दुर्गा कवच का पाठ कैसे करें, क्या है लाभ

हिन्दू धर्म में नवरात्री के दौरान माता की विधिवत पूजन का विशेष महत्व होता है। ऐसे में ये जरुरी हो जाता है कि माँ भगवती के इस दुर्गा कवच का पाठ कैसे करें ताकि हमें शीघ्र हीं इसका लाभ प्राप्त हो सके।

हिन्दू धर्म के 18 पुराणों में से एक मार्कण्डेय पुराण में दुर्गा सप्तशती का उल्लेख मिलता है। दुर्गा कवच उसी दुर्गा सप्तशती में निहित एक अत्यंत पावन, दुर्लभ और शक्तिशाली स्तोत्र है।

ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के रचयता भगवान् श्री ब्रह्मा ने स्वयं मार्केंडये मुनि को 56 श्लोकों की इस देवी कवच को सुनाया था। इस 56 श्लोक के दुर्गा कवच में आखरी के 9 श्लोकों में फलश्रुति लिखित है।

श्री दुर्गा कवच संस्कृत में | Durga Kavach in Sanskrit

ऐसा उल्लेख है की यह कवच देवताओं के लिए भी अति दुर्लभ है। तो चलिए माता दुर्गा के प्रति अपनी सच्ची भक्ति और श्रद्धा रखते हुए इस अति दुर्लभ श्री दुर्गा कवच संस्कृत में पाठ करें।

॥अथ श्री देव्याः कवचम्॥

ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्,
श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।

॥ॐ नमश्‍चण्डिकायै॥

मार्कण्डेय उवाच

ॐ यद्‌गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥१॥

ब्रह्मोवाच

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥२॥

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥३॥

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥४॥

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥५॥

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥६॥

न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥७॥

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥८॥

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना॥९॥

माहेश्‍वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥१०॥

श्‍वेतरुपधरा देवी ईश्‍वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता॥११॥

इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥१२॥

दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥१३॥

खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥१४॥

दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै॥१५॥

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥१६॥

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥१७॥

दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥१८॥

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥१९॥

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः॥२०॥

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥२१॥

मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥२२॥

शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी॥२३॥

नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥२४॥

दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥२५॥

कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥२६॥

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खङ्‍गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी॥२७॥

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च।
नखाञ्छूलेश्‍वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्‍वरी॥२८॥

स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥२९॥

नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्‍वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ॥३०॥

कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ॥३१॥

गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥३२॥

नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्‍चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्‍वरी तथा॥३३॥

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्‍च पित्तं च मुकुटेश्‍वरी॥३४॥

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥३५॥

शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्‍वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥३६॥

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥३७॥

रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्‍चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥३८॥

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥३९॥

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥४०॥

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥४१॥

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥४२॥

पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥४३॥

तत्र तत्रार्थलाभश्‍च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्‍चितम्।
परमैश्‍वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥४४॥

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥४५॥

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥४६॥

दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः। ४७॥

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥४८॥

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्‍चैव जलजाश्‍चोपदेशिकाः॥४९॥

सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्‍च महाबलाः॥५०॥

ग्रहभूतपिशाचाश्‍च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ॥५१॥

नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्॥५२॥

यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥५३॥

यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥५४॥

देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥५५॥

लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥५६॥

इति देव्याः कवचं सम्पूर्णम्।

दुर्गा कवच पाठ हिंदी में | Durga Kavach in Hindi

अगर आप दुर्गा कवच संस्कृत में पाठ नहीं कर पा रहे हो तो माँ दुर्गा के इस कवच का पाठ हिंदी में भी कर सकते हैं।

॥ सम्पूर्ण दुर्गा कवच पाठ हिंदी में ॥

ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है।

मार्कण्डेय जी ने कहा

हे पितामह ! जो इस संसार में अति-गोपनीय तथा मनुष्यों की हर प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने किसी और के सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बातएं। ॥१॥

ब्रह्मा जी बोले, हे ब्रह्मन् ! ऐसा साधन तो केवल एक देवी का कवच ही है, जो गोपनीय से भी परम गोपनीय, पवित्र तथा सम्पूर्ण प्राणियों का उपकार करने वाला है। हे महामुने ! आप उसे श्रवण करें। ॥२॥

भगवती के प्रथम स्वरुप का नाम शैलपुत्री है, तथा दूसरे रूप का नाम ब्रह्मचारिणी है। तीसरा स्वरुप चन्द्रघण्टा के नाम से प्रसिद्ध है तथा भगवती का चौथा स्वरुप कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। ॥३॥

देवी के पांचवें स्वरुप का नाम स्कंदमाता है तथा छठा रूप कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध है। भगवती के सातवें स्वरूप को कालरात्रि तथा आठवें को महागौरी के नाम से जाना जाता है। ॥४॥

नवीं दुर्गा का नाम सिद्धिदात्री है। बताये गए सभी नाम सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान् के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं। ॥५॥

जो मनुष्य अग्नि की ज्वाला में जल रहा हो, रणभूमि में शत्रुओं से घिर गया हो, विषम संकट में फँस गया हो तथा इस प्रकार भय से आतुर होकर जो कोई भी देवी दुर्गा की शरण में प्राप्त हुए हों, उनका कभी भी कोई अमंगल नहीं होता। ॥६॥

युद्ध के समय भारी संकट में पड़ने पर भी उनके ऊपर कोई विपत्ति नहीं दिखायी देती। उन्हें शोक, दुःख और भय की प्राप्ति भी नहीं होती। ॥७॥

जिन्होंने भी भक्तिपूर्वक देवी का स्मरण किया है, उनका निश्चय ही अभ्युदय होता है। हे देवेश्वरि, जो भी तुम्हारा चिन्तन करते हैं, उनकी तुम निःसंदेह रक्षा करती हो। ॥८॥

चामुण्डा देवी प्रेत पर आरूढ़ होती हैं तथा वाराही भैंसे की सवारी करती हैं। ऐन्द्री का वाहन ऐरावत हाथी है। तथा देवी वैष्णवी गरुड को अपना आसन बनती हैं। ॥९॥

देवी माहेश्वरी वृषभ पर आरूढ़ हैं। कौमारी का वाहन मयूर है। भगवान श्री हरी विष्णु की प्रियतमा माता लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं और हाथों में कमल धारण किये हुए हैं। ॥१०॥

श्वेत रूप धारण करने वाली ईश्वरी देवी वृषभ पर आरूढ़ हैं। ब्राह्मी देवी हंस पर बैठी हुई हैं और सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित हैं। ॥११॥

इस प्रकार ये सभी माताएँ सब प्रकार की योगशक्तियों से सम्पन्न हैं। इनके अलावा और भी बहुत सी देवियाँ हैं, जो अनेक अनेक प्रकार के आभूषणों से शोभायमान हैं तथा नाना नाना प्रकार के रत्नों से सुशोभित हैं। ॥१२॥

अपने भक्तों की रक्षा के लिए ये सम्पूर्ण देवियाँ क्रोध में भरी हुई रथ पे आरूढ़ दिखायी देती हैं। ये देवियां अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मुसल, खेटक और तोमर, परशु तथा पाश, कुन्त और त्रिशूल एवं उत्तम शार्ङ्ग धनुष आदि अस्त्र-शस्त्र धारण कर रखा हैं। ॥१३,१४॥

दैत्यों के शरीर का नाश करना, भक्तों को अभयदान देना और देवताओं का कल्याण करना – यही उनके शस्त्र धारण का उद्देश्य है। ॥१५॥

महान रौद्ररूप, अत्यन्त घोर पराक्रम, महान बल और महान उत्साह को देने वाली देवि, तुम महान भय का नाश करने वाली हो, तुम्हें नमस्कार है। ॥१६॥

तुम्हारी तरफ देखना भी कठिन है। शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली हे जगदम्बिके देवी, मेरी रक्षा करो। पूर्व दिशा में ऐन्द्री मेरी रक्षा करें। अग्निकोण में अग्निशक्ति, दक्षिण दिशा से वाराही तथा नैर्ऋत्यकोण में खड्गधारिणी मेरी रक्षा करें। पश्चिम दिशा से वारुणी और वायव्यकोण में मृग पर सवारी करने वाली देवी मेरी रक्षा करें। ॥१७,१८॥

उत्तर दिशा में कौमारी और ईशान कोण में शूलधारिणी देवी मेरी रक्षा करें। ऊपर की ओर से ब्रह्माणि देवी मेरी रक्षा करें और वैष्णवी देवी आप नीचे की ओर से मेरी रक्षा करें। ॥१९॥

शव को अपना वाहन बनाने वाली चामुण्डा देवी आप दसो दिशाओं में मेरी रक्षा करें। जया आगे की ओर से तथा विजया पीछे की ओर से मेरी रक्षा करें। ॥२०॥

वामभाग में अजिता देवी और दक्षिणभाग में अपराजिता मेरी रक्षा करें। उद्योतिनी शिखा की रक्षा करे तथा उमा देवी मेरे मस्तक पर विराजमान होकर मेरी रक्षा करें। ॥२१॥

मेरे ललाट की देवी मालाधरी रक्षा करें तथा यशस्विनी देवी मेरी भौंहों का संरक्षण करे। मेरे भौंहों के मध्यभाग की त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघण्टा देवी रक्षा करें। ॥२२॥

दोनों नेत्रों के मध्यभाग की शङ्खिनी देवी तथा द्वारवासिनी देवी कानों की रक्षा करे। कालिका देवी कपोलों की तथा भगवती शांकरी कानों के मूलभाग की रक्षा करें। ॥२३॥

नासिका की सुगन्धा देवी तथा ऊपर के ओठ की चर्चिका देवी रक्षा करें। देवी अमृतकला मेरे नीचे के ओठ की तथा जिह्वा की माता सरस्वती देवी रक्षा करें। ॥२४॥

कौमारी देवी दाँतों की और चण्डिका देवी कण्ठप्रदेश की रक्षा करें। चित्रघण्टा गले के घाँटी की और महामाया तालु में रह कर मेरी रक्षा करें। ॥२५॥

कामाक्षी देवी मेरे ठोढ़ी की और सर्वमङ्गला देवी मेरी वाणी की रक्षा करें। भद्रकाली ग्रीवा की और देवी धनुर्धरी मेरे मेरुदण्ड की रक्षा करें। ॥२६॥

कण्ठ के बाहरी भाग की देवी नीलग्रीवा और कण्ठ की नली की नलकूबरी देवी रक्षा करे। दोनों कंधों की खडि्गनी और मेरी दोनों भुजाओं की वज्रधारिणी देवी रक्षा करें। ॥२७॥

मेरे दोनों हाथों की दण्डिनी और अंगुलियों की अम्बिका देवी रक्षा करें, शूलेश्वरी नखों की रक्षा करें तथा कुलेश्वरी देवी पेट में रहकर मेरी रक्षा करें। ॥२८॥

महादेवी मेरे दोनों स्तनों की और शोकविनाशिनी देवी मेरे मन की रक्षा करें। ललिता देवी हृदय की और शूलधारिणी मेरे उदर की रक्षा करें। ॥२९॥

नाभि की कामिनी देवी तथा गुह्यभाग की देवी गुह्येश्वरी रक्षा करें। पूतना और कामिका लिङ्ग की और महिषवाहिनी मेरे गुदा की रक्षा करें। ॥३०॥

भगवती कटिभाग की और विन्ध्यवासिनी देवी मेरे घुटनों की रक्षा करें। सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाली देवी महाबला मेरी दोनों पिण्डलियों की रक्षा करें। ॥३१॥

माता नरसिंही दोनों घुट्ठियों की और तैजसी देवी मेरे दोनों चरणों के पृष्ठभाग की रक्षा करें। श्रीदेवी पैरों की अंगुलियों की तथा देवी तलवासिनी मेरे पैरों के तलुओं की रक्षा करें। ॥३२॥

अपनी दाढ़ों के कारण भयंकर दिखायी देने वाली दंष्ट्राकराली देवी नखों की तथा ऊर्ध्वकेशिनी देवी केशों की रक्षा करें। मेरे रोमावलियों के छिद्रों की कौबेरी और त्वचा की वागीश्वरी देवी रक्षा करें। ॥३३॥

माता पार्वती रक्त, मज्जा, वसा, मांस, हड्डी और मेद की रक्षा करे। आँतों की माँ कालरात्रि और पित्त की मुकुटेश्वरी देवी रक्षा करें। ॥३४॥

मूलाधार आदि कमल कोशों की देवी पद्मावती तथा कफ की चूडामणि देवी रक्षा करें। नखों के तेज की माता ज्वालामुखी रक्षा करें। जिनका किसी भी शस्त्र से भेदन नहीं किया जा सकता, वह अभेद्या देवी मेरे शरीर की समस्त संधियों में रह कर रक्षा करें। ॥३५॥

ब्रह्माणि, आप मेरे वीर्य की रक्षा करें। देवी छत्रेश्वरी छाया की तथा धर्मधारिणी देवी मेरे अहंकार, मन और बुद्धि की रक्षा करें। ॥३६॥

हाथ में वज्र धारण करने वाली देवी वज्रहस्ता मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान वायु की रक्षा करें। कल्याण से शोभित होने वाली माता कल्याणशोभना मेरे प्राण की रक्षा करें। ॥३७॥

रस, रूप, गन्ध, शब्द और स्पर्श – इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करे तथा मेरे सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण की रक्षा सदा नारायणी देवी करें। ॥३८॥

वाराही मेरी आयु की रक्षा करें। वैष्णवी धर्म की रक्षा करें तथा अपने हाथों में चक्र को धारण करने वाली देवी चक्रिणी मेरे यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन तथा विद्या की रक्षा करें। ॥३९॥

 इन्द्राणि, आप मेरे गोत्र की रक्षा करें। देवी चण्डिके, तुम मेरे पशुओं की रक्षा करो। महालक्ष्मी पुत्रों की रक्षा करे और माँ भैरवी पत्नी की रक्षा करें। ॥४०॥

मेरे पथ की सुपथा तथा मार्ग की क्षेमकरी रक्षा करें। राजा के दरबार में महालक्ष्मी रक्षा करें तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजया देवी सम्पूर्ण भयों से मेरी रक्षा करें। ॥४१॥

हे देवि, जो स्थान कवच में नहीं कहा गया है, तथा जो रक्षा से रहित है, वह सब तुम्हारे द्वारा सुरक्षित हो, क्योंकि तुम विजयशालिनी और पापनाशिनी हो। ॥४२॥

मनुष्य यदि अपने शरीर का भला चाहे तो वो बिना कवच पाठ के कहीं एक पग भी नहीं रखे अर्थात कवच का पाठ करके ही यात्रा करे। ॥४३॥

कवच के द्वारा सब ओर से सुरक्षित मनुष्य जहाँ-जहाँ भी जाता है, वहाँ-वहाँ उसे धन का लाभ होता है तथा सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि करने वाली विजय की प्राप्ति होती है।वह जिस-जिस अभीष्ट वस्तु का चिन्तन करता है, उसको वो निश्चय ही प्राप्त कर लेता है। तथा वह पुरुष इस पृथ्वी पर तुलनारहित महान ऐश्वर्य का भागी होता है। ॥४४॥

कवच से सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है। युद्ध में उसकी पराजय नहीं होती तथा वह तीनों लोकों में पूजनीय होता है। ॥४५॥

देवी का यह कवच देवताओं के लिये भी दुर्लभ है। जो प्रतिदिन नियम से तीनों संध्याओं के समय श्रद्धापूर्वक इसका पाठ करता है, उसे दैवी कला प्राप्त होती है तथा वह तीनों लोकों में कहीं भी पराजित नहीं होता। इतना ही नहीं, वह अपमृत्यु अर्थात अकाल मृत्यु से रहित हो सौ से भी अधिक वर्षों तक जीवित रहता है। ॥४६, ४७॥

मकरी, चेचक और कोढ़ आदि उसकी सम्पूर्ण व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं। कनेर, भाँग, अफीम, धतूरे आदि का स्थावर विष, साँप और बिच्छू आदि के काटने से चढ़ा हुआ जङ्गम विष तथा अहिफेन और तेल के संयोग आदि से बनने वाला कृत्रिम विष – ये सभी प्रकार के विष दूर हो जाते हैं तथा उनका कोई असर नहीं होता। ॥४८॥

इस पृथ्वी पर जितने भी मारण-मोहन आदि आभिचारिक प्रयोग होते हैं तथा इस प्रकार के जितने भी मन्त्र, यन्त्र होते हैं, वे सब इस कवच को हृदय में धारण कर लेने पर उस मनुष्य को देखते ही नष्ट हो जाते हैं।

इतना ही नहीं, पृथ्वी पर विचरने वाले ग्रामदेवता, आकाशचारी देवविशेष, जल के सम्बन्ध से प्रकट होने वाले गण, उपदेश मात्र से सिद्ध होने वाले निम्नकोटि के देवता, अपने जन्म के साथ प्रकट होने वाले देवता, कुलदेवता, माला, डाकिनी, शाकिनी, अन्तरिक्ष में विचरने वाली अत्यन्त बलवती भयानक डाकिनियाँ, ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल, कूष्माण्ड और भैरव आदि अनिष्टकारक देवता भी हृदय में कवच धारण किये रहने पर उस मनुष्य को देखते ही भाग जाते हैं।

कवचधारी पुरुष के राज-सम्मान में भी वृद्धि होती है। तथा यह कवच मनुष्य के तेज की वृद्धि करने वाला और उत्तम है। ॥४९,५०,५१,५२॥

कवच का पाठ करने वाला पुरुष अपनी कीर्ति से विभूषित, धरती पर अपने सुयश के साथ-साथ वृद्धि को प्राप्त होता है। जो पहले कवच का पाठ करके उसके बाद सप्तशती चण्डी का पाठ करता है, उसकी जब तक वन, पर्वत और काननों सहित यह पृथ्वी टिकी रहती है, तब तक यहाँ पुत्र-पौत्र आदि की संतान परम्परा बनी रहती है। ॥५३,५४॥

फिर देह का अन्त होने पर वह पुरुष भगवती महामाया के प्रसाद से उस नित्य परमपद को प्राप्त होता है, जो देवताओं के लिये भी दुर्लभ है। ॥५५॥

वह सुन्दर दिव्य रूप धारण करता है और कल्याणमय शिव के साथ आनन्द का भागी होता है। ॥५६॥

॥ दुर्गा कवच पाठ हिंदी में समाप्त ॥

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दुर्गा कवच का पाठ कैसे करें

दुर्गा कवच का पाठ कैसे करें

दुर्गा कवच पाठ के महत्व को जान लें के बाद आपके मन में ये प्रश्न तो जरूर उठ रहा होगा की दुर्गा कवच का पाठ कैसे करें। तो हम अब ये जानते हैं कि दुर्गा कवच पाठ करने की विधि क्या है। हम इस अति दुर्लभ दुर्गा कवच का पाठ कैसे करें कि इसका लाभ जल्द से जल्द हमें मिलना शुरू हो जाये।

दुर्गा कवच पाठ करने की विधि

  • दुर्गा कवच का पाठ करने के पहले स्वक्षता और पवित्रता का विशेष ध्यान दें।
  • प्रातः काल स्नानादि से निवृत हो स्वक्ष वस्त्र धारण करें।
  • अपने घर के मंदिर में स्थापित माँ दुर्गा कि प्रतिमा या चित्र के सामने आसन बिछाएं।
  • तत्पश्चात माता के सामने देसी घी का दीप प्रज्वलित करें।
  • माँ दुर्गा को लाल फूल तथा भोग लगाएं।
  • अब माता का ध्यान करके भक्ति भाव से उनकी पूजा करें।
  • इतना कर लेने के पश्चात सप्तशलोकी दुर्गा पाठ करे। अगर दुर्गा सप्तश्लोकी का पाठ नहीं कर पाएं तो माँ दुर्गा के 108 नामों का पाठ जरूर करें।
  • इसके पश्चात दुर्गा कवच पाठ करना शुरू करें। अगर आप विशेष मनोकामना पूर्ति चाहते हैं. तो इस पाठ को तीन बार करें।
  • दुर्गा कवच का पाठ करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखे की पाठ बिलकुल शुद्ध उच्चारण के साथ करें।
  • दुर्गा कवच का पाठ आपको संस्कृत तथा हिंदी दोनों हीं भाषाओं में मिल जाएगा। आपके लिए जो भी भाषा सुगम हो पाठ उसी में करें।

दुर्गा कवच पाठ के लाभ

दुर्गा कवच पाठ के लाभ इसके श्लोकों में हीं वर्णित है। मार्कण्डेय पुराण में वर्णित दुर्गा सप्तशती रक्षा कवच के अंतिम 9 श्लोक में भगवान् श्री ब्रह्मा ने स्वयं इसके लाभ को बताया है। आप भी दुर्गा कवच का नित्य पाठ कर इसके चमत्कारिक लाभ को प्राप्त कर सकते हैं।

एक बार मार्कण्डेय ऋषि जी ने भगवान श्री ब्रह्मा से पुछा ,हे भगवन कृपा कर के मुझे कोई ऐसा पाठ बताइए जो मनुष्यो की हर प्रकार से रक्षा करता हो।

तब ब्रह्माजी उन्हें बताते है कि, हे मार्कण्डेय, एक अति गोपनीय मंत्र है, जो समस्त प्राणियों का हित एवं उपकार करने वाला है। वह पुण्य गोपनीय मंत्र देवी दुर्गा का कवच है। माँ दुर्गा का यह रक्षा कवच बहुत लाभ देना वाला है। यह कवच पूरे सृष्टि में सभी चीजों से आपकी रक्षा करता है।

तो चलिए अब हम ये जानते हैं कि श्री दुर्गा कवच का पाठ के लाभ क्या क्या हैं।

दुर्गा कवच पाठ के लाभ

दुर्गा कवच पाठ के लाभ

  • सभी प्रकार के मारण-मोहन आदि आभिचारिक प्रयोग या फिर तंत्र-मंत्र सब दुर्गा कवच के पाठ मात्र से नष्ट को जाते हैं।
  • सभी प्रकार के अनिष्टकारक देवता, डाकिनी, शाकिनी, भूत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल ये सब दुर्गा कवच के नित्य पाठ से प्रभाव विहीन हो जाते हैं।
  • नित्य दुर्गा कवच का पाठ व्यक्ति के मान सम्मान तथा ओज-तेज में वृद्धि करता है।
  • महा देवी दुर्गा की स्तुति सुनकर मन से सभी प्रकार के डर और भय समाप्त हो जाते हैं।
  • दुर्गा कवच में शरीर के समस्त अंगो का उल्लेख मिलता है। इस रक्षा कवच के नित्य पाठ से शरीर के असाध्य से असाध्य रोग भी समाप्त हो जाते है।
  • दुर्गा रक्षा कवच का सही उच्चारण के साथ पाठ हमारे मन में सकारात्मकता का संचार करता है तथा आस पास कि हर नकारात्मकता को दूर करता है।

निष्कर्ष

तो दोस्तों, कैसी लगी दुर्गा कवच से जुडी ये जानकारी जैसे की दुर्गा कवच संस्कृत में, दुर्गा कवच पाठ हिंदी में, दुर्गा कवच कैसे करें, दुर्गा कवच पाठ के लाभ इत्यादि।

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