मित पंचामृत, एक लोटा जल।

शाम की पूजन के लिए 6 दीपक और भगवान शिव को भोग लगाने के लिए घर में बना कुछ मीठा प्रसाद सभी के लिए आवश्यक है।

पशुपति व्रत के नियम

गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित शिव महापुराण में पशुपति व्रत के नियम बताये गए हैं जिसे जान लेना आवश्यक हो जाता है। इन नियमो की अनदेखी करके आप इसके पूर्ण फल को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। तो चलिए सबसे पहले ये जानते हैं की पशुपति व्रत के नियम क्या हैं।

पशुपतिनाथ का व्रत लगातार 5 सोमवार तक करने का विधान बताया गया है।

पशुपति व्रत की पूजन शिव-मंदिर में हीं करना अनिवार्य है।

तीसरी सबसे जरुरी बात ये है की, पशुपति व्रत के पहले सोमवार की पूजा आपने जिस भी शिव मंदिर में की है, उसी शिव मंदिर में पांचो सोमवार की पूजा अनिवार्य है। अर्थात अपने पुरे पशुपति व्रत की पूजा एक हीं शिव मंदिर में करें।

पशुपति व्रत के दौरान अगर किसी कारणवश आपको कहीं दूसरी जगह या शहर जाना पड़ जाये और उसी शिव मंदिर में जाना असंभव हो तो इस व्रत को अगली सोमवार पे टाल दें। परन्तु व्रत का पूजन एक हीं शिव मंदिर में करें।

पशुपति व्रत में सुबह और शाम के प्रदोष काल में अर्थात दिन में दो बार शिवलिंग की पूजा का विधान है।

व्रत में दिन के दौरान फलाहार कर सकते हैं।

शाम के पूजन के बाद सेंधा नमक से बने सात्विक अन्न ग्रहण कर सकते हैं।

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पशुपति व्रत की विधि प्रदीप मिश्रा के माध्यम से

पंडित प्रदीप जी मिश्रा ने शिव महापुराण के माध्यम से बड़े हीं सरलता से पशुपति व्रत करने की विधि का वर्णन किया है। इस व्रत को करने में कुछ विशेष विधि का पालन किया जाता है। पंडित प्रदीप जी मिश्रा अपने कई प्रवचनों में पशुपति व्रत की विधि को आम लोगों के सामने रखा है।

पशुपति व्रत की विधि

पशुपति व्रत में सुबह की पूजा कैसे करें?

आप जिस सोमवार से पशुपति व्रत का अनुष्ठान करना चाहते हैं उस दिन प्रातः काल उठ कर स्नान के पश्चात स्वक्ष वस्त्र धारण करें।

पशुपति व्रत की पूजा के लिए अपने आस पास के ऐसे किसी एक शिव मंदिर का चयन करें जिसमें आप 5 सोमवार पूजन कर सकें।

शिव मंदिर जाने के पहले अपनी पूजन की थाल तैयार करें। पशुपति व्रत की पूजा की सामग्री का चयन अपनी शक्ति और उपलभ्धता के अनुसार ऊपर बताये गए लिस्ट से करें। जिसमे एक लोटा जल अनिवार्य है।

पशुपति व्रत में पूजा की थाली शाम के पूजन के लिए अलग से तैयार नहीं की जाती है, अतः ये ध्यान रखें की सुबह जो भी पूजन सामग्री आप थाल में रख रहें है वो थोड़ा ज्यादा मात्रा में रखें ताकि शाम की पूजन में भी उसका उपयोग कर सकें।

अब शिव मंदिर जाकर श्रद्धापूर्वक शिवलिंग का पंचामृत और सादे जल से अभिषेक करें। तत्पश्चात शिवलिंग पे पुष्प, बेलपत्र और पूजन की अन्य सामग्री समर्पित करें।

श्री शिवाय नमस्तुभ्यं का जाप करते हुए भोलेनाथ को धुप दिखाएँ।

अब वापस अपने घर आ जाएँ।

पशुपति व्रत की शाम की पूजा की विधि

दिन की दूसरी पूजा शाम प्रदोष काल में हीं करने का नियम है।

शाम की पूजा में ये ध्यान रखना जरुरी होता है की पूजन की थाल और सामग्री सुबह वाली हीं हो। दोबारा थाल को मत सजाएँ। सुबह पूजन के बाद जो सामग्री बची है उसी से शिवजी के पूजन का विधान है।

शाम की पूजन के लिए थाल में एक लोटा जल, 6 घी के दीये तथा भोग लगाने के लिए कोई भी मीठा प्रसाद जैसे की हलवा, चावल या साबूदाने की खीर, मालपुआ, लड्डू या बर्फी इत्त्यदि रख लें।

पशुपति व्रत के प्रसाद को आप घर में तैयार करें और ये ध्यान रहे, पूरे प्रसाद को मंदिर ले जाना है, आपने घर में प्रसाद का जरा सा भाग भी नहीं छोड़ना है।

प्रसाद के साथ तीन पेपर प्लेट भी रख लें।

अब शिव मंदिर आकर सर्वप्रथम शिवलिंग पे जल समर्पित करें। अगर मंदिर में शाम के समय जलाभिषेक करने की मनाही हो तो फूल से जल का छींटा लगा दें।

तत्पश्चात शिव जी का शेष बचे सामग्रियों से श्रृंगार करें।

थाल में लाये 6 घी के दीये को शिवलिंग के सामने रखें। अब अपनी मनोकामना बाबा को कहते हुए बारी बारी से 5 दीये को प्रज्वलित करें। अब छटवें दीये को बिना जलाये वापस थाल में रख लें।

तत्पश्चात, थाल में लाये गए पूरे प्रसाद को शिवलिंग के समक्ष रखें। अब इस प्रसाद को तीन बराबर बराबर हिस्से में बाँट दें। दो हिस्सा शिवलिंग को समर्पित कर दें तथा एक बचे हुए हिस्से को वापस थाल में रख दें।

श्री शिवाय नमस्तुभयं का जाप कर अपनी मनोकामना शिवजी से बोलें।

अब वापस अपने घर के लिए निकलें।

घर के मुख्य दरवाजे के सामने बहार हीं बैठ जाएँ।

अब जो एक दीया आपके थाल में वापस आया है उसे अपनी मनोकामना बोलते हुए प्रज्वलित करें।

अब इस दीपक को अपने दाहिने तरफ रख दें।

तत्पश्चात घर में प्रवेश करें।

घर में प्रवेश के बाद थाल में लाये गए प्रसाद के एक हिस्से को स्वयं ग्रहण करें। इस प्रसाद को अपने परिवार के सदस्यों या किसी और को नहीं देना है।

प्रसाद ग्रहण करने के बाद भोजन करें।

इस तरह पूजन करने के बाद आपके पशुपति व्रत के पहली सोमवार का व्रत पूरा होता है। ठीक इसी तरह से आपको 4 सोमवार पूजन करनी है। पांचवें सोमवार को सुबह की पूजा तो वैसे हीं होगी परन्तु शाम की पूजा थोड़ी सी अलग होती है क्योंकि पशुपति व्रत के पांचवें सोमवार की पूजा उद्ध्यापन की पूजा होती है।

तो चलिए अब हम ये जानते हैं पांचवें सोमवार की पूजन विधि अर्थात पशुपति व्रत की उद्यापन विधि

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पशुपति व्रत की उद्यापन विधि

पंडित प्रदीप जी मिश्रा ने गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित शिव महापुराण के माध्यम से पशुपति व्रत की उद्ध्यापन विधि भी बताई है। पंडित प्रदीप मिश्रा के अनुसार पशुपति व्रत का पांचवां सोमवार हीं व्रत के उद्ध्यापन का भी दिन होता है।

पांचवें सोमवार को सुबह की पूजा उसी तरह से होगी जैसा आपने बाकी सभी सोमवार को की थी। परन्तु शाम की पूजा में दो-तीन बातों का विशेष ध्यान रखना होता है।

पांचवे सोमवार की पूजा के लिए अतिरिक्त जरुरी सामग्री

  • एक पानी वाले श्रीफल अर्थात नारियल
  • शिवजी को समर्पित करने के लिए एक हीं तरह के 108 पुष्प या पुष्प की 108 पंखुडिया या 108 बिल्ब-पत्र या फिर अक्षत या मखाने या हरा मुंग के 108 दाने
  • कलावा

पांचवे सोमवार की पूजा विधि

शाम की पूजन के लिए जो नारियल आपने बाजार से लाया है उसपर मौली या कलावा को ५-७ बार लपेट दें। अब अपनी सुबह की थाल में उस श्रीफल को रख लें।

साथ हीं साथ शिवजी को जो भी 108 वस्तुए समर्पित करनी है उसे भी अपने साथ मंदिर ले जाएँ।

पहले की तरह हीं एक लोटा जल, प्रसाद, 6 दीपक और 3 पेपर प्लेट भी रख लें।

मंदिर पहुंच कर शिवजी को जल समर्पित करें।

तत्पश्चात सुबह की बची हुई सामग्री से शिवजी का श्रृंगार करें।

अब घर से लाये गए पुरे प्रसाद को शिवलिंग के समक्ष रखें। उसके तीन बराबर बराबर हिस्से करें। दो हिस्सा वहीं छोड़ दें तथा एक हिस्सा वापस थल में रख लें।

तत्पश्चात थाल में लाये गए 6 दीयों को नीचे रखें। अपनी मनोकामना बोलते हुए 5 दीपक प्रज्जवलित करें और छंटवे दीपक को बिना जलाये वापस थाल में रख लें।

अब लाये गए 108 सामग्री को एक एक करके शिवजी को समर्पित करें।

मन ही मन श्री शिवाय नमस्तुभयं का जाप भी करते रहें।

जब ये 108 सामग्री शिवजी को समर्पित कर लें तो लाये गए नारियल को शिवजी को स्पर्श करा कर नीचे रख दें। धयान रहे, नारियल को शिवलिंग की जलधारी पे मत रखें।

नारियल चढ़ाते समय उसके ऊपर 11 रूपए भी दक्षिणा स्वरुप रख दें।

शिवजी को नमन कर अब अपने घर को लौट जाएँ।

घर में मुख्य दरवाजे के सामने बैठ कर मनोकामना बोलते हुए थाल में बचे उस एक दीपक को जलाएं तथा उसे अपनी दाहिनी तरफ रख दें।
अब घर में प्रवेश करें।

प्रवेश करने के बाद भोजन करने के पहले उस प्रसाद को ग्रहण करना जरुरी होता है।

इस तरह आपका पशुपति व्रत पूर्ण होता है।

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मासिक धर्म में पशुपति व्रत कैसे करें

कई महिलाओं के मन में प्रश्न जरूर उठा होगा की अगर पशुपति व्रत शुरू कर लिया हो और किसी सोमवार के दिन अगर मासिक धर्म अर्थात पीरियड आ जाये तो इस स्तिथि में क्या व्रत मान्य होगा या वो खंडित हो जायेगा।

पंडित प्रदीप मिश्रा के अनुसार अगर पशुपति व्रत के बीच में मासिक धर्म आ जाये तो उस स्तिथि में आप पुरे दिन व्रत का पालन करना अनिवार्य है अर्थात पुरे दिन फलाहार करे और रात्रि में सात्विक भोजन करें। परन्तु इस दिन शिवजी का पूजन मत करें।

इस दिन का व्रत 5 सोमवार के व्रत की गिनती में मान्य नहीं होगा। इस दिन के व्रत को अगले सोमवार के लिए टाल दें।

इस तरह से आप पशुपति व्रत को पूरा कर सकते हैं।

निष्कर्ष

तो कैसी लगी पशुपति व्रत के नियम से जुडी ये जानकारी। हमने यहाँ आपको पशुपति व्रत की विधि तथा पशुपति व्रत की उद्ध्यापन विधि प्रदीप मिश्रा के माध्यम से समझाने की कोशिश की है। और साथ में ये भी बताने की कोशिश की हो कि मासिक धर्म में पशुपति व्रत कैसे करें।

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